अलीगढ़ में चार मुस्लिम नागरिकों को भीड़ द्वारा पिटाई की गई। इस दिल दहला देने वाली घटना ने उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था और प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
फोटो साभार: एक्स/@ShayarImran
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई एक दिल दहला देने वाली मॉब लिंचिंग की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। गोमांस ले जाने के संदेह में चार मीट कारोबारियों—अकील, अरबाज, कदीम और अकील—पर भीड़ ने बर्बर हमला किया, उनकी गाड़ी में आग लगा दी और जानलेवा पिटाई की। इस घटना पर कांग्रेस राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे 'आतंकवाद से कम नहीं' बताया है। उनके ट्वीट ने उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था, प्रशासन की जवाबदेही और सामाजिक एकता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
मॉब लिंचिंग की यह घटना 24 मई को अलीगढ़ जिले के हरदुआगंज क्षेत्र में घटी। पीड़ित चार मुस्लिम मीट कारोबारी हैं। भीड़ ने इन कारोबारियों को गोमांस ले जाने के संदेह में रोका। रास्ते में हिंदूवादी संगठन से जुड़े लोगों ने प्रतिबंधित मांस का आरोप लगाकर गाड़ी को घेर लिया और युवकों को बुरी तरह पीटा। उनकी गाड़ी में आग लगा दी गई। लाठियों, मुक्कों और लातों से उनकी बेरहमी से पिटाई की गई।
चारों पीड़ित गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। मांस के सैंपल को जांच के लिए लैब भेजा गया है। अब इस मामले में आरोपियों के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर लिया गया है। पुलिस ने विश्व हिंदू परिषद के नेता रामकुमार आर्य, बीजेपी नेता अर्जुन सिंह और शिवम सहित कई लोगों के खिलाफ रंगदारी, मारपीट और लूटपाट का मामला दर्ज किया है।
शिकायतकर्ता के अनुसार, 15 दिन पहले भी इन्हीं आरोपियों में से कुछ ने 50 हजार रुपये की वसूली की कोशिश की थी। तब भी उन्होंने गाड़ी में प्रतिबंधित मांस का मुद्दा बनाकर हंगामा किया था।
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने अपने ट्वीट में इस घटना की कड़ी निंदा की। उन्होंने लिखा, 'कल अलीगढ़ में जिस तरह से भीड़ द्वारा मीट कारोबारियों के साथ मॉब लिंचिंग की गई वो किसी आंतकवाद से कम नहीं है। किसी भी संभ्रांत व्यक्ति द्वारा वो विज़ुअल देख पाना भी संभव नहीं है।'
प्रतापगढ़ी ने यह भी सवाल उठाया कि क्या उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है और क्या मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा को खुली छूट दी गई है?
यह घटना उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की बदहाल स्थिति को उजागर करती है। इमरान प्रतापगढ़ी ने अपने ट्वीट में पूछा, 'क्या यूपी की क़ानून व्यवस्था यही है?' क्या प्रशासन इन गुंडों पर कोई नियंत्रण नहीं रखता, या फिर यह माना जाए कि मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा को मौन समर्थन प्राप्त है?'
इमरान प्रतापगढ़ी ने अपने बयान में सही कहा कि जब भारत विश्व मंच पर एकजुटता और समावेशी विकास का संदेश दे रहा है, तब ऐसी घटनाएँ सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बनती हैं। भारत की छवि एक प्रगतिशील और लोकतांत्रिक देश की है, लेकिन मॉब लिंचिंग की ऐसी घटनाएँ इस छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाती हैं। 'जिन दिनों में भारत पूरी दुनिया के सामने एकजुटता का संदेश दे रहा है, उन्हीं दिनों में ऐसे विज़ुअल आना क्या सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण नहीं बनेंगे?' यह सवाल न केवल सरकार की जवाबदेही पर बल्कि सामाजिक सौहार्द की स्थिति पर भी चोट करता है।
इमरान प्रतापगढ़ी ने यह भी पूछा, 'क्या प्रशासन इस मामले में ऐसी कार्रवाई करेगा कि नज़ीर बन सके?' अब तक की जानकारी के अनुसार, पुलिस ने कुछ आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, लेकिन क्या यह कार्रवाई पर्याप्त है? 2015 में दादरी में मोहम्मद अखलाक की लिंचिंग जैसी पहले की घटनाओं में दोषियों को सजा दिलाने की प्रक्रिया धीमी रही है। यह घटना प्रशासन के लिए एक अवसर है कि वह सख्त और त्वरित कार्रवाई कर एक मिसाल कायम करे।
यह घटना अलीगढ़ में मॉब लिंचिंग की पहली घटना नहीं है। इससे पहले 18 जून 2024 को मोहम्मद फरीद उर्फ औरंगजेब को चोरी के संदेह में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। उस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 19 चोटों के निशान, तीन टूटी पसलियों और फटी आँतों का खुलासा हुआ था। उस घटना में भी पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियाँ की थीं, लेकिन कई आरोपी अभी भी फरार हैं।
इसी तरह जुलाई 2024 में एक अन्य मामले में एक मुस्लिम युवक को कथित तौर पर एक हिंदू लड़की से बात करने के लिए नंगा करके पीटा गया था। इस मामले से अलीगढ़ की मेयर शकुंतला भारती का नाम भी जुड़ा था। अलीगढ़ में धार्मिक आधार पर हिंसा की घटनाएँ बार-बार हो रही हैं।
जानकार कहते रहे हैं कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। मॉब लिंचिंग के खिलाफ कठोर कानून बनाकर त्वरित सजा सुनिश्चित की जाए। पुलिस को ऐसी घटनाओं में तुरंत और निष्पक्ष कार्रवाई के लिए प्रशिक्षित और सशक्त किया जाए। धार्मिक और सामुदायिक आधार पर हिंसा को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं। सीसीटीवी और अन्य तकनीकी संसाधनों का उपयोग कर ऐसी घटनाओं की निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जाए।
इमरान प्रतापगढ़ी ने घोषणा की है कि वह इस तरह के मामलों को आगामी संसद सत्र में पुरजोर तरीके से उठाएंगे। यह एक स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दे केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीर चिंता का विषय हैं। संसद में इस मुद्दे पर खुली बहस और ठोस नीतिगत कदम उठाए जाने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।