‘सामान्य राजनीति’ के लिए पार्थो चटर्जी का विलाप भारत में तथाकथित बुद्धिजीवियों की मूर्खता और बुद्धिहीनता का प्रमाण है। अपने लेख 'किसी भी चीज़ से ज़्यादा मोदी यह जानते हैं कि मौके का फायदा कैसे उठाया जाए' जो 'wire.in' में प्रकाशित हुआ था, चटर्जी मोदी के शासन में ‘सामान्य राजनीति’ के निलंबन की निंदा करते हुए लिखते हैं, “यह राजनीति ही है जो देश के सार्वजनिक जीवन में शालीनता और करुणा का स्तर सुनिश्चित करती है।’’
'सामान्य राजनीति' के लिए हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों का विलाप
- विचार
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- 23 May, 2020

प्रतीकात्मक तसवीर।
हमारे राजनेता जिन्हें जनता के हित का वास्तव में कोई ख्याल नहीं, सत्ता हासिल करने के लिए और धन अर्जित करने के लिए जाति और धर्म को आधार बनाकर नफरत फैलाने, हेरफेर करने और समाज में ध्रुवीकरण करने के विशेषज्ञ हैं। जातिवाद और सांप्रदायिकता सामंती ताकतें हैं, अगर भारत को प्रगति करनी है तो उसे इन्हें नष्ट करना होगा। लेकिन संसदीय लोकतंत्र उन्हें और मजबूत करता है।
लेकिन क्या यह 'सामान्य राजनीति' थी, जिसे 1950 में संविधान लागू होने के बाद भारत में प्रचलित किया जा रहा था? जिसके कारण भयंकर ग़रीबी, रिकॉर्ड बेरोज़गारी, भयावह बाल कुपोषण का स्तर, 3 लाख से अधिक किसानों की आत्महत्यायें, स्वास्थ्य देखभाल और अच्छी शिक्षा का अभाव, भारत भर में व्यापक भ्रष्टाचार आदि हुआ। क्या चटर्जी का मानना है कि यह शालीनता और करुणा है?