इक्कीसवीं सदी का चाल चलन बिगड़ गया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतिकारों और रणनीतिकारों ने जो आख्यान रचा है उससे साफ है कि यह सदी किसी महान विचार की नहीं बल्कि अन्याय और हथियारों की सदी होने जा रही है। जाहिर है कि इसे न्याय और शांति की सदी बनाने के लिए नए किस्म के युद्ध की आवश्यकता होगी। हम देखें या न देखें, कहें या न कहें लेकिन पूंजी के वैश्वीकरण को पलटने के नए अभियान के तहत साम्राज्यवाद अब नए रूप में उपस्थित हो रहा है।