सन 2016 में आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि अब समय आ गया है जब हमें हमारी नई पीढ़ी को हर महत्वपूर्ण मौके पर भारत माता की जय का नारा लगाना सिखाना होगा। इस पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि अगर कोई उनकी गर्दन पर चाकू भी अड़ा दे तब भी वे भारत माता की जय नहीं कहेंगे। हाल (जून 2025) में केरल में इस मुद्दे पर फिर एक विवाद खड़ा हो गया। केरल के राज्यपाल राजेन्द्र अर्लेकर ने स्काउट विद्यार्थियों के लिए राजभवन में एक पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया। कार्यक्रम केरल सरकार के शिक्षा विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में मंच की पृष्ठभूमि में भारत माता का चित्र लगा था। वह वही चित्र था जिसे आरएसएस प्रचारित करता आया है और जिसमें भारत माता भगवा वस्त्र हाथ में लिए एक हिन्दू देवी जैसी दिखती हैं।
केरल में भारत माता की छवि पर तकरार, राज्यपाल ने बढ़ाया आरएसएस का एजेंडा?
- विचार
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- 18 Jul, 2025
केरल में ‘भारत माता’ की छवि को लेकर विवाद तेज़ हो गया है। राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। जानिए कैसे सांस्कृतिक पहचान ने राजनीतिक एजेंडा को आकार दिया।

केरल सरकार के शिक्षा मंत्री ने कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। पुरस्कार विजेताओं को बधाई देने के बाद वे कार्यक्रम स्थल से चले गए। राज्यपाल ने इसका बुरा माना परंतु केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन का तर्क था कि दरअसल राज्यपाल ने संविधान-विरोधी हरकत की थी क्योंकि भारत माता देश के संविधान का हिस्सा नहीं हैं। शिक्षा मंत्री शिवन कुट्टी, जिन्होंने कार्यक्रम का बहिष्कार किया, ने ठीक ही कहा कि, ‘‘यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि भारतीय राष्ट्रवाद किसी एक सांस्कृतिक छवि पर आधारित न होकर हमारे संविधान में निहित समावेशिता और प्रजातंत्र के मूल्यों पर आधारित हो। राज्यपाल को यह साफ़ करना चाहिए कि संघ परिवार की भारत माता देश की वर्तमान सीमाओं को स्वीकार करती हैं या नहीं। भारत एक एकसार राष्ट्र नहीं है जिसे किसी एक प्रतीक या छवि के आसपास निर्मित किया गया हो। हमारे गणतंत्र का जन्म इसलिए हुआ क्योंकि हमने सोच-समझकर यह निर्णय लिया कि हम एक बहुवादी, धर्मनिरपेक्ष देश का निर्माण करेंगे जिसका ढांचा संघीय होगा। भगवा झंडा हाथों में थामे एक महिला के चित्र को यदि देशभक्ति का एकमात्र प्रतीक बताया जाएगा तो यह हमारे इतिहास से मुंह मोड़ना होगा। देशभक्ति को किसी एक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य से देखना ना केवल अत्री-साधारीकरण है वरन हमारे स्वाधीनता संग्राम की समृद्ध विरासत को कमजोर करने वाला भी है।’’