ऑपरेशन सिंदूर के फुस्सपने से देश के मन में इंदिरा गाँधी की याद एकाएक जग गयी। 1971 की लड़ाई, निक्सन और अमेरिका को मुँहतोड़ जवाब, पाकिस्तान पर विजय व बांग्लादेश के जन्म का घटनाक्रम जन-स्मृति में उभर आया गौरव अनुभूतियों के साथ। इसकी नायिका तो निस्संदेह इंदिरा थीं इसलिए वे सहज ही यादों में ज़िंदा हो गयीं। वैसे, अपने और कामों से भी वे स्मृतियों से पूरी तरह रुखसत होने से रहीं जबकि यह सरकार उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ खलनायिका के रूप में ज़िंदा रखना चाहती है, न सिर्फ़ इंदिरा बल्कि जवाहरलाल नेहरू समेत राहुल गाँधी तक सभी को और उनसे जुड़ी कांग्रेस को भी। सरकार संघ, बीजेपी इसके लिए दिन रात मेहनत करते और अनाप-शनाप पैसा ख़र्च करते हैं, कि जनता इन सबको देश का विलेन मान ले। ऐसे में लोगों को इंदिरा की याद आना तो सारे खेल का बिगड़ जाना है। इसलिए तय था कि इस बार 25 जून को आपातकाल को ज़्यादा जोरशोर से याद किया जाएगा।