भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी केवल 19वीं और 20वीं शताब्दी तक सीमित नहीं है; इसकी जड़ें 18वीं शताब्दी में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान जैसे नायकों तक जाती हैं। "शेर-ए-मैसूर" टीपू सुल्तानके न केवल अपने साहस और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि आधुनिक रॉकेट तकनीक के शुरुआती विकास में उनके योगदान को भी विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है। फिर भी, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की नयी पाठ्यपुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडिया एंड बियॉन्ड’ से टीपू सुल्तान) का उल्लेख हटा दिया गया है। यह निर्णय सवाल उठाता है: क्या टीपू सुल्तान की जांबाजी और देशप्रेम को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में कोई दिक्कत है? क्या यह कर्नाटक में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए टीपू को खलनायक और हिंदू-विरोधी बताने के बीजेपी और आरएसएस के कथित दबाव का परिणाम है?