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प्रतीकात्मक तसवीर

यूपी: खाने का बिल चुकाने को कहा तो पुलिसकर्मियों ने 10 लोगों को जेल भेजा

अजब यूपी पुलिस के गजब पुलिसकर्मी! पुलिसकर्मी होटल में खाना खाते हैं और बिल के रुपये मांगने पर होटल मालिक को ही पिटाई कर देते हैं। फिर जेल में बंद कर देते हैं। हिंदी फ़िल्मों में ऐसे दृश्य इतने घिसे-पीटे हो गये हैं कि अब ऐसे दृश्य शायद ही कभी इस्तेमाल होते हैं, लेकिन यूपी में कुछ पुलिसकर्मी अभी भी उस ढर्रे पर ही चलते मालूम पड़ते हैं।

एटा ज़िले में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। पुलिसकर्मियों ने ढाबा में खाना खाया। बिल के रुपये मांगने पर ग़ुस्सा हो गए। थोड़ी देर में दूसरे साथियों के साथ लौटे तो होटल मालिक और स्टाफ़ को उठा ले गए। होटल में खाना खा रहे ग्राहक को भी ले गए। सबको पीटा। कथित तौर पर झूठे आरोपों में सबको जेल में डाल दिया। वे एक महीने से जेल में हैं, कुछ जमानत पर बाहर आ गए। यानी जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं उसकी सज़ा उन्हें पहले ही भुगतनी पड़ी है और उन्हें एक महीने से ज़्यादा ज़ेल में काटना पड़ा है। अब जब जाँच हो रही है तो उन पुलिस कर्मियों की पोल खुल रही है। 

अब स्थिति बदली है। जिन पुलिस कर्मियों ने उन्हें जेल में डाला था अब वे ख़ुद जेल जाने की स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ मंगलवार को एफ़आईआर दर्ज की गई है। 

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पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ यह एफ़आईआर तब दर्ज हुई है जब एटा के अतिरिक्त एसपी राहुल कुमार ने जाँच में पाया कि उन पुलिस कर्मियों ने पिछले महीने कई झूठे मामलों में 10 लोगों को फँसा दिया था। इन लोगों में वे भी शामिल थे जो ढाबा पर खाना खाने आए ग्राहक थे। वह भी इसलिए कि धाबा के मालिक और उनके भाई ने कॉन्स्टेबल से भोजन के बिल का भुगतना करने के लिए कहा था। यानी अतिरिक्त एसपी की जाँच के अनुसार पुलिस कर्मियों ने जो 10 लोगों पर आरोप मढ़े थे वे सभी झूठे थे। 

रिपोर्ट के अनुसार, इंस्पेक्टर इंद्रेश पाल सिंह और दो हेड कॉन्स्टेबल शैलेंद्र व संतोष कुमार द्वारा उन 10 लोगों के ख़िलाफ़ हत्या का प्रयास, और आबकारी अधिनियम, आर्म्स एक्ट व नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट (एनडीपीएस) की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया।

यह रिपोर्ट दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों पर ही अब 384 (जबरन वसूली), 342 (ग़लत तरीक़े से कारावास), 336 (जीवन या सुरक्षा को ख़तरे में डालना) और 211 (अपराध का झूठा आरोप) सहित आईपीसी विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है।

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, कोतवाली देहात के थानाधिकारी इंद्रेश पाल सिंह को औचक निरीक्षण में उनके थाना के स्ट्रांग रूम से 1,400 कार्टन शराब गायब हो जाने पर पिछले हफ्ते निलंबित कर दिया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, आईजी (अलीगढ़ रेंज) पीयूष मोदिया ने कहा है कि उन्होंने युवकों के ख़िलाफ़ मामलों की जाँच अलीगढ़ स्थानांतरित कर दी है और शैलेंद्र व संतोष कुमार को निलंबित करने का आदेश दिया है।

पुलिस ने क्या कहा था?

कोतवाली देहात पुलिस के अनुसार, अपराधियों द्वारा लूट की योजना बनाए जाने की जानकारी मिलने पर उन्होंने 4 फ़रवरी की शाम को जसराम गाँव में ढाबे पर छापा मारा। उन्होंने दावा किया कि एक छोटी सी मुठभेड़ के बाद ढाबे से 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया और उनके कब्जे से 'देशी पिस्तौल, शराब और गांजा' बरामद किया गया।

सच्चाई क्या है?

प्रवीण कुमार यादव कहते हैं कि वास्तविकता अलग है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार उन्होंने कहा, "4 फ़रवरी की दोपहर दो हेड कांस्टेबल मोटरसाइकिल पर हमारे ढाबे पर आए और दोपहर का भोजन किया। लेकिन फिर उन्होंने 450 रुपये के बिल के लिए सिर्फ़ 100 रुपये दिए। जब ​​मैंने उनसे बिल राशि का भुगतान करने के लिए कहा तो उन्होंने मुझे गाली देना शुरू कर दिया और चले गए। जल्द ही, तीन जीपों में पुलिसकर्मियों का एक दल आया और मुझे और ग्राहकों सहित ढाबे में मौजूद सभी लोगों को थाने ले गया। उन्होंने हम सभी की पिटाई की। लेकिन उन्होंने मुझे यह कहते हुए जाने दिया कि 'इस लंगड़े के चक्कर में एनकाउंटर फर्जी लगेगा'।"

इसी के बाद प्रवीण कुमार यादव ने न्याय पाने की लड़ाई शुरू कर दी। बीटेक ग्रेजुएट और तीन साल पहले एक हादसे में पैर गँवा देने वाले यादव ने कहा कि पुलिस से छुटने के बाद उन्होंने कई वरिष्ठ अधिकारियों के चिट्ठी लिखी। आख़िर में उन्हें एटा की ज़िलाधिकारी विभा चहल से सहयोग मिला। ज़िलाधिकारी ने जाँच के आदेश दिए। 

आईजी ने कहा है कि इस मामले में एक स्थानीय शराब माफिया बंटू यादव को पकड़ा गया है जिसने कथित तौर पर पुलिस को 80 लीटर अवैध शराब मुहैया कराई और इसी शराब को ढाबा से बरामद दिखाया गया। 

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गिरफ़्तार किए गए 10 लोगों में से ग्राहक पूर्वी चंपारण के राहुल कुमार सिंह और उनके तीन दोस्त हैं जो उस वक़्त ढाबा पर खाना खा रहे थे। जमानत पर बाहर आए राहुल ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'वे हमें पूछताछ के बहाने ढाबे से ले गए। लेकिन पुलिस स्टेशन के अंदर उन्होंने हमारी पिटाई की और हमारा सामान ले गए। उन्होंने पुलिस स्टेशन परिसर के अंदर देसी हथियारों की गोलीबारी की और बाद में उन्हें हमसे बरामद बताया। पुलिसकर्मियों द्वारा गांजे का भी इंतज़ाम किया गया था। मैं लगभग 40 दिनों तक जेल में रहा और मेरे दोस्त अभी भी अंदर हैं।'

अतिरिक्त एसपी राहुल कुमार ने कहा, 'पूछताछ के दौरान मैंने ढाबे के पास खेतों में काम करने वाले कई लोगों से बात की। तथाकथित मुठभेड़ में किसी ने गोलियों की आवाज़ नहीं सुनी। हमने 10 व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की भी जाँच की और पाया कि दो को छोड़कर किसी के ख़िलाफ कोई मामला नहीं था।'

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क़मर वहीद नक़वी
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