“13 जुलाई 1931 के शहीदों की कब्र पर श्रद्धांजलि अर्पित की और फ़ातिहा पढ़ा। अनिर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की और मुझे नौहट्टा चौक से पैदल चलने को मजबूर किया। उन्होंने नक्शबंद साहब की दरगाह का दरवाज़ा बंद कर दिया और मुझे दीवार फाँदने पर मजबूर किया। उन्होंने मुझे शारीरिक रूप से रोकने की कोशिश की, लेकिन आज मैं रुकने वाला नहीं था!”
कश्मीर के ‘शहीद दिवस’ से क्या तकलीफ़ है मोदी सरकार को?
- विश्लेषण
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- 14 Jul, 2025

केंद्र सरकार कश्मीर के ‘शहीद दिवस’ को लेकर असहज क्यों है? उमर अब्दुल्ला के साथ ग़लत व्यवहार क्यों किया गया? शहीद दिवस की ऐतिहासिक व राजनीतिक अहमियत क्या है? जानिए इसके पीछे की सच्चाई और सरकार की आपत्ति के कारण।
यह जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का एक्स पर किया गया पोस्ट है। 14 जुलाई को दोपहर किये गये इस पोस्ट के साथ उन्होंने एक वीडियो भी नत्थी किया था जिसमें उनके साथ की जा रही धक्का-मुक्की साफ़ नज़र आ रही थी। यह आश्चर्यजनक था कि मुख्यमंत्री को शहीदों की कब्र पर फ़ातिहा पढ़ने से रोकने की कोशिश की गयी। 2019 में अनुच्छेद 370 ख़त्म किये जाने के बाद 13 जुलाई को शहीद दिवस मनाने के लिए हमेशा से जारी सार्वजनिक अवकाश को तो ख़त्म कर दिया गया था, लेकिन छह साल बाद शहीदों की कब्र पर फूल भी केंद्र को बर्दाश्त नहीं, यक़ीन करना मुश्किल है। उमर अब्दुल्ला ने एक दूसरे पोस्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग ख़त्म किये जाने के फ़ैसले पर दिवंगत अरुण जेटली की प्रतिक्रिया को इस संदर्भ में याद किया- “यह अनिर्वाचित लोगों का निर्वाचित लोगों पर अत्याचार है!”
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं
केंद्र सरकार के वादे के बावजूद जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया गया है और चुने हुए मुख्यमंत्री के पास एक चपरासी के ट्रांसफ़र की भी शक्ति नहीं है। वे एक केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं जिस पर राज लेफ़्टिनेंट गवर्नर के माध्यम से मोदी सरकार ही कर रही है। उमर अब्दुल्ला के पोस्ट पर झलकती बेबसी साफ़ नज़र आ रही थी। ममता बनर्जी से लेकर एम.के.स्टालिन तक इंडिया गठबंधन के के तमाम मुख्यमंत्रियों और नेताओं ने अपनी आक्रोश भरी टिप्पणियों के साथ रीपोस्ट किया। इस ख़बर को सुर्खियों से ग़ायब करने वाले मीडिया के लिए यह एक चुनौती थी।