मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की एक अहम याचिका को खारिज कर दिया है। हिंदू पक्ष ने कोर्ट से माँग की थी कि शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित किया जाए और कोर्ट के दस्तावेजों में इसका उल्लेख इसी तरह किया जाए। 

यह याचिका श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने दायर की थी। इसे जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने 4 जुलाई को सुनवाई के बाद खारिज कर दिया। यह फ़ैसला हिंदू पक्ष के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है जो मथुरा में 13.37 एकड़ जमीन पर दावा कर रहा है। इसे बारे में उनका कहना है कि यह भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है। 

याचिका में हिंदू पक्ष का तर्क

हिंदू पक्ष की याचिका में माँग की गई थी कि कोर्ट के सभी दस्तावेजों और भविष्य की कार्यवाहियों में 'शाही ईदगाह मस्जिद' के बजाय 'विवादित ढांचा' शब्द का उपयोग किया जाए। याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने तर्क दिया कि मस्जिद उस स्थान पर बनी है, जहाँ पहले एक प्राचीन हिंदू मंदिर था, जिसे मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में तोड़ा गया था। उन्होंने दावा किया कि मस्जिद की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं के प्रतीक मौजूद हैं और मुस्लिम पक्ष इस ढांचे को मस्जिद साबित करने के लिए कोई ठोस दस्तावेजी सबूत पेश नहीं कर पाया है। 

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि मस्जिद का कोई आधिकारिक भूमि रिकॉर्ड (खसरा-खतौनी), नगरपालिका रिकॉर्ड, या कर भुगतान का रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए इसे मस्जिद के रूप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने बाबरी मस्जिद मामले का हवाला देते हुए इसे एक मिसाल के रूप में पेश किया, लेकिन कोर्ट ने इस तुलना को स्वीकार नहीं किया। 

मुस्लिम पक्ष का जवाब

मुस्लिम पक्ष ने याचिका के ख़िलाफ़ लिखित आपत्ति दर्ज की थी। इसने तर्क दिया कि शाही ईदगाह मस्जिद पिछले 400 वर्षों से उस स्थान पर मौजूद है और इसे 'विवादित ढांचा' कहना आधारहीन है। उन्होंने कहा कि इस तरह का बदलाव विवाद को पक्षपातपूर्ण ढंग से प्रभावित करेगा और मामले की निष्पक्ष सुनवाई को बाधित करेगा। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के तर्क से सहमति जताते हुए याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है। 

मुस्लिम पक्ष ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए कहा है कि यह कानून किसी भी धार्मिक स्थल के चरित्र को बदलने से रोकता है, जैसा कि वह 15 अगस्त 1947 को था।

कोर्ट का तर्क

जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फ़ैसला सुरक्षित रखा था और 4 जुलाई को इसे सुनाया। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा सबूतों और याचिका के आधार पर शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि बाबरी मस्जिद मामले की तुलना इस मामले से नहीं की जा सकती, क्योंकि दोनों के तथ्य और परिस्थितियाँ अलग हैं। 

यह याचिका श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से संबंधित 18 याचिकाओं में से एक थी, जो हिंदू पक्ष ने दायर की हैं। इन याचिकाओं में मुख्य रूप से मस्जिद को हटाकर जमीन पर कब्जा, मंदिर की बहाली और स्थायी निषेधाज्ञा की माँग की गई है।

विवाद क्यों?

शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर परिसर के निकट 13.37 एकड़ के क्षेत्र में स्थित है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर बनी है, जहाँ पहले एक मंदिर था, जिसे औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी में तबाह कर दिया था। यह विवाद दशकों पुराना है, लेकिन हाल के वर्षों में इसे 'धार्मिक स्थलों की मुक्ति की माँग के साथ जोड़ा गया है। इससे पहले 23 अक्टूबर 2024 को हाईकोर्ट ने मस्जिद समिति की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें 11 जनवरी 2024 के उस आदेश को वापस लेने की माँग की गई थी, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से संबंधित सभी मुकदमों को एक साथ जोड़ा गया था। इसके अलावा 15 दिसंबर 2023 को कोर्ट ने मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण की अनुमति दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी 2025 को इस सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट अब इस मामले से संबंधित अन्य 18 याचिकाओं की सुनवाई करेगा, जिनमें जमीन पर कब्जे और मंदिर की बहाली की माँग शामिल है। अगली सुनवाई 2 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है।