किसान नेताओं का कहना है कि भाजपा नेता बाकायदा प्रचार कर रहे हैं कि पंजाब की किसान यूनियन सिर्फ जाट सिखों के हित देख रही हैं क्योंकि वे बड़े किसान हैं। भाजपा का चुनाव अभियान मज़हबी सिखों और जाट सिखों के बीच विभाजन को बढ़ा सकता है। हालांकि किसान आंदोलन में सभी समुदायों के किसान शामिल हैं। वहां जाट या मजहबी सिख की कोई अलग पहचान नहीं है। सभी किसान हैं।
ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा ने जाति विभाजन की इस रणनीति को हरियाणा में भी आजमाया था। हरियाणा में भाजपा ने मुख्य रूप से गैर-जाट मतदाताओं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर फोकस किया। पंजाब में भी भाजपा वही फॉर्मूला लागू कर रही है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य में दलितों का वोट शेयर लगभग 35 फीसदी है जो देश के किसी भी राज्य में सबसे अधिक है। जाट मतदाताओं का प्रतिशत पंजाब में सिर्फ 18 फीसदी है।
पंजाब के एक जानकार ने यह तक कहा कि “मामला जाट बनाम मजहबी सिख नहीं है। भाजपा आरक्षण में हिस्सेदारी को लेकर मजहबी/बाल्मीकि और रविदासिया/रामदासिया समुदायों के बीच पहले से मौजूद मतभेदों का इस्तेमाल कर रही है। रविदासिया/रामदासिया समुदाय भाजपा को वोट नहीं देते। इसलिए, ग्रामीण इलाकों में मजहबी सिखों और शहरी इलाकों में बाल्मिकियों का ध्रुवीकरण करा कर भाजपा फायदा लेना चाहती है।''