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लद्दाख में शहीद हुए गुरविंदर की कुछ माह पहले हुई थी सगाई, नवंबर में थी शादी!

पंजाब गमगीन और गौरवान्वित है। सूबे के चार सपूतों ने पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में शहादत पाई है। गुरदासपुर ज़िले के गाँव भोजराज के 41 वर्षीय नायब सूबेदार सतनाम सिंह, पटियाला ज़िले के गाँव सील के 39 वर्षीय नायब सूबेदार मनदीप सिंह, मानसा ज़िले के बीरेवाला डोगरा के 23 वर्षीय सिपाही गुरतेज सिंह और ज़िला संगरूर के गाँव तोलेवाल के 22 वर्षीय सिपाही गुरविंदर सिंह ने अपनी जान कुर्बान की। इन सबके घरों में अब सन्नाटा पसरा है लेकिन घरवालों को गर्व है कि इन्होंने फ़ौजी होने का फ़र्ज़ बखूबी निभाया।

पंजाब सरकार ने शहीद चारों सैनिकों के वारिसों को 10 से 12 लाख रुपए और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा की है।

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गुरदासपुर के गाँव भोजराज के मूल बाशिंदे शहीद नायब सूबेदार सतनाम सिंह के भाई सुखचैन सिंह भी फ़ौज में सूबेदार हैं और इन दिनों छुट्टी पर घर आए हुए हैं। फ़ोन पर उन्होंने बताया कि उन्हें नायब सूबेदार सतनाम सिंह की शहादत की ख़बर घटना वाले दिन ही लद्दाख से उनके साथियों द्वारा दे दी गई थी लेकिन फ़िलहाल तक उन्होंने घरवालों से इसे छिपाया। बस इतना ही बताया है कि सतनाम जख्मी हैं। शहीद नायब सूबेदार के परिवार में पत्नी जसविंदर कौर और एक बेटी तथा एक बेटा हैं। दादी कश्मीर कौर घायल होने की ख़बर से ही सदमे में आकर बार-बार बेहोश हो रही हैं। नायक सूबेदार सुखचैन सिंह कहते हैं कि व्यक्तिगत दुख बहुत बड़ा है लेकिन भाई की शहादत पर गर्व है।

पटियाला के गाँव सील के रहने वाले तीन बहनों के इकलौते भाई नायब सूबेदार मनदीप सिंह का सपना था कि उनके बच्चे भारतीय सेना में बड़े अफ़सर बनें। वह कुछ दिन पहले ही छुट्टी अधूरी छोड़कर लद्दाख में यूनिट 3 आर्टिलरी मीडियम में गए थे। वह अपनी यूनिट में गनर इंस्ट्रक्टर (एआईजी) थे।

सील गाँव के निवासी रतन सिंह के ज़रिए उनकी पत्नी गुरदीप कौर से फ़ोन पर बात हुई। बिलखते हुए वह कहती हैं कि उनके बहादुर पति देश के लिए शहीद हुए हैं। हालाँकि वह घर का एकमात्र सहारा थे। गुरदीप चाहती हैं कि उनके पति की कुर्बानी व्यर्थ न जाए और सरकार चीन के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त कार्रवाई करे। रतन सिंह बताते हैं कि शहीद नायब सूबेदार मनदीप सिंह की विधवा माँ, बच्चे- 12 साल की जोबनप्रीत सिंह और 15 साल की महकप्रीत कौर का रो-रो कर बुरा हाल है। उनके मुँह से आवाज़ तक नहीं निकल रही। सभी एकटक मनदीप की तसवीर को निहार रहे हैं। 

संगरूर के गाँव तोलेवाला के रहने वाले लद्दाख में शहीद हुए जवान गुरविंदर सिंह की सगाई कुछ महीने पहले हुई थी। नवंबर में शादी होनी थी।

उनकी शहादत की ख़बर बुधवार की सुबह साढ़े छह बजे गाँव पहुँच गई थी, लेकिन बेटे से बेहद ज़्यादा प्यार करने वाली माँ चरणजीत कौर को बताने का हौसला कोई नहीं कर पाया। घर के पास जब भीड़ इकट्ठा होने लगी तो गुरविंदर के पिता लाभ सिंह ने उन्हें बताया बेटा चीनी सेना के हमले में गंभीर जख्मी हो गया है। लाभ सिंह ने आने वाले लोगों को ज़मीन पर नहीं बैठने दिया ताकि पत्नी को शक न हो जाए कि गुरविंदर अब इस दुनिया में नहीं है। फिलवक्त तक चरणजीत कौर को बेटे की मौत की ख़बर नहीं बतायी गयी है। गुरविंदर के पिता से भी एक ग्रामीण जीवन दास के माध्यम से बात होती है। वह कहते हैं कि नवंबर में गुरविंदर की शादी करनी थी लेकिन देश की हिफाजत करते हुए उसने पहले ही मौत को गले लगा लिया। गुरविंदर दो साल पहले फ़ौज में भर्ती हुए थे। जीवन दास के मुताबिक़ देश सेवा का जज्बा इस शहीद सिपाही को सेना में ले गया था और वह बचपन से ही वतन के लिए कुर्बानी की बात कहा करते थे।

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बीरेवाला डोगरा के रहने वाले सिख रेजिमेंट के सिपाही शहीद गुरतेज सिंह के माता-पिता से स्थानीय पत्रकार नरेश गोयल के ज़रिए फ़ोन पर बात हुई। पिता विरसा सिंह बताते हैं कि गुरतेज बचपन से ही फ़ौज में भर्ती होना चाहता था। हमें गर्व है कि जान देकर उसने अपना फ़र्ज़ निभाया। गुरतेज की माँ पहले सुबकती हैं, फिर कुछ हौसले से कहती हैं कि गुरतेज मेरा नहीं देश का बेटा था जिस पर उन्हें हमेशा गर्व रहेगा।

बेशक लद्दाख में चीनी फौजियों के हाथों शहीद होने वाले पंजाब के चारों सैनिक अलग-अलग ज़िलों और गाँवों से थे लेकिन उनकी शहादत में पूरा प्रदेश गमगीन है। गर्व भी कर रहा है। गुरुवार को तमाम शहरों और कस्बों में शहीद सैनिकों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि, ‘इस बलिदान को भुलाया नहीं जाएगा। इनके परिवारों के नुक़सान का मूल्याँकन नहीं किया जा सकता। न ही भौतिक चीजों से इसकी भरपाई हो सकती है पर सरकार परिवार को नौकरी व आर्थिक मदद देकर तकलीफ कुछ कम करने का प्रयास करेगी।’
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अमरीक
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