दुर्गा पूजा सिर्फ़ मिथकीय नहीं, यह स्त्री के सम्मान, ताक़त, सामर्थ्य और उसके स्वाभिमान की सार्वजनिक पूजा है। जिस समाज में स्त्री का स्थान सम्मान और गौरव का होता है, वही समाज सांस्कृतिक लिहाज से समृद्ध होता है। ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।’ इस लाचारी के बरक्स ‘के बोले माँ तुमि अबले’ की हुंकार इस फर्क को साफ़ करती है।
रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखाअमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल समूहराक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध कपि विषम हूह,विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण,लोहित लोचन रावण मदमोचन महीयान,राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर,उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर,अनिमेष राम विश्वजिद्दिव्य शरभंग भाव,विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि खर रुधिर स्राव,रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दलबल,मुर्छित सुग्रीवांगद भीषण गवाक्ष गय नल,वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल रोध,गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध,उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुःप्रहर,जानकी भीरू उर आशा भर, रावण सम्वर।लौटे युग दल। राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल,बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल।वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिह्नचल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न।'राम की शक्तिपूजा' की अन्तिम पंक्तियाँ देखिए-"साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !"कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वरवामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभरश्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।
बचपन से हमें घुट्टी पिलाई गई कि जब-जब आसुरी शक्तियों के अत्याचार या प्राकृतिक आपदाओं से जीवन तबाह होता है, तब शक्ति का अवतरण होता है। पर आज की पीढ़ी के लिए शक्ति पूजा गरबा, डांडिया और जात्रा के अलावा और क्या है?