आज दूध फट गया जैसे कि स्वार्थ सिद्धि न होने पर कोई भी छुटभैय्या नेता अपने दो विधायकों को लेकर अलग हो जाता है और लोकतंत्र पर संकट आ जाता है। लेकिन फट जाने के बाद दूध के छेने में वह बेशर्मी नहीं कि फिर हीं-हीं करके आत्मा की आवाज की आड़ में अलग हुए पानी में मिल जाए। तत्काल कोई विकल्प था सो जैसे ही तोताराम आया पत्नी ने उसे कल शाम का बचा हुआ बेल के शर्बत का एक गिलास दिया।

रमेश जोशी ने व्यंग्य में निर्जला एकादशी और बकरीद के बहाने धार्मिक कट्टरता, राजनीतिक अवसरवाद और सामाजिक पाखंड पर करारा प्रहार किया है। हास्य और तर्क के बीच समाज की परतें उधेड़ता यह व्यंग्य पढ़ें।
आदत के विपरीत तोताराम ने कहा- भाभी, कोई और दिन होता तो बात और थी लेकिन आज निर्जला एकादशी है इसलिए मैं जल ग्रहण नहीं कर सकता।