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पाक क्यों लंबे समय तक एकजुट नहीं रह सकता?

वास्तव में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक ही देश हैं। हमारी संस्कृति एक ही है। हम देखने में एक जैसे लगते हैं। हमारे अधिकाँश क्षेत्र में हिंदुस्तानी (खड़ीबोली) बोली जाती है, और मुग़लों के ज़माने से हम एक थेI हमारा बँटवारा अंग्रेज़ों की एक घिनौनी साज़िश थी, मगर एक न एक दिन हम अवश्य फिर एकजुट होंगे एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में। 
जस्टिस मार्कंडेय काटजू

nayadaur.tv के पोर्टल ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक है- 'Killed in dark alleys--remembering the victims of Shia genocide in Pakistan’। यह लेख पाकिस्तान में शिया समुदाय के उत्पीड़न के बारे में बताता है।

कुछ साल पहले पाकिस्तानी अख़बार द नेशन में प्रकाशित एक लेख में मैंने लिखा था कि पाकिस्तान एक फ़र्ज़ी और कृत्रिम देश है और इसको अंग्रेजों की साज़िश से बनाया गया था। 1857 की बग़ावत, जिसमें हिन्दुओं और मुसलामानों ने मिलकर अंगेज़ों के विरुद्ध लड़ाई की, को दबाने के बाद अंग्रेज़ों ने व्यवस्थित रूप से साम्प्रदायिक ज़हर फैलाया, ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को बढ़ावा दिया और जिसकी अंतिम परिणति 1947 में देश के विभाजन में हुआI अंग्रेज़ हमेशा यह चाहते थे कि भारत एक कमज़ोर मुल्क बना रहे। विभाजन के पीछे भी उनकी यही मंशा थी।

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मेरा यह मानना है कि भारत व्यापक तौर पर आप्रवासियों का देश है जैसे कि उत्तरी अमेरिका है। भारतीय उपमहाद्वीप (भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश) में रहने वाले लगभग 92-93% लोग भारत के मूल निवासियों के वंशज नहीं हैं, बल्कि बाहर से आए थे, मुख्यतः उत्तर पश्चिम से। यही कारण है कि भारतीय उपमहाद्वीप में ज़बर्दस्त विविधता है। कई धर्म और धर्मों के भीतर संप्रदाय, जातियाँ, भाषाएँ, जातीय समूह आदि हैं। जो भी आप्रवासी समूह यहाँ आए वे अपनी संस्कृति, धर्म, भाषा, आदि लेकर आए। इसलिए ऐसी स्थिति में केवल एक ही नीति सही है जो हमें एकजुट रख सकती है और प्रगति के पथ पर आगे ले जा सकती है, वह है 'सुलेह-ए-कुल' का रास्ता। इसके तहत सभी धर्मों और संप्रदायों को समान सम्मान दिया जाता है। यह रास्ता महान मुगल सम्राट अकबर द्वारा दिखाया गया था। 

पाकिस्तान एक इसलामिक देश के रूप में बनाया गया था। लेकिन कौन सा इसलाम सही है? सिद्धांत में केवल एक इसलाम है, लेकिन वास्तविकता बहुत अलग है। वास्तव में महान पैगंबर की मृत्यु के तुरंत बाद सुन्नियों और शियाओं के बीच भयंकर मतभेद पैदा हुआ। शिया सुन्नियों के पहले तीन ख़लीफाओं को अवैध मानते थे, और केवल चौथे खलीफा 'अली' को ही मान्यता देते थे। कट्टर सुन्नियों ने शियाओं को, जो पाकिस्तान की आबादी के 20% हैं, हमेशा विधर्मी माना है, और अक्सर वे पाकिस्तान में शियाओं पर हमले करते रहते हैं।

एक और मतभेद इस सवाल पर है कि क्या कोई मुसलमान केवल अल्लाह से सीधे तौर पर कुछ मांग सकता है जैसे कि देवबंदी कहते हैं या कुछ मध्यस्थों जैसे कि अली या सूफी संत द्वारा जैसा बरेलवी कहते हैं?

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुसंख्यक मुसलमान दरगाहों पर जाते हैं, जो सूफी संतों की कब्रों पर बने पवित्र स्थान हैं। लेकिन वहाबी इसे बुत परस्ती (मूर्ति पूजा) क़रार देते हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान में दरगाहों पर अक्सर बम विस्फोट होते हैं।

मुझे पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों (हिंदुओं, ईसाइयों और सिखों) की दुर्दशा के बारे में बोलने की ज़रूरत नहीं है। इनके बारे में आये दिन ख़बरें छपती रहती हैं कि कैसे नाबालिग लड़कियों का जबरन धर्मांतरण किया जाता है, फर्जी ईशनिंदा के आरोप लगाये जाते हैं और इन आरोपों की आड़ में उनपर भयानक अत्याचार किये जाते हैं।

अगर मान भी लिया जाए कि पाकिस्तान में 100% मुसलमान होते, तब  भी 20% शियाओं, अहमदियों आदि के साथ कैसा बर्ताव होता? क्या इनके साथ वैसा ही व्यवहार नहीं किया जा रहा है जैसा नाज़ियों ने यहूदियों के साथ किया था? और उन मुसलमानों के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है जो 'मन्नत' मांगने के लिए दरगाहों पर जाते हैं? दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पत्नी भी दरगाहों पर जाती हैं।
pakistan created by british on religious baiss, unity at stake - Satya Hindi

अब्राहम लिंकन ने जून 1858 में अमेरिका में दिए गए एक भाषण में कहा था कि अपने आप में विभाजित देश खड़ा नहीं रह सकता है। मेरा मानना है कि पाकिस्तान जैसा इसलामिक देश जिस कदर अंदर से विभाजित है वह लंबे समय तक एक नहीं रह सकता है।

वास्तव में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक ही देश हैं। हमारी संस्कृति एक ही है। हम देखने में एक जैसे लगते हैं। हमारे अधिकाँश क्षेत्र में हिंदुस्तानी (खड़ीबोली) बोली जाती है, और मुग़लों के ज़माने से हम एक थेI हमारा बँटवारा अंग्रेज़ों की एक घिनौनी साज़िश थी, मगर एक न एक दिन हम अवश्य फिर एकजुट होंगे एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में। 

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