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प्रतीकात्मक तसवीर।

यूपी में यात्रियों से भरी बस का अपहरण, 15 घंटे ग़ायब, अब पुलिस की लीपापोती

यात्रियों से भरी बस का इस प्रकार का अपहरण बड़ी ही दिल दहला देने वाली घटना है, चाहे उसके अपहर्ता पेशेवर अपराधी हों या लोन देने वाले सीज़र के लोग। इसमें कोई शक नहीं कि 15 घंटे तक मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर गृह मंत्रालय के बीच चली उठापटक और कई ज़िलों की पुलिस की भागदौड़ के बाद अपहर्ता अंततः बस को छोड़ कर चले गए। 
अनिल शुक्ल

34 यात्रियों से भरी प्राइवेट बस को देर रात आगरा से अपहृत करके अज्ञात स्थान पर रखने और 15 घंटे बाद अपहरणकर्ताओं द्वारा इटावा के एक ढाबे के सामने छोड़ कर चले जाने की कहानी लोगों के गले नहीं उतर रही है। आगरा पुलिस की शुरुआती ब्रीफ़िंग में बताया गया था कि किस्तें जमा न करने की एवज़ में बस को फ़ाइनेंस करने वाली संबद्ध कंपनी ने ज़ब्त कर लिया था लेकिन 'कंपनी' का कहना है कि उनका एकाउंट 2 साल पहले ही 'सेटल' हो गया था।

अब यूपी पुलिस की नई कहानी में किसी 'सीज़र' कंपनी की बात सामने आ रही है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने बताया कि बस की बरामदगी को झाँसी में बताया जबकि एसएसपी आगरा बबलू कुमार के मुताबिक़ बस इटावा ज़िले में मिली है। उधर अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी में बताया जा रहा है कि यह एक आपराधिक कार्रवाई थी और चारों तरफ़ से घेराबंदी होने के बाद अपहर्ताओं ने बस को छोड़ दिया, अब पुलिस अपराध की इस घटना पर लीपापोती कर रही है। बहरहाल, अपहर्ता कोई भी हो, सवाल यह उठता है कि अगर यात्रियों से भरी किसी बस को आधी रात हाइवे से इस प्रकार अपहृत करना मुमकिन है तो योगी सरकार के 'अपराध मुक्त यूपी' के दावे का क्या? 

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​मंगलवार देर रात ग्वालियर की 'कल्पना ट्रेवेल्स' की स्लीपर बस (यूपी 75 एम 3516) को आगरा शहर से बाहर मलपुरा थानांतर्गत दक्षिणी बाईपास पर 2 ज़ायलो में सवार कुछ लोगों ने रोकने की कोशिश की लेकिन ड्राइवर ने बस नहीं रोकी। आगे चलकर ज़ायलो सवार लोगों ने बस को ओवरटेक करके रोक लिया। उन्होंने ड्राइवर और कंडक्टर को अपनी ज़ायलो में बैठाया और अपहर्ताओं के 4 लोग बस में सवार हो गए जिसमें नया चालक भी शामिल था। एसएसपी (आगरा) बबलू कुमार के अनुसार गुरुग्राम से चलकर मप्र के पन्ना जा रही उक्त बस को रात 10.30 बजे रोक कर अपहरण करने वाले ‘फ़ाइनेंस कंपनी' के लोग थे। बस में 34 यात्री सवार थे। यहाँ से वे बस को ग्वालियर रोड पर उतारकर सैंया ले गए। वहाँ से फतेहाबाद होते हुए आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे पर ले गए। यहाँ उन्होंने कंडक्टर से सवारियों के पैसे वापस करवाए और फिर उन दोनों कर्मचारियों को वहीं कुबेरपुर पर छोड़ कर चले गए। तड़के 4 बजे बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने थाना मालपुरा पहुँचकर घटना की सूचना पुलिस को दी। कुमार के अनुसार सभी यात्री झाँसी के पास मिले हैं और आगरा पुलिस उन तक पहुँच गई है। 

उधर 'श्रीराम ट्रांसपोर्ट फ़ाइनेंस कंपनी' के संजय प्लेस शाखा के प्रबंधक को सुबह पुलिस ने उठा लिया। दोपहर में कम्पनी के क्षेत्रीय प्रबंधक बी एस कटोच की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि उक्त बस को उनकी ग्वालियर यूनिट ने फ़ाइनेंस किया था और इसके 'लोन' का मामला 2018 में ही सुलट गया था। फ़िलहाल बस की कोई देनदारी नहीं है, इस बात की जानकारी से उन्होंने एसपी सिटी को अवगत करा दिया है।

कटोच की विज्ञप्ति आने के बाद आगरा पुलिस ने नयी कहानी सुनाई जिसमें किसी 'सीज़र' कम्पनी द्वारा बस को ज़ब्त किये जाने की बात कही गयी थी। फीरोजाबाद निवासी किसी प्रदीप गुप्ता का नाम भी पुलिसिया कहानी में छन-छन कर आ रहा है जिसका 'लोन' बस पर बकाया था।

अपराह्न 3 बजे आगरा पुलिस जनसम्पर्क अधिकारी ने बताया कि बस दरअसल इटावा ज़िले के थाना पलरई स्थित एक ढाबे के पीछे खड़ी मिली है। पुलिस अपहर्ताओं की खोजबीन कर रही है। आगरा पुलिस के अनुसार बस के अपहर्ताओं ने सवारियों को किसी दूसरी बस में चढ़ा दिया था। यह चढ़ा-उतरी कहाँ और कितने बजे हुई, इस बारे में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं है।

झाँसी के एसएसपी दिनेश कुमार पी. ने भी फ़ाइनेन्स कंपनी के लोगों द्वारा अपहरण की बात मीडिया से कही है, लेकिन किस कंपनी द्वारा, इसकी कोई जानकारी उनके पास नहीं है। अलबत्ता उन्होंने सवारियों के मऊ रानीपुर पहुँचने की बात ज़रूर कही है।

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बहरहाल, यात्रियों से भरी बस का इस प्रकार का अपहरण बड़ी ही दिल दहला देने वाली घटना है, चाहे उसके अपहर्ता पेशेवर अपराधी हों या लोन देने वाले सीज़र के लोग। इसमें कोई शक नहीं कि 15 घंटे तक मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर गृह मंत्रालय के बीच चली उठापटक और कई ज़िलों की पुलिस की भागदौड़ के बाद अपहर्ता अंततः बस को छोड़ कर चले गए लेकिन जिस तरह से यात्रियों से भरी इस बस का अपहरण हुआ है, वह इस क़िस्म की प्रदेश की पहली घटना है। यह घटना इस बात का भी संकेत देती है कि प्रदेश के हाइवे पर यात्रियों का निकलना कितना असुरक्षित है, मुख्यमंत्री भले ही अपराध नियंत्रण के जो भी दावे करते फिरें।
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