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चुनावों में हार के बाद सोनिया-राहुल नये नेता के लिए जगह ख़ाली करेंगे?

यदि कांग्रेस पार्टी के पास पुनरुद्धार के लिए कोई इच्छाशक्ति या मौक़ा है तो उसे किसी तरह से माँ-बेटे की जोड़ी को बाहर करना चाहिए और राष्ट्र के सामने आने वाली भारी समस्याओं से निपटने के लिए नए विचारों वाले लोगों के एक नए नेतृत्व का निर्माण करना होगा। अन्यथा पार्टी का भविष्य अंधकारमय है।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू

कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने हाल ही में मुझे फोन किया और कहा कि उन्हें सोनिया और राहुल गांधी की वजह से जनता से गालियाँ मिल रही हैं। वे पार्टी के नेतृत्व को जकड़े हुए हैं। उनके मुताबिक़ माँ और बेटे ने पार्टी को लगभग ध्वस्त कर दिया है, अस्तित्वहीन बना दिया है जैसा कि हाल ही में 4 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के चुनाव परिणाम ने दिखाया है।

7 मई 1940 को, लियो अमेरी, सांसद, ने ओलिवर क्रॉमवेल के शब्दों को उद्धृत करते हुए, ब्रिटिश हाउस ऑफ़ कॉमन्स में प्रधान मंत्री नेविल चेम्बरलेन से कहा: 

"You have sat too long here for any good you have been doing. Depart, I say, and let us have done with you. In the name of God, go".

"आप बहुत लंबे समय से यहां बैठे हैं। भगवान के नाम पर, अब  जाओ"।

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यही ज़रूरत अब नेहरू-गांधी परिवार को भी बतानी है। उन्होंने इतिहास में कांग्रेस को अपने निम्नतम स्तर पर ला दिया है। उनके पास सत्ता के अलावा कोई सिद्धांत नहीं है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली महान पार्टी, जिसने भारत को स्वतंत्रता दिलाई आज सिमट के रह गई है।

किसी ने सोचा होगा कि 2014 और 2019 के संसदीय चुनावों में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के बाद (2019 में उसे लोकसभा की कुल 542 सीटों में से सिर्फ़ 52 सीटें मिलीं और कुल वोटों का सिर्फ़ 19.5%) गांधी परिवार नेतृत्व से इस्तीफा देगा। पार्टी में नए विचारों के साथ एक नया नेतृत्व आने देI  लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

सोनिया, एक अच्छी माँ की तरह, एक दिन राहुल के प्रधानमंत्री बनने के सपने देखती हैं। लेकिन राहुल से कब तक उम्मीद करे और क्यों करे? कांग्रेस नेता अपने को अपमानित महसूस करते हैं। पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। उदाहरणस्वरूप असम के हिमंत बिस्व सरमा जिनसे मिलने का समय राहुल ने पहले नहीं दिया था और बाद में जब मिले तो उनकी दिलचस्पी अपने कुत्ते के साथ खेलने में अधिक थी। लिहाज़ा वो बीजेपी में चले गये। माँ और बेटे की जोड़ी सम्राटों की तरह व्यवहार करती है, और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ भी उनका बर्ताव घमंडी जैसा ही रहता है जिन्हें अक्सर लंबे समय तक उनसे मिलने का वक़्त  नहीं मिलता। 

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यदि कांग्रेस पार्टी के पास पुनरुद्धार के लिए कोई इच्छाशक्ति या मौक़ा है तो उसे किसी तरह से माँ-बेटे की जोड़ी को बाहर करना चाहिए और राष्ट्र के सामने आने वाली भारी समस्याओं से निपटने के लिए नए विचारों वाले लोगों के एक नए नेतृत्व का निर्माण करना होगा। अन्यथा पार्टी का भविष्य अंधकारमय है।
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