बीजेपी की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी यानी टीडीपी ने ही विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। इसने कहा है कि एसआईआर का दायरा ही साफ़ क्यों नहीं है और इसको नागरिकता से क्यों जोड़ा जा रहा है। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने बिहार में एसआईआर प्रक्रिया पर यह कहते हुए सवाल खड़े कर दिए हैं कि 'किसी बड़े चुनाव से पहले छह महीने के अंदर तो एसआईआर प्रक्रिया नहीं ही होनी चाहिए'। टीडीपी ने इस मामले में चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। तो सवाल है कि कहीं टीडीपी का यह क़दम बीजेपी के लिए गठबंधन में दरार की वजह तो नहीं बनेगा? और क्या अब चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ेगा?
टीडीपी ने बढ़ाया मोदी का सिरदर्द, चुनाव आयोग की मंशा पर खड़े किए ये सवाल
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- 15 Jul, 2025
SIR Controversy: एनडीए सहयोगी टीडीपी ने चुनाव आयोग से SIR प्रक्रिया को नागरिकता से अलग रखने की मांग क्यों की? चुनाव आयोग को टीडीपी के पत्र से क्या गठबंधन में दरार आ सकती है? क्या अब चुनाव आयोग पर दबाव और बढ़ेगा?

इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर टीडीपी ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र क्यों लिखा है। दरअसल, इसकी शुरुआत बिहार में एसआईआर से हुई। बिहार में SIR की प्रक्रिया को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है। राजद, कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इसे नागरिकता की जाँच जैसा बताकर इसका विरोध किया है। विपक्षी दलों का कहना है कि एसआईआर के माध्यम से सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी को पीछे के दरवाजे से लागू करना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि नागरिकता तय करने का अधिकार गृह मंत्रालय का है। इसी बीच ख़बरें आ रही हैं कि चुनाव आयोग अगस्त महीने से ही एसआईआर की प्रक्रिया को पूरे देश में शुरू करने की तैयारी की है।