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क्या थी अजनाला की घटना जिसने अमृतपाल को पहचान दी ? 

पंजाब के अजनाला थाने पर कट्टरपंथियों का कब्जा, पिछले कुछ सालों में पंजाब के भीतर घटी कुछ बड़ी घटनाओं में से एक है। इस घटना में जो सबसे बड़ी बात निकलकर सामने आई है, वह है पंजाब में खालिस्तान की मांग और उसका समर्थन करने वाले लोग। इससे पहले जो भी घटनाएं हुईं वे सब छिटपुट और उकसाने वाली घटनाएं थीं। लेकिन अजनाला में हुई घटना पंजाब के भविष्य को लेकर डराने वाली है। इसके पीछे का कारण अजनाला में हुई घटना के पीछे जो व्यक्ति है, वह बहुत तेज गति से बढ़ता तीस साल का एक लड़का है, अमृतपाल सिंह। इंजिनीयरिंग बैकग्राउंड से आने वाला एक लड़का, जो दुबई में रहकर अपने परिवार का ट्रांसपोर्ट का बिजनेस सम्भाल रहा था। वह अचानक से भारत लौटता है और धर्म को रास्ता बनाकर राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय होता है। यह जरनैल सिंह भिंडरावाले का रास्ता है जिसने पंजाब में खालिस्तान की मांग को लेकर पंजाब में अलगाववाद को खूब हवा दी। जिससे पंजाब दशकों तक झूझता रहा।
एक साल पहले भारत लौटा अमृतपाल सिंह खालसा अपने फाएदे के लिए उन्हीं मुद्दों को सामने रख रह है जिनसे पंजाब पिछले कई सालों से जूझ रहा है। इसमें अलग पंजाब की मांग जिसे आम तौर पर खालिस्तान( खालसा राज) कहा जाता है, पंजाब में नशे की लत और राज्य से होने वाला पलायन।  इस सबके पीछे वह दिल्ली द्वारा किए जा रहे अन्याय और अत्याचारों बताता है। अपनी इन मांगों समर्थन के लिए वह महाराजा रणजीत सिंह के समय को ध्यान में रखता है। जब हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और कश्मीर एक ही राज्य के अंतर्गत आते थे।  
अमृतपाल सिंह अपने फाएदे के लिए उन्हीं मुद्दों को सामने रख रह है जिनसे पंजाब पिछले कई सालों से जूझ रहा है। इसमें अलग पंजाब की मांग, पंजाब में नशे की लत और राज्य से होने वाला पलायन। इसके लिए दिल्ली द्वारा किए जा रहे अन्याय और अत्याचारों को बताता है।
अजनाला में हुई घटना से पहले वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा ने अमृतपाल से काफी लंबी बात की थी। उसके साथ हुई बातचीत के बाद विनोद शर्मा लिखते हैं कि अमृतपाल हैं कि वह खालिस्तान समर्थक, स्वघोषित अलगाववादी नेता है, जो पंजाब के युवाओं को धार्मिक शिक्षा, हथियार देकर उनको दिल्ली द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ युवाओं को संगठित कर रहा है।
जिसे वह पंजाबियत की लड़ाई कहकर संबोधित करता है, और इसके लिए उसका रोल मॉडल जनरल भिंडरावाला है। उसके व्यवहार, और गतिविधियों से इसका आभास भी मिलता है कि वह दूसरा भिंडरावाला बनने की राह पर है। भिंडरावाले के बारे में बात करते हुए वह कहता है “मैं उनका सम्मान करता हूं, लेकिन मैं उनके जैसा नहीं बन सकता। वह एक धार्मिक शिक्षक हैं। आप उनके बाद के जीवन में बहुत सी चीजें सीख सकते हैं।
अलगाववादी होने के सवाल पर वह स्वीकार करता है कि वह अलगवादी है, 1993 में जन्मा अमृतपाल, भिंडरावाले से कभी नहीं मिला। भिंडरावाले से उसका परिचय उसकी शहादत में गाये जाने वाले स्थानीय संगीत के जरिये हुआ था। 6 फीट से अधिक की लंबाई वाले अमृतपाल के चलने का अंदाज से लेकर उसके बैठने के तरीके तक विवादित भिंडरावाले की याद दिलाते हैं।  वह कहता है कि 'मैं जो दस्तार पहनता हूं, वह गुरु गोबिंद सिंह जी ने पहना था और दमदमी टकसाल में संतजी के पूर्ववर्तियों और उत्तराधिकारियों ने भी पहना था।  मैं उसी परंपरा पर कायम हूं। दूसरे जो पहनते हैं वह परंपरा से बाहर हो सकता है, मेरी पोशाक नहीं।
मैं जो दस्तार पहनता हूं, वह गुरु गोबिंद सिंह जी ने पहना था और दमदमी टकसाल में संतजी के पूर्ववर्तियों और उत्तराधिकारियों ने भी पहना था। मैं उसी परंपरा पर कायम हूं। दूसरे जो पहनते हैं वह परंपरा से बाहर हो सकता है, मेरी पोशाक नहीं।
अमृतपाल की कहानी में परंपरा, धर्म, अध्यात्मवाद और न्याय जैसे बडे-बड़े आदर्श हैं जो उसने नशीली दवाओं के दुरुपयोग, बेरोजगारी और औपचारिक शिक्षा की कमी के इर्द-गिर्द गढ़े गए हैं। वह भले किसी भी मुद्दे को हल करने में सक्षम न हो लेकिन  वह तेज-तर्रार, आक्रामक माझा उच्चारण के साथ धाराप्रवाह अंग्रेजी और पंजाबी बोलने वाला युवा है। इनमें से कुछ लक्षण तो अलगाववादी भिंडरावाले के ही समान हैं।
आईएसआई (पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) द्वारा फंड किये जाने के सवाल पर वह कहता है "अगर आईएसआई फंड कर रही है, तो मुझे पता होना चाहिए क्योंकि इसमें पैसा शामिल है (हंसते हुए)। कोई मुझे बताए कि वह पैसा कहां जा रहा है। हो सकता है आईएसआई किसी को पैसा दे रहा हो लेकिन यह मुझ तक नहीं पहुंच रहा है सिखों के साथ धन तो कोई मुद्दा ही नहीं है, यदि आप उनके साथ ईमानदार हैं तो वे आपको वह सब कुछ देंगे जो उनके पास है। हम ऑन-लाइन ट्रांसफर या बहुत ज्यादा नकद नहीं लेते हैं।
अमृतपाल ऐसा ही जवाब अलगाववादी होने के सवाल पर भी देता है वह कहता है ‘बेशक, मैं अलगाववादी हूं, एक पंजाबी और सिख हूं।  हर पंजाबी बाकी भारत से अलग है। अलगाववाद के बारे में वह कहता है कि यदि हम एक-दूसरे के साथ शांति नहीं रह सकते हैं, तो हमें इसके लिए अलग होना चाहिए। शांतिपूर्ण अलगाव बुरी बात नहीं है, इस पर चर्चा होनी चाहिए।
लगाववाद के बारे में वह कहता है कि यदि हम एक-दूसरे के साथ शांति नहीं रह सकते हैं, तो हमें इसके लिए अलग होना चाहिए। शांतिपूर्ण अलगाव बुरी बात नहीं है, इस पर चर्चा होनी चाहिए।
पंजाब के युवाओं का दिल्ली के खिलाफ होने के उनके दावे का आधार क्या है? इस सवाल पर वह पूछता है कि दिल्ली की सीमाओं पर हुए किसान आंदोलन में भिंडरावाले की तस्वीरें ले जाने उन्हें और किसने प्रेरित किया है। वे धर्म और खालिस्तान के बारे में क्यों बोल रहे थे? उनका तर्क है कि सिख युवाओं की ऊर्जा कृषि कानूनों के खिलाफ नहीं थी।
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अब जबकि यह साफ है पंजाब के भीतर क्या हो रहा है और कौन इसके पीछे है। यब जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि उसके पीछे कौन है। और अमृतपाल के इस तरह बढ़ते जाने से पंजाब की क्या स्थिति हो सकती है क्योंकि वहां जो भी होगा वह केवल पंजाब तक सीमित नहीं रहेगा, देर सबेर पूरे देश पर उसका असर पड़ेगा। ऐसे में यह जानना बहुत जरुरी हो जाता है कि पंजाब की आंतरिक राजनीति में क्या हो रहा था।
अमृतपाल सिंह दुबई से लौटने का कारण बताते हुए कहता है कि मैं पंजाब वापस इसलिए लौटा क्योंकि, 2015 के बरगाड़ी में हुई गुरुग्रंथ साहब की बेअदबी को बर्दास्त नहीं कर पाया, उसने ही मुझे सिखी (धर्म) की ओर आकर्षित किया। इसकी बाद की घटनाओं में और सिख युवाओं के बहिष्कार के साथ-साथ पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू की गिरफ्तारी ने मुझे पंजाब वापस लौटने पर मजबूर कर दिया। अमृतपाल जिस वारिस पंजाब दे जत्थे का प्रमुख है वह दीप सिद्धू का ही बनाया हुआ है। पिछले साल ही एक कार एक्सीडेंट में दीप सिद्धु की मौत हो गई थी। उसके बाद ही अमृतपाल को जत्थे की कमान सौंप दी गई थी।
  अमृतपाल भले ही दूसरा भिंडरावाले होने के दावों का विरोध करे लेकिन भिंडरावाले की विरासत में उसकी हिस्सेदारी को नजरअंदाज करना मुश्किल है।  सितंबर, 2020 को मोगा जिले के रोडे स्थित भिंडरावाले के गांव में ही उसने वारिस पंजाब दे का नियंत्रण संभालकर दीप सिद्धू की सेलिब्रिटी छवि के साथ अपने को जोड़ा था।
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क़मर वहीद नक़वी
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