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घबराएँ नहीं, राष्ट्रवाद अर्थव्यवस्था को रास्ते पर ले ही आएगा!

अब क्या हो गया? फिर बिल्ली छींक गई? क्या किया जाए? किसी को कुछ समझ है? हमारी सेनाएँ और शक्तिशाली हो गई हैं। मंत्रोच्चार के बाद अपाचे हेलीकॉप्टर वायुसेना का हिस्सा बन गया है। चंद्रयान-2 अपना काम अच्छे से कर रहा है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटे एक महीना हो गया है।

कमबख़्त शेयर बाजार!

बैंकों को और ताक़तवर बनाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। सरकार की ओर से इंडस्ट्री को काफ़ी पैकेज दिए गए हैं। इंसानी जानें बचाने के लिए नए ट्रैफ़िक रूल्स वजूद में आ गए हैं। इतना होते हुए भी अर्थव्यवस्था लगातार हिचकोले खा रही है, तो क्या करें? कमबख़्त शेयर बाजार भी ना...! पता नहीं क्यों उठ नहीं पा रहा है? बेइमानी के दौर में जो अर्थव्यव्स्था कुलाँचे भर रही थी, ईमानदारी के दौर में क्यों साँप सूँघ गया उसे? किस चीज का डर है? क्यों बाज़ार ग्राहकों से दूर हैं? अच्छा! इंडिया डिजिटल बन रहा है।
इसलिए नक़दी बाजारों से ग़ायब है। जानकारों की मानी जाए तो नक़दी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। रीढ़ अब ज़बरदस्त चोटिल है। तो क्या इस चोटिल रीढ़ का इलाज नहीं है? बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की मानी जाए तो उनके पास इस चोटिल रीढ़ का इलाज है। लेकिन सरकार उन्हें सुन ही नहीं रही है।

तेरी याद आई तेरे पद से हटने के बाद!

कोई कह रहा है कि कारोबारी और उद्यमी अब डॉक्टर मनमोहन सिंह को याद कर रहे हैं। गले तक भ्रष्टाचार में डूबे कई मंत्रियों के मुखिया रहे डॉ. मनमोहन सिंह की याद क्यों? इसलिए कि वह अर्थशास्त्री हैं? वित्त मंत्री रह चुके हैं? आरबीआई के गवर्नर रह चुके हैं? उन्हें बही-खाते की मुल्क में सबसे ज़्यादा समझ है? लेकिन वह हैं तो कांग्रेसी।
कांग्रेस-मुक्त भारत बनाना है तो डॉ. मनमोहन सिंह को याद नहीं करना होगा। कमाल यह भी है कि डॉ. मनमोहन सिंह इशारा कर चुके हैं कि अर्थव्यवस्था लंबे समय तक पटरी पर नहीं आ पाएगी।

मॉब-लिंचिंग की चिंगारी!

इधर, सिंह इस तरह की बातें कह रहे हैं तो उधर, ख़बर है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में बच्चे उठाने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं। पिछले क़रीब 93-94 दिनों में झारखंड, बिहार और दिल्ली सहित कई राज्यों में चोरी को लेकर ही मॉब-लिंचिंग हुई है। क्या अब कांग्रेस शासित राज्यों में मॉब-लिंचिंग की चिंगारी सुलग रही है? मॉब-लिंचिंग ने ही मुल्क की अर्थव्यवस्था की रीढ़ को क्षतिग्रस्त किया है। इसलिए निवेशक भारत का रुख नहीं कर रहे हैं। चीन और अमेरिका की खुन्नस पहले ही निवेशकों को डरा चुकी है।
मॉब-लिंचिंग के नाम से ही निवेशकों की जान हलक में आ जाती है। सेनापति राजनाथ सिंह जब गृहमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि मॉब-लिंचिंग 1984 से मुल्क में हो रही है।
1984 को कौन भूल सकता है? निहत्थे सिखों का नरसंहार हुआ था 1984 में। लेकिन 84 के 8 साल बाद ही मुल्क में आर्थिक उदारीकरण हुआ था। उसके बाद से अर्थव्यवस्था पटरी पर सरपट भाग रही थी। अब अर्थव्यवस्था क्यों रेंगने को मजबूर है? कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने कोई टोना-टोटका कर दिया हो? इसलिए नक़दी बाज़ारों से ग़ायब हो गई है।
नोटबंदी कर आतंकवाद और नक्सलवाद को कुचलने का दम भरा गया था। लेकिन नोटबंदी के सवा दो साल बाद पुलवामा हमला हुआ। आतंकवाद, पाकिस्तान, कब्रिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिए ही देश की जनता ने मोदी 2.0 बनवाई। फिर किस डर से नक़दी बाज़ारों से ग़ायब हो गई? हौसला रखिए। राष्ट्रवाद अर्थव्यवस्था को कहीं जाने नहीं देगा! जांबाज अर्थव्यवस्था को रास्ते पर ले ही आएँगे! कुछ बरस तंगी के कट गए तो क्या? 
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मनोज नय्यर
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