बिना चर्चा के क़ानूनों का ‘आना-जाना’: संसदीय लोकतंत्र में घुन
तीन कृषि क़ानून अच्छे थे या बुरे, किसानों के भले के लिए थे या उद्योगपतियों के भले के लिए, सरकार की मंशा अच्छी थी या शोषणकारी इसका जवाब जानने के लिए संसद के माध्यम से ‘चर्चा का प्रावधान’ है। लेकिन क्या चर्चा हुई?