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विधेयकों को राष्ट्रपति को भेजने पर तमिलनाडु के राज्यपाल को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फिर से तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को फटकार लगाई। इसने विधानसभा से पास विधेयकों को मंजूरी देने में देरी और राष्ट्रपति के पास भेजने पर आपत्ति जताई। इसके साथ ही अदालत ने राज्यपाल को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ बैठक करने और बिलों को मंजूरी देने में देरी पर गतिरोध को हल करने के लिए कहा।

सुप्रीम कोर्ट विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल आरएन रवि द्वारा की गई देरी पर तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा है। नवंबर महीने की शुरुआती हफ्ते में ही अदालत ने आलोचना की थी और कहा था कि विधेयकों को तुरंत निपटाएँ। इसके बाद राज्यपाल ने 10 विधेयक लौटा दिए थे। बाद में सरकार ने फिर से विधेयकों को विधानसभा से पास कर राज्यपाल के पास सहमति के लिए भेज दिया था। वकील अभिषेक सिंघवी ने अदालत को बताया कि दस विधेयकों को राज्यपाल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेज दिया है। 

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इस पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा दोबारा अपनाए गए विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम चाहेंगे कि राज्यपाल इस गतिरोध को सुलझाएँ। मुझे लगता है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री को आमंत्रित करें और वे बैठकर इस पर चर्चा करें।' सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 11 दिसंबर को करेगा।

तमिलनाडु सरकार ने भाजपा द्वारा नियुक्त राज्यपाल पर जानबूझकर विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने और निर्वाचित सरकार को कमजोर करके राज्य के विकास को बाधित करने का आरोप लगाया है। स्टालिन ने रवि पर तीखा हमला करते हुए विधानसभा में कहा कि बिना किसी कारण के सहमति रोकना अस्वीकार्य है। तमिलनाडु के कानून मंत्री सेवुगन रेगुपति ने कहा, 'राज्यपाल आरएन रवि सारी शक्तियां अपने पास रखने के लिए ऐसा करते हैं। उनका मानना है कि निर्वाचित सरकार के पास कोई शक्तियां नहीं हैं।'

बता दें कि पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से पूछा था कि ये बिल 2020 से लंबित थे तो वह तीन साल से क्या कर रहे थे? तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्यपाल पर राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाया था। सरकार का कहना है कि इससे राज्य में संवैधानिक गतिरोध की स्थिति पैदा हो गई है। याचिका में कहा गया था कि संवैधानिक कार्यों पर कार्रवाई न करके राज्यपाल नागरिकों के जनादेश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

पंजाब और केरल में भी राज्यपालों द्वारा विधेयकों को रोके जाने पर सुप्रीम कोर्ट से सख़्त नाराज़गी जताई है।
केरल के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐसी ही सख्त टिप्पणी की है। यह देखते हुए कि केरल के राज्यपाल ने आठ विधेयकों के संबंध में निर्णय ले लिए हैं, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कानूनों पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और संबंधित मंत्री से मिलने के लिए कहा।
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मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलों को सुना जिसमें कहा गया कि आठ विधेयकों में से सात को राष्ट्रपति द्वारा विचार के लिए आरक्षित किया गया है, जबकि एक को राज्यपाल ने सहमति दे दी है। इस पर पीठ ने पूछा, 'राज्यपाल दो साल तक बिल दबाकर क्या कर रहे थे?'

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को 19 और 20 जून को आयोजित सत्र के दौरान विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। इसने कहा था कि राज्यपाल की शक्ति का उपयोग कानून बनाने के सामान्य रास्ते को बाधित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

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क़मर वहीद नक़वी
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