पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार ने अपनी विवादास्पद लैंड पूलिंग पॉलिसी वापस ले ली। जानिए इस फैसले के पीछे की वजह और इसका राज्य के विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने सोमवार को अपनी विवादास्पद लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 को वापस लेने का ऐलान किया। इस फैसले को शिरोमणि अकाली दल ने अपनी बड़ी जीत करार देते हुए कहा कि यह उनके लगातार विरोध और धरनों के दबाव का नतीजा है। इस नीति के खिलाफ किसानों, जमीन के मालिकों और विपक्षी दलों ने तीखा विरोध दर्ज किया था, जिसके बाद पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी इस पर चार सप्ताह के लिए अंतरिम रोक लगा दी थी।
पंजाब सरकार ने मई 2025 में भूमि पूलिंग नीति की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य राज्य में शहरी आवास और व्यावसायिक विकास के लिए योजनाबद्ध और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना था। इसके तहत सरकार ने 164 गांवों में लगभग 65,000 एकड़ जमीन, विशेष रूप से लुधियाना जैसे क्षेत्रों में, आवासीय और औद्योगिक जोन विकसित करने के लिए अधिग्रहण करने की योजना बनाई थी। नीति के अनुसार प्रत्येक एकड़ जमीन के बदले जमीन मालिकों को 1000 वर्ग गज का आवासीय प्लॉट और 200 वर्ग गज का व्यावसायिक प्लॉट विकसित जमीन के रूप में देने का प्रावधान था। हालांकि, इस नीति को किसानों और विपक्षी दलों ने 'किसान विरोधी' और 'जमीन लूट योजना' करार दिया। शिरोमणि अकाली दल, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसे दलों ने नीति के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए।
अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने इसे 'किसानों की जमीन हड़पने की साजिश' बताया और कहा कि यह नीति पंजाब के कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगी। उन्होंने दावा किया कि आप सरकार दिल्ली के बिल्डरों के साथ मिलकर 30,000 करोड़ रुपये की डील कर रही है, जिससे किसानों को लंबे समय तक अपनी जमीन के बदले विकसित प्लॉट नहीं मिलेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा और नेशनल अलाइंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स जैसे किसान संगठनों ने भी नीति के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी दी थी। कम से कम 115 पंचायतों ने इस योजना के तहत जमीन देने से इनकार करते हुए प्रस्ताव पारित किए।
उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
7 अगस्त 2025 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने लुधियाना के एक निवासी गुरदीप सिंह गिल की याचिका पर सुनवाई करते हुए नीति पर अंतरिम रोक लगा दी। याचिका में दावा किया गया था कि नीति को बिना सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के जल्दबाजी में लागू किया गया, जो सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि नीति में कई कानूनी और प्रक्रियात्मक खामियां हैं, जैसे कि समयसीमा का अभाव, शिकायत निवारण तंत्र की कमी, और भूमिहीन मजदूरों और अन्य निर्भर लोगों के लिए पुनर्वास योजना का न होना। खंडपीठ ने कहा कि नीति जल्दबाजी में अधिसूचित की गई लगती है और इसमें अनिवार्य अध्ययनों की अनदेखी की गई। कोर्ट ने यह भी बताया कि नीति में अनिवार्य अधिग्रहण का प्रावधान था, जो 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के दायरे में आता है।
सरकार का यू-टर्न
उच्च न्यायालय के आदेश और बढ़ते विरोध के दबाव में मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप सरकार ने सोमवार शाम को नीति को वापस लेने का फैसला किया। आवास और शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव विकास गर्ग ने एक प्रेस नोट जारी कर कहा, 'सरकार 14 मई 2025 की भूमि पूलिंग नीति और इसके बाद के संशोधनों को वापस लेती है। इसके परिणामस्वरूप, सभी कार्रवाइयां तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाएंगी।'
सरकार पर कितना दबाव था, यह इससे समझा जा सकता है कि सरकार ने कैबिनेट की मंजूरी के बिना ही नीति को वापस लेने का फैसला किया, जिसके लिए अब वह बाद में मंजूरी लेगी।
अकाली दल की प्रतिक्रिया
शिरोमणि अकाली दल ने नीति की वापसी को पंजाब के लोगों और किसानों की ऐतिहासिक जीत करार दिया। एसएडी नेता मोहित गुप्ता ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, 'पंजाब सरकार ने विवादास्पद भूमि पूलिंग नीति को आधिकारिक तौर पर वापस ले लिया है। यह सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल के निरंतर विरोध और धरनों का परिणाम है।' एसएडी नेता डॉ. चीमा ने भी कहा कि यह फैसला जनता के मूड को भांपते हुए लिया गया, क्योंकि केजरीवाल की टीम को पता था कि पंजाबी इस लूट को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने इसे एसएडी के नियोजित 1 सितंबर के विरोध प्रदर्शन से पहले सरकार का "आत्मसमर्पण" बताया।
आप ने शुरू में नीति को किसान हितैषी बताते हुए दावा किया था कि यह पूरी तरह स्वैच्छिक है और इसमें किसी भी जमींदार से जबरन जमीन नहीं ली जाएगी। पार्टी ने विपक्ष पर प्रचार फैलाने का आरोप लगाया था। हालांकि, उच्च न्यायालय के आदेश और बढ़ते विरोध ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया। अब सरकार को 10 सितंबर तक उच्च न्यायालय में जवाब दाखिल करना है, जिसमें उसे नीति से संबंधित सभी चिंताओं को संबोधित करना होगा। विश्लेषकों का मानना है कि सरकार भविष्य में इस नीति को नए सिरे से लाने की कोशिश कर सकती है, लेकिन इसके लिए उसे कानूनी और प्रक्रियात्मक खामियों को दूर करना होगा।
पंजाब सरकार का भूमि पूलिंग नीति को वापस लेना एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो न केवल राजनीतिक दबाव और जन आंदोलन की ताकत को दिखाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना नीतियां लागू करना कितना जोखिम भरा हो सकता है। शिरोमणि अकाली दल और अन्य विपक्षी दलों ने इसे अपनी जीत के रूप में प्रचारित किया है, जबकि आप सरकार को इस झटके से उबरने के लिए नई रणनीति बनानी होगी।