जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुआ आत्मघाती हमला भारत के सुरक्षा बलों पर कश्मीर में अब तक का सबसे बड़ा हमला है। पहली बार इतनी बड़ी संख्या में जवानों की जानें गयी हैं। यह घटना कई गंभीर सवाल खड़े करती है और हमारे सामने नयी चुनौतियाँ खड़ी करती है। हालाँकि किसी एक घटना से चाहे वह कितनी बड़ी क्यों न हो, कोई एक रणनीतिक अर्थ निकालना सही नहीं होता है, लेकिन पुलवामा की घटना इतनी बड़ी है और उसके इतने आयाम हैं कि वे एक बड़े रणनीतिक बदलाव की ओर इशारा करते हैं।

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बहुत सारे राजनीतिक पंडित इस घटना को घबराहट में उठाया हुआ क़दम क़रार देते हैं, जो यह है भी। लेकिन इस कायरतापूर्ण कार्रवाई को नयी नज़र से देखना होगा। 

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पुलवामा की आतंकी घटना को अंजाम देने वाले आत्मघाती हमलावर की पहचान हो गयी है। वह एक लोकल कश्मीरी है लेकिन इस हमले के लिए उसका इस्तेमाल किया गया है।

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स्थानीय लोग ही कर रहे बग़ावत

पिछले दो सालों से यह बात कही जा रही है कि जम्मू-कश्मीर की बग़ावत स्थानीय है और स्थानीय लोग ही आतंकवादी हमलों में शामिल हैं। यह काफ़ी हद तक सही है कि स्थानीय लोग आतंकी बन रहे हैं लेकिन ये स्थानीय लोग किसी बड़ी घटना को अंजाम देने में अब तक नाकाम रहे हैं।

जिस तरह से 14 फ़रवरी की घटना हुई है, उसी तरीक़े की दूसरी घटनाओं को करने की न तो उनके पास तकनीकी क्षमता है और न ही दूसरे संसाधन। इस तरीक़े की क्षमता और इस स्तर की प्लानिंग और उसको अंजाम देने का हुनर पाकिस्तान के जैश-ए-मुहम्मद का ही है। इसी तरह से 1990 और 2000 के शुरुआती सालों में विदेशी आतंकवादी, आतंकवादी हमलों की रूपरेखा रचते थे और स्थानीय लोग इस काम में उनकी मदद करते थे। 

आसान लक्ष्य होगा भारत?

पाकिस्तान का हौसला इसलिए भी बढ़ा हुआ है क्योंकि उसके ख़िलाफ़ कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं हो रहा है। उसका हौसला इसलिए भी बढ़ा हुआ है क्योंकि उसको लगता है कि पहले उसने सोवियत संघ (रूस) जैसी महाशक्ति को परास्त किया है और अब दूसरी महाशक्ति अमेरिका को हराने की कगार पर है। ऐसे में पाकिस्तानी फ़ौज को लगता है कि भारत तो उनके लिए एक आसान लक्ष्य होगा। 

असफल रही हमारी पाकिस्तान नीति 

पुलवामा की घटना के बाद भारत की प्रतिक्रिया भी अति आक्रामक बयानबाज़ी, बदले की धमकी और प्रधानमंत्री के इस कथन कि सुरक्षा एजेंसियों को खुली छूट दे दी गयी है और हमले के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होगी, भारी ख़ामियाजा भुगतना पड़ेगा, तक ही सीमित है (पहले भी इस तरह के बयान आये हैं जिसमें यही सब दोहराया गया था कि सुरक्षा बलों को खुली छूट दी जा चुकी है)। इस तीखी लेकिन खोखली बयानबाज़ी से यह भी प्रतीत होता है कि कश्मीर और पाकिस्तान के मसले पर हमारी नीति असफल रही है। 

पुलवामा की घटना के बाद आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र हमारे सुरक्षा बलों और सेना पर इस बात का दबाव पड़ेगा कि वे कुछ नाटकीय कार्रवाई करें। लेकिन यह भी स्पष्ट हैं कि हमारे पास विकल्प बहुत सीमित हैं।

कमियों को कौन ठीक करेगा?

निरंतर रणनीतिक तैयारी की कमी और पिछले दशकों में रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और गुप्तचर तंत्र को बेहतर करने में हमारी नाक़ामी की वजह से हम कोई फ़ैसलाकुन रणनीतिक जवाब दें, यह संभव नहीं दिखता। पिछले दशकों में जो हमारी कमियाँ थीं उनको पिछले 5 सालों में ठीक करने का कोई उपाय नहीं किया गया है।

हक़ीक़त सामने आने पर खंडूरी को हटाया 

हक़ीक़त में रक्षा मद में हमारा वार्षिक बजट जीडीपी के अनुपात में लगातार कम हुआ है। मार्च 2018 में रक्षा मामलों की संसदीय समिति ने यह आकलन किया है कि सुरक्षा बलों से संबंधित 68 फ़ीसदी उपकरण पुराने पड़ चुके हैं और सुरक्षा बलों के पास इतना असलहा नहीं है कि पाकिस्तान के साथ 10 दिन से ज़्यादा की लड़ाई लड़ सके। लेकिन इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करने की जगह कमेटी के चेयरमैन और बीजेपी के सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बी. सी. खंडूरी को चेयरमैनी से हटा दिया गया है।

पुलवामा हमला सिर्फ़ एक शुरुआत भर है। जम्मू-कश्मीर में आने वाले दिनों में हिंसा और बढ़ेगी। निकट भविष्य में जम्मू एवं कश्मीर में अफ़ग़ान मोर्चे से लौटे पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ बढ़ेगी और वे ऐसी और घटनाओं को अंजाम देंगे। अब आतंकवादियों की नज़र अफ़ग़ानिस्तान की जगह भारत पर होगी।