मुखीम कोर्ट के निर्णय की रिपोर्ट करके सिर्फ़ अपने धर्म का निर्वाह कर रही थीं। जनतांत्रिक मूल्यों को लेकर ऐसी प्रतिबद्धता राष्ट्रीय संपादकों में शायद ही देखी जाती है।