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आईपीएल : खिलाड़ियों की तरह भारतीय कोचों के लिए भी रिज़र्वेशन होना चाहिए?

यह सच है कि आईपीएल में अब तक किसी भी भारतीय कोच ने ट्रॉफी नहीं जीती है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि विदेशी कोच की नाकामियों को आसानी से नज़रअंदाज़ भी कर दिया जाता है।  क्रिकेट इतिहास के महानतम कोच बुकानन आईपीएल में बुरी तरह से नाकाम रहे। यही हाल 2011 में टीम इंडिया को चैंपियन बनवाने में योगदान देने वाले गैरी कर्स्टन का रहा।
विमल कुमार

'मैं आइपीएल में अधिक भारतीय कोच देखना चाहूंगा। मैं कई भारतीयों को मुख्य कोच के रूप में आइपीएल में देखना चाहता हूं। मुख्य कोच के रूप में सिर्फ एक भारतीय का होना एक विडंबना है। मुझे लगता है कि किसी समय भारतीय कोच की संख्या अधिक होगी।'


अनिल कुंबले, हेड कोच, किंग्स इलेवन पंजाब

किंग्स इलेवन पंजाब के हेड कोच अनिल कुंबले के इस बयान से उम्मीद की जा सकती है बीसीसीआई की नींद ज़रूर टूटेगी। अजीब इत्तेफ़ाक है कि मौजूदा बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली हैं और इसके बावजूद भारतीय कोच को आईपीएल में उस अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है, जिसके वे हक़दार हैं। आखिर क्या वजह है इसकी? क्रिकेट का सबसे अमीर बोर्ड आईपीएल कोचिंग के मामले में ग़रीब क्यों है?

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विदेशी कोच बेहतर?

रिकी पोंटिंग ने मुंबई इंडियंस को चैंपियन बनवाया है, लेकिन दिल्ली कैपिटल्स के साथ अब तक ट्रॉफी नहीं जीत पाये हैं। ट्रेवर बेलिस ने कोलाकाता नाइट राइडर्स को चैंपियन बनवाया है और इस बार सनराइजर्स हैदराबाद की बाग़डोर उनके हाथों में हैं। ठीक उसी तरह माहेला जयावर्दने ने मुबंई के साथ ट्रॉफी जीती है तो स्टीफ़न फ्लेमिंग ने चेन्नई सुपर किंग्स के लिए शानदार भूमिका निभाई है।
इन विदेशी कोच की क़ाबिलियत पर शायद आलोचना नहीं हो सकती है, लेकिन ब्रैंडन मैक्कलम (कोलकाता), एंड्रयू मैक्डोनल्ड (राजस्थान) और साइमन कैटिच (बैंगलोर) तो पहली बार आईपीएल में हेड कोच की भूमिका निभा रहें हैं। 

देखिये, क्रिकेट कोचिंग की एक सच्चाई यह है कि हेड कोच के तौर पर आपका नाम और रुतबा बड़ा होना चाहिए।’


शिशिर हतंगड़ी, सीईओ, वड़ोदा क्रिकेट एसोसिएशन

नाम और रुतबा

यह कहना है आईपीएल के पहले सीज़न में मुंबई इंडियंस के लिए सीआईओ की भूमिका निभा चुके शिशिर हतंगड़ी का, जो फ़िलहाल वड़ोदा क्रिकेट एसोसिएशन के सीईओ हैं।

हेड कोच अगर विदेशी है तो ज़ाहिर सी बात है कि सपोर्ट स्टाफ़ भी ज़्यादातर विदेशी ही होगा, क्योंकि आईपीएल में इतना वक़्त नहीं होता है कि आप किसी नए शख्स के साथ आने के साथ ही तालमेल बिठा लें। यही वजह है कि दिल्ली कैपिटल्स के गेंदबाज़ी कोच जेम्स होप्स ने निजी कारणों के चलते आईपीएल 2020 के लिए उपलब्ध नहीं हो पाये तो उनकी जगह पोंटिंग ने अपने पुराने दोस्त रायन हैरिस को गेंदबाज़ी कोच के लिए चुना।

‘आप मुझे यह बतायें कि ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश लीग या फिर दुनिया की किसी दूसरी टी-20 लीग में भारतीय कोचों को कितने मौके मिलते हैं? लेकिन, हमारे यहां आईपीएल में हम अपने ही कोचों को अहमियत नहीं देते हैं।’


लालचंद राजपूत, पूर्व कोच, टी20 भारतीय टीम

यह सवाल करते हैं लालचंद राजपूत जो 2007 में टी20 वर्ल्ड कप वाली टीम इंडिया के कोच थे। इतना ही नहीं, पिछले साल कनाडा में हुई ग्लोबल टी20 लीग में भी वह इकलौते भारतीय कोच थे। राजपूत फ़िलहाल ज़िम्बॉब्वे के राष्ट्रीय कोच हैं। इससे पहले वह अफ़ग़ानिस्तान टीम के हेड कोच रह चुके हैं, लेकिन पहले सीज़न के बाद से आईपीएल में उन्हें दोबारा मौका सहायक कोच के तौर पर भी नहीं मिला। 

‘ देखिये, आईपीएल एक ग्लोबल लीग है और उसका स्तर बहुत बड़ा है। ऐसा नहीं है कि रणजी ट्रॉफी में अच्छा करने वाले कोच स्वभाविक तौर पर टी20 कोचिंग का हिस्सा हो सकतें हैं, क्योंकि दोनों अलग- अलग तरह की क्रिकेट है।’


हेमंत दुआ, पूर्व सीईओ, दिल्ली कैपिटल्स

भारतीय कोच ने ट्रॉफ़ी नहीं जीती

बहरहाल, लगभग सभी जानकार इस बात पर सहमत हैं कि हर फ्रैंचाइजी का असली टार्गेट टूर्नामेंट जीतना होता है और इसके लिए उन्हें जो भी बेस्ट लगता है, उसका चयन होता है। बहरहाल, लगभग सभी जानकार इस बात पर सहमत हैं कि हर फ्रैंचाइजी का असली टार्गेट टूर्नामेंट जीतना होता है और इसके लिए उन्हें जो भी बेस्ट लगता है, उसका चयन होता है। यह सच है कि आईपीएल में अब तक किसी भी भारतीय कोच ने ट्रॉफी नहीं जीती है। 
लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि विदेशी कोच की नाकामियों को आसानी से नज़रअंदाज़ भी कर दिया जाता है।  क्रिकेट इतिहास के महानतम कोच बुकानन आईपीएल में बुरी तरह से नाकाम रहे। यही हाल 2011 में टीम इंडिया को चैंपियन बनवाने में योगदान देने वाले गैरी कर्स्टन का रहा। दिल्ली कैपिटल्स के साथ नाकाम होने के बावजूद उन्हें रॉयल चैलेजंर्स बैंगलोर ने चुना। 

कप्तान की भूमिका

दूसरी सच्चाई यह भी है कि आज भी क्रिकेट कोच के चयन में कप्तान की ही भूमिका सबसे अहम होती है। क्योंकि टीम तो वही चलाते हैं और नतीजे चाहे अच्छे हों या बुरे, वे सीधे उन्हीं के माथे पर जाते हैं। और ऐसा भी नहीं कि भारतीय कोच बिल्कुल ही आईपीएल से नदारद हैं।

पूर्व क्रिकेटर आकाश चोपड़ा के मुताबिक- ‘अगर राजस्थान रॉयल्स ने स्थानीय खिलाड़ी दिशांत याज्ञनिक को फील्डिंग कोच चुना तो कहीं ना कहीं ये बात तो दिखती है कि धीरे-धीरे ही सही भारतीय खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व आईपीएल में बढ़ रहा है।’

बढ़ रहे हैं भारतीय कोच

राजस्थान में पूर्व भारतीय खिलाड़ी साईराज बहुतुले भी जुड़े हैं जो गुजरात रणजी टीम के भी हेड कोच हैं। दिल्ली के लिए विजय दाहिया (पूर्व रणजी हेड कोच दिल्ली रह चुके हैं जिसने रणजी ट्रॉफी जीती) हेड टैलेंट स्कॉउट की भूमिका निभाते हैं। इससे पहले दाहिया कोलकाता नाइट राइडर्स में सहायक कोच थे। मोहम्मद कैफ़ उनके साथ बल्लेबाज़ी कोच हैं।

इन सबके अलावा अलग अलग टीमों में श्रीधरण श्रीराम (ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय टीम के साथ स्पिन कंसल्टेंट की भूमिका निभा चुके हैं), वसीम ज़ाफर (इस बार उतराखंड रणजी टीम के हेड कोच भी हैं, इस बार कुंबले का भार कम करने के लिए पंजाब टीम का हिस्सा हैं), एल बालाजी (चेन्नई के स्थानीय खिलाड़ी होने के चलते सहायक गेंदबाज़ी कोच), राजीव कुमार (धोनी के पूर्व मित्र होने के साथ-साथ झारखंड रणजी टीम के कोच होने का भी फ़ायदा उन्हें मिला), अभिषेक नायर (कोलकाता), ओंकार साल्वी (कोलकाता) सहायक कोच के तौर पर जुड़े नज़र आते हैं।
जहां तक कुंबले के अलावा बड़े नामों का सवाल है तो वी. वी. एस. लक्ष्मण सनराइजर्स हैदाराबाद के लिए प्रभावशाली मेंटोर की भूमिका में हैं तो मुंबई इंडियंस के लिए डायेरक्टर ऑफ क्रिकेट ऑपरेशंस ज़हीर ख़ान हैं।

घरेलू क्रिकेट में 30 रणजी टीमों के अगर टॉप 10 फीसदी यानी कुल 3 हेड कोच भी अगर आईपीएल में उसी भूमिका में नहीं हैं तो कहीं ना कहीं बीसीसीआई को भी इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए।

भारतीय कोचों के लिए रिज़र्वेशन?

आईपीएल कोचिंग में आत्मनिर्भर होने के लिए भारतीय कोचों के लिए भी राजपूत खिलाड़ियों की ही तरह रिजर्वेशन की ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं। राजपूत के क्रांतिकारी सुझाव पर कई जानकार इसे लागू नहीं कर पाने की असमर्थता का तर्क भी दे सकतें हैं।  

शुरुआती सालों में आईपीएल में भारतीय कोच को कोई नहीं पूछता था और सिर्फ ऑस्ट्रेलियाई कोचों की ही तूती बोलती थी। लेकिन, पिछले कुछ सालों में इस मामले में काफी सुधार हुआ है लेकिन अब भी संतुलन बेहतर करने के लिए लंबा फासला तय करना बाकी है। 

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