आज भारत में मीडिया के एक बड़े वर्ग ने जनता का सम्मान खो दिया है और वह सत्ताधारी दल के लिए 'गोदी मीडिया' (बेशर्म, बिका हुआ, चाटुकार प्रवक्ता) बन गया है।
किसान आंदोलन से संबंधित गुरुवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान गतिरोध को हल करने के लिए एक बहुत ही समझदारी भरा रास्ता दिखाया। सरकार को इन क़ानूनों के कार्यान्वयन को रोकना चाहिए।
केंद्र सरकार के तीन नये कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच चल रहे गतिरोध पर जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने प्रधानमंत्री मोदी को खुल ख़त लिखा है और उन्हें एक तरकीब सुझाई है।
किसानों ने आगे भी आंदोलन जारी रखा तो आंदोलन उनके लिए हित से ज़्यादा अहित ही साबित होगा। आंदोलन द्वारा अब तक उन्होंने अपनी बात रखी है, और अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव 1 दिसंबर को हो रहे हैं और मेरी भविष्यवाणी यह है कि वर्तमान में केवल 150 में से 4 सीटें रखने वाली बीजेपी इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। हालाँकि यह केवल एक नगरपालिका चुनाव है।
हिंदू आमतौर पर मसजिदों में नहीं जाते और मुसलमान आमतौर पर मंदिरों में नहीं जाते। लेकिन दोनों जिन जगहों पर जाते हैं उन्हें दरगाह कहते हैं। क्या दरगाह हिंदू-मुसलिम सद्भाव के प्रतीक नहीं हैं?
आज जब हमारा देश भारी सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, उत्पीड़ित जनता की दुर्दशा को दूर करने के लिए बड़ी संख्या में आशिक़ों (वास्तविक देशभक्तों) की घोर आवश्यकता है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने अपने पत्रों और साक्षात्कारों में कांग्रेस पार्टी के पुनरुत्थान के लिए लोकतांत्रिक बदलाव लाने का आह्वान किया है। बदलाव से क्या कांग्रेस पार्टी प्रतिस्पर्था में आ जाएगी?
पाकिस्तान एक इसलामिक देश के रूप में बनाया गया था। लेकिन कौन सा इसलाम सही है? सिद्धांत में केवल एक इसलाम है, लेकिन वास्तविकता बहुत अलग है। वास्तव में महान पैगंबर की मृत्यु के तुरंत बाद सुन्नियों और शियाओं के बीच भयंकर मतभेद पैदा हुआ।
क्या सच में भारतीय राजनीति बदल गई है? क्या भारतीय चुनावों में बेरोज़गारी, मूल्य वृद्धि और ऐसे अन्य कारक मायने रखते हैं? इस पर जस्टिस मार्कंडेय काटजू क्या सोचते हैं?
भारतीय मीडिया देश की मौजूदा समस्याओं और गंभीर स्थितियों को क्यों अनदेखा कर सुशांत राजपूत, रिया और कंगना जैसे मुद्दों में उलझा हुआ है? जस्टिस मार्कंडेय काटजू का सवाल है कि भारतीय मीडिया को क्यों नहीं दिखता कि क्रांति जैसी स्थितियाँ बन रही हैं?
भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के साथ लड़ते हुए अपने क़ीमती और दुर्लभ संसाधनों को बर्बाद करते हैं, जबकि इसके बजाये उन्हें हाथ मिलाना चाहिए और संयुक्त रूप से (बांग्लादेश के साथ) बुराइयों से निपटना चाहिए।
सवाल यह है कि जाति व्यवस्था को कैसे नष्ट किया जा सकता है। मेरा मानना है कि जाति आधारित आरक्षण जाति व्यवस्था को ख़त्म करने के बजाय इसे और गहराई, और मज़बूती से स्थापित करने में मदद करता है।
चुनाव अभियान के दौरान अपने भाषणों में इमरान ख़ान ने वादा किया था कि वह पाकिस्तान में 'मदीना की रियासत' लाएँगे। लेकिन क्या यही वो कल्याणकारी राज्य है जिसका उन्होंने वादा किया था?
भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं है कि जाति आधारित आरक्षण अनिवार्य है। अनुच्छेद 15 (4), 16 (4), और 16 (4A) में केवल यह कहा गया है कि पिछड़े वर्गों के लिए प्रशासन आरक्षण कर सकता है।
मेरे विचार में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोयान द्वारा प्रसिद्ध हागिया सोफ़िया को मसजिद में बदलने का फ़ैसला एक प्रतिक्रियावादी क़दम है, और इसकी निंदा की जानी चाहिए।
विकास दुबे की पुलिस 'मुठभेड़' में हत्या, एक बार फिर से गैर न्यायिक हत्याओं की वैधता पर सवाल उठाती है जिसका अक़सर भारतीय पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।