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जालंधर लोकसभा उपचुनाव में आप की जीत के मायने

जालंधर लोकसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को जीत हासिल हुई है। इसको 34.5 फ़ीसदी वोट मिले। कांग्रेस, भाजपा और शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। चारों पार्टियों के बीच कांटे का मुकाबला था। पहले यह सीट कांग्रेस के पास थी और वह चार बार से यहां चुनाव जीतती आई थी। लेकिन इस बार 'आप' से हार गई। पंजाब में आप सत्तासीन है और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल तथा मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। खुद केजरीवाल ने यहां रैलियां और रोड शो किए। आप सरकार का पूरा मंत्रिमंडल और विधायक मान की अगुवाई में जालंधर में डटे रहे। हर 'हुकुमती हथकंडा' विजय के लिए अख्तियार किया गया। कांग्रेस, भाजपा और अकाली-बसपा गठबंधन ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिरकार आप ने सीट हासिल कर ली।

ग़ौरतलब है कि पंजाब में मान सरकार के गठन के बाद संगरूर लोकसभा उपचुनाव हुए थे। अति आत्मविश्वास के चलते आप वहां से हार गई थी। मुख्यमंत्री वहां से सांसद थे और मानकर चल रहे थे कि आप वहां से बगैर ज्यादा मेहनत के जीत हासिल कर लेगी लेकिन हाशिए को हासिल अलगाववादी तथा खालिस्तानी नेता, अकाली दल अमृतसर के सिरमौर सिमरनजीत सिंह मान वहां से जीते। संगरूर हार के बाद आप फूंक-फूंक कर कदम उठा रही थी। 

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आम आदमी पार्टी ने जालंधर के पुराने कांग्रेसी और पूर्व विधायक सुशील कुमार रिंकू को पार्टी में शुमार करवाया और टिकट दिया। जालंधर लोकसभा हल्का आरक्षित है। उपचुनाव की पूरी कमान मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने खुद संभाली। पार्टी अगर हारती तो यह साल में संगरूर उपचुनाव के बाद दूसरी बड़ी हार होती। यकीनन इससे मान सरकार का रुतबा कम होता और प्रतिद्वंद्वियों को बल मिलता। सूबे में पार्टी के भीतर मान के खिलाफ बाकायदा कॉकस है। पार्टी हारती तो मान का इकबाल तार-तार होता।

वैसे, जालंधर लोकसभा उपचुनाव में दल-बदलूओं ने ख़ूब जलवा दिखाया! सांसद बने सुशील कुमार रिंकू पहले कांग्रेस में थे। आप में शामिल होते ही टिकट हासिल कर लिया। बेशक वह इसी शर्त पर आप में गए थे। उनके साथ बड़े पैमाने पर बेशुमार कांग्रेसियों ने आप का दामन थाम लिया। भाजपा प्रत्याशी इंदर सिंह अटवाल पहले शिरोमणि अकाली दल में थे। चुनाव से ऐन पहले उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली और टिकट भी। शिअद के कई नेता और कार्यकर्ता उनके साथ भाजपा में शामिल हुए। ऐसी आवाजाही तमाम प्रमुख राजनीतिक दलों में चुनाव से पहले बनी रही। 

पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील कुमार जाखड़ कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में आ गए थे। उनके साथ भी कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भाजपा में गए। दलबदल करने वाले कैप्टन, जाखड़, मनप्रीत सिंह बादल और शेष नेता जालंधर उपचुनाव में खूब सक्रिय रहे लेकिन मतदाताओं पर उनका 'नया (भाजपाई) रंग' नहीं चढ़ा। हालांकि ये दलबदलू आप की जीत और कांग्रेस की हार की वजह ज़रूर बने। दो दशक के बाद कांग्रेस जालंधर संसदीय सीट से हारी। 
कांग्रेस प्रत्याशी करमजीत कौर को जिताने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा, नवजोत सिंह सिद्धू, पार्टी प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और राणा गुरजीत सिंह ने एकजुट होकर पूरा जोर लगाया था।

कपूरथला से विधायक राणा गुरजीत सिंह के हाथों कमान थी। राणा गुरजीत सिंह चुनावी रणनीति में माहिर माने जाते हैं। लेकिन पंजाब कांग्रेस का यह 'चाणक्य' इस बार (बल्कि पहली बार) मात खा गया।

इस चुनावी शिकस्त ने भाजपा को भी बड़ा सबक़ दिया है कि तमाम कवायद के बावजूद वह पंजाब को 'पूरी तरह' अथवा मनमर्जी से हासिल नहीं कर सकती। केंद्र के आठ मंत्रियों ने भाजपा प्रत्याशी के लिए निरंतर प्रचार किया। जवाब सामने है। कहीं न कहीं यह भी साफ़ हुआ है कि बगैर शिरोमणि अकाली दल के भाजपा का जनाधार पंजाब में सिमटा हुआ है।

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कैप्टन अमरिंदर सिंह अब पंजाब भाजपा का बड़ा चेहरा हैं। वह कहते हैं, "जालंधर लोकसभा उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। जीत इसी वजह से हासिल हुई। एक उपचुनाव से तय नहीं किया जाना चाहिए कि पंजाब में भाजपा का कोई भविष्य नहीं।" उधर, शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता, पूर्व मंत्री डॉ. दलजीत सिंह चीमा कहते हैं, "आप ने सरकारी ताकत के दम पर यह उपचुनाव जीता है। 2024 के आम चुनावों में पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी।" आम आदमी पार्टी के बुढलाडा से विधायक और वरिष्ठ नेता प्रिंसिपल बुधराम के मुताबिक लोगों ने मान सरकार की नीतियों का समर्थन करते हुए पक्ष में मतदान किया।

जो हो, जालंधर उपचुनाव में आप की जीत के बड़े मायने हैं। सूबे की सियासत पर इसका दूरगामी असर है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

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अमरीक
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