क्या महा विकास अघाड़ी की सरकार भीमा कोरेगाँव हिंसा प्रकरण की जाँच करवाएगी। और क्या नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में महाराष्ट्र पुलिस की जाँच का नजरिया बदलेगा?
निज़ाम बदलते ही फ़रमान बदलने लगे! क्या अब भीमा कोरेगाँव मामले में आरोपी बनाए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं से केस हटाया जाएगा?
वाट्सऐप स्पाइवेयर से निगरानी रखने और मोबाइल में पड़ी पासवर्ड जैसी भी गुप्त जानकारी को चुराए जाने की ख़बर से भारत में तूफ़ान खड़ा होने की संभावना है।
एल्गार परिषद मामले में सीपीआई माओवादी से जुड़े होने के आरोप में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनों गोंजाल्विस को नहीं मिली ज़मानत।
भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में गौतम नवलखा की याचिक पर सुप्रीम कोर्ट में आख़िरकार सुनवाई हुई। लेकिन इससे पहले एक-एक कर पाँच जजों ने ख़ुद को अलग कर लिया था। अधिकतर जजों ने कोई कारण नहीं बताया था। ऐसा क्यों हुआ? सत्य हिंदी पर देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को 15 अक्टूबर तक गिरफ़्तारी से राहत दे दी है। यानी अगली सुनवाई तक उनकी गिरफ़्तारी नहीं हो सकती है।
भीमा कोरेगाँव मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की याचिका सुनने से पाँचवे जज ने इनकार करते हुए ख़ुद को मामले से अलग कर लिया।
इस मामले में अदालत में अब तक पुलिस के द्वारा ठोस सबूत के नाम पर सिर्फ़ कुछ किताबें और सीडी दी गयी हैं।
गुजरात के मेहसाणा ज़िले में दलितों ने मरा जानवर उठाना बंद कर दिया है। उन्हें चाहिए बराबरी का हक़ और सम्मान।
क्या असहमति के बिना लोकतंत्र संभव है? इस पर सरकारें भले ही घालमेल करती हों, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने साफ़ संदेश दिया है कि असहमति लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।