बात 1957 की है। तमिलनाडु (मद्रास) में के. कामराज मुख्यमंत्री थे। रास्ते में उन्होंने एक व्यक्ति को देखा, जो अपने बच्चे के साथ कहीं जा रहा था। कामराज ने उससे पूछा कि क्या बच्चा स्कूल जाता है? उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि जब वह कुछ काम करेगा, तो दो पैसा कमाएगा। तभी खाना खाएगा। स्कूल जाने का समय कहाँ है? के. कामराज ने उस व्यक्ति से पूछा कि अगर बच्चे को खाना मिले तब उसे स्कूल भेजोगे? व्यक्ति ने जवाब दिया- बिल्कुल हुजूर! के. कामराज ने लौटकर अपने उच्च अधिकारियों को निर्देश दिया कि स्कूल में बच्चों के खाने की व्यवस्था की जाए। इसके बाद एक स्थान पर गेहूँ का नमकीन दलिया बनाया जाता फिर एक वैन में रखकर स्कूल पहुँचाया जाता। बच्चे अपने हाथ से निकालकर नमकीन दलिया खाते और पढ़ाई करते। यही व्यवस्था आगे चलकर स्कूलों में मिड डे मील कहलाई।
दक्षिणी राज्य शिक्षा में क्रांति कर रहे तो यूपी के स्कूल बंद क्यों हो रहे?
- विश्लेषण
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- 16 Jul, 2025

प्रतीकात्मक तस्वीर
उत्तर प्रदेश में सैकड़ों स्कूलों को बंद क्यों किया जा रहा है? क्या वजह है कि दक्षिण भारत के राज्य शिक्षा में नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं? जानिए, कैसी है शिक्षा नीति।
के. कामराज इस व्यवस्था के जन्मदाता बने। दक्षिण भारत और खासकर तमिलनाडु के स्कूलों में शिक्षा के साथ बच्चों का पोषण, सरकारों की प्राथमिकता रहा है। 1977 में एम. जी. रामचंद्रन मुख्यमंत्री बने। उनके समय स्कूलों में बच्चों के मध्याह्न भोजन में दलिया के स्थान पर ज़्यादा पौष्टिक सांभर और चावल दिया जाने लगा। जब करुणानिधि मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने बच्चों के पोषण में गुणवत्तापरक सुधार करने के लिए सप्ताह में तीन दिन अंडा देना शुरू किया। वर्तमान स्टालिन सरकार मध्याह्न भोजन के साथ मॉर्निंग टिफिन यानी सुबह का नाश्ता भी दे रही है। मिड डे मील में उत्पम, पोंगल और मीठा सहित स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन शामिल है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।