पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद से ही पंथक धाराओं और सिख संस्थाओं के साथ टकराव की स्थिति बनी हुई है और यह निरंतर बढ़ती जा रही है। यह टकराव खासकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी के साथ है। इसके कई पहलू और पक्ष हैं जो इसकी पृष्ठभूमि में हैं। खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली आप के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल इस मामले में कोई ठोस समाधान की पहल करते नहीं दिख रहे। पंजाब में विधानसभा चुनाव करीब हैं, फिर भी आप सिख पंथक धारा के साथ आमने-सामने की स्थिति में है।

पंजाब में नवंबर 2025 में नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहादत दिवस (शहीदी दिवस) के उपलक्ष्य में व्यापक समारोह आयोजित किए गए। पंजाब सरकार ने तख्त श्री केसगढ़ साहिब, श्री आनंदपुर साहिब और अन्य स्थानों पर अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए। वहीं, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने अप्रैल 2025 से ही वर्ष भर की शृंखला शुरू कर दी थी। एसजीपीसी प्रधान हरजिंदर सिंह धामी ने आरोप लगाया कि सरकार अलग कार्यक्रम करके सिख संगत को भ्रम में डाल रही है और सिख संस्थाओं को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर सिख संस्थाओं को दरकिनार कर रही है। समानांतर कार्यक्रमों से टकराव पैदा करने की बजाय सरकार को प्रदेश की उन्नति पर ध्यान देना चाहिए।
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इस अवसर पर कई सिख विद्वानों और संगठनों ने राज्य सरकार से आग्रह किया कि गुरु साहिब के बलिदान का आध्यात्मिक सार- धर्म की रक्षा- सभी कार्यक्रमों के केंद्र में रहे। यह अपील भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार की उस घोषणा के बाद आई जिसमें गुरु तेग बहादुर जी की शहादत दिवस को मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाने की बात कही गई। सिख बुद्धिजीवियों और धार्मिक संस्थाओं ने आधुनिक मानव अधिकारों की अवधारणा को गुरु साहिब की शहादत के आध्यात्मिक संदर्भ से जोड़ने के प्रयास पर आपत्ति जताई।

सरकार पंथक मामलों में उलझ रही?

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, जिसका अस्तित्व बड़ी कुर्बानियों से बना है, न केवल गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है बल्कि सिख पंथ की शिक्षण संस्थाओं, पंथक मसलों और सिख पंथ के प्रचार-प्रसार का प्रतिनिधित्व भी करती है। सरकार का दायित्व पूरे प्रदेश की जनभावनाओं के अनुरूप कार्य करना है, लेकिन यह सरकार एसजीपीसी के साथ पंथक मामलों में उलझ रही है। 

एसजीपीसी में अकाली धारा की बहुलता है और इसे अक्सर अकाली दल के साथ जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि अकाली दल की राजनीति पंथक धारा और सिख सिद्धांतों का अनुसरण करती है।

टकराव कैसे शुरू हुआ?

यह टकराव गुरबाणी प्रसारण अधिकार के मामले से प्रमुख रूप से शुरू हुआ। सबसे बड़ा विवाद स्वर्ण मंदिर से गुरबाणी के लाइव और मुफ्त प्रसारण को लेकर रहा। पंजाब सरकार ने 2023 में सिख गुरुद्वारा संशोधन विधेयक पारित किया, जिससे स्वर्ण मंदिर से लाइव प्रसारण किसी एक निजी चैनल के नियंत्रण में न रहे। एसजीपीसी का तर्क है कि 1925 का अधिनियम केंद्रीय क़ानून है और राज्य सरकार को इसमें संशोधन का अधिकार नहीं है। एसजीपीसी इसे सिखों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप मानती है। एसजीपीसी प्रधान हरजिंदर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री भगवंत मान को चेतावनी दी और आरोप लगाया कि सरकार सिख पंथक मामलों में हस्तक्षेप न करे।
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शहादत दिवस पर अलग-अलग कार्यक्रम

एसजीपीसी ने राज्य सरकार पर गुरु तेग बहादुर जी की शहादत दिवस जैसी महत्वपूर्ण तिथियों पर अलग धार्मिक कार्यक्रमों की घोषणा करके टकराव पैदा करने का आरोप लगाया। एसजीपीसी का कहना है कि केवल उसे ही सामुदायिक समर्थन के साथ ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित करने का अधिकार है। पंथक संगठन अक्सर राज्य और केंद्र सरकारों पर सिख संस्थानों में हस्तक्षेप और उन्हें राजनीतिक नियंत्रण में लाने के आरोप लगाते रहे हैं। एसजीपीसी धार्मिक मामलों में सिख समुदाय का प्रतिनिधि है और सरकार के हस्तक्षेप का विरोध करती रही है। मुख्यमंत्री भगवंत मान, मंत्री हरपाल चीमा और एसजीपीसी प्रधान हरजिंदर सिंह धामी के बीच आरोप-प्रत्यारोप चले।

पड़ोसी राज्य हरियाणा में गुरुद्वारा प्रबंधन के लिए अलग समिति गठन का विरोध लंबे समय से शिरोमणि अकाली दल और एसजीपीसी करते रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह सिखों में विभाजन और उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर करने की रणनीति है। हरियाणा में अलग कमेटी के बाद सत्ता संघर्ष और गुटबाजी बढ़ी तथा विभिन्न धड़ों को सरकार का समर्थन मिला, ऐसे आरोप एसजीपीसी ने लगाए। सिख अपनी धार्मिक-सामाजिक मूल्यों को संरक्षित रखना चाहते हैं ताकि उनकी राजनीतिक ताकत में बिखराव न हो। आप 'बदलाव' के नारे पर सत्ता में आई थी, लेकिन अब पंजाब के लोग विधानसभा चुनावों के परिणामों से यह तय करेंगे कि बदलाव की भाषा समझी गई या नहीं।
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विभिन्न सिख संगठन और एसजीपीसी लंबे समय से जेल में बंद सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं। पंजाब और सिख समुदाय के लिए यह भावनात्मक मुद्दा है। उनका कहना है कि सरकार इसे नजरअंदाज करती रही और अपर्याप्त कदम उठाए। आप सरकार से सिख संगठनों को बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन अपेक्षित समाधान न होने से रोष बढ़ा है। वहीं, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामलों में न्याय का भरोसा अरविंद केजरीवाल ने दिया था, लेकिन भगवंत मान सरकार की देरी भी इस बढ़ती दूरी का एक कारण है।

पंजाब में आप किस रणनीति के तहत सिख पंथक संस्थाओं से टकराव ख़त्म नहीं करना चाहती है, यह सवाल उसकी कार्यशैली से और पेचीदा होता जा रहा है।