ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) ने उत्तर प्रदेश में ग्रामीण युवाओं को एकजुट करने के लिए वर्दी, छड़ी और बैज के साथ अपनी वैचारिक शाखा 'राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना' (आरएसएस) लॉन्च की है।
यूपी में नए संगठन राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना (आरएसएस) की लॉन्चिंग
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है। भाजपा की सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) ने अब अपना खुद का वैचारिक संगठन 'राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना' (आरएसएस) लॉन्च कर दिया है। यह संगठन वर्दी, कंधे पर बैज और लाठी जैसे प्रतीकों के साथ तैयार किया गया है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से प्रेरित तो लगता है, लेकिन एसबीएसपी इसे अपनी विचारधारा का वाहक बताती है। यह कदम 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली हार के बाद कैडर को मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
एसबीएसपी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने इसकी घोषणा की। संगठन का उद्दघाटन पूर्वांचल के 22 जिलों में अगले सप्ताह से शुरू होने वाले प्रशिक्षण शिविरों के साथ होगा, जो धीरे-धीरे पूरे 75 जिलों में फैल जाएगा। पार्टी का लक्ष्य एक लाख स्वयंसेवकों को नामांकित करना है, खासकर ग्रामीण इलाकों के 18 से 25 वर्ष के युवाओं को। इन स्वयंसेवकों को न केवल वैचारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा, बल्कि करियर गाइडेंस भी प्रदान की जाएगी।
राजभर ने कहा, "आज कई गांवों में 60 से 70 प्रतिशत छात्रों को यह नहीं पता कि वे क्या बनना चाहते हैं। हमारे आरएसएस संगठन के माध्यम से हम उन्हें विभिन्न क्षेत्रों के रिटायर्ड प्रोफेशनल्स से जोड़ेंगे, जिससे वे अलग-अलग करियर विकल्पों को समझ सकेंगे।" उन्होंने जोर दिया कि यह संगठन राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि विचारधारा का केंद्र होगा, जो पूर्वांचल के लगभग 25 प्रतिशत आबादी वाले अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) समुदाय को एकजुट करेगा।
ओमप्रकाश राजभर के बेटे और एसबीएसपी के नेता अरुण राजभर ने बताया, "इसका उद्देश्य हमारे कैडर को भविष्य के लिए तैयार करना है। हम 18 से 25 वर्ष के ग्रामीण युवाओं पर फोकस कर रहे हैं, जिन्हें सही करियर मार्गदर्शन की कमी है। वे हमारे आरएसएस के तहत प्रशिक्षित होंगे।" अरुण ने आगे कहा, "हम रिटायर्ड नौकरशाहों, प्रोफेशनल्स, शिक्षकों और प्रोफेसरों से संपर्क में हैं, जो इन स्वयंसेवकों के मेंटर बनेंगे। वे न केवल वैचारिक प्रशिक्षण देंगे, बल्कि सुहेलदेव राजभर, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले और छत्रपति साहूजी जैसे महान व्यक्तियों के देश और समाज के प्रति योगदान के बारे में भी सिखाएंगे।"
अरुण राजभर ने स्पष्ट किया कि एसबीएसपी का यह आरएसएस भाजपा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अलग है। उन्होंने कहा, "यह एक अलग तरह का संगठन है। मैंने देखा है कि हमारे समुदाय, खासकर ईबीसी समूहों के युवा, नियमित रूप से शाखाओं में नहीं जाते। इसलिए हम चाहते हैं कि वे हमारे आरएसएस में शामिल हों, जहां उन्हें प्रोफेशनल्स से संरचित मार्गदर्शन मिलेगा।"
संगठन की संरचना भी काफी व्यवस्थित है। इसमें जिला कमांडर, विधानसभा कमांडर, ब्लॉक कमांडर और गांव स्तर के कमांडर जैसे पद होंगे, जो पूर्वांचल में पार्टी की बूथ स्तर पर मौजूदगी को मजबूत करेंगे। यह कदम 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद कैडर के पलायन को रोकने के लिए उठाया गया है, जब राजभर के बेटे बबलू राजभर घोसी सीट से हार गए थे और कई कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी की ओर चले गए थे।
ओम प्रकाश राजभर 2014 में बिना सीट के भाजपा में शामिल हुए थे। 2017 में उन्होंने जौनपुर के ज़हूराबाद सीट से विधायक बनकर सामाजिक कल्याण मंत्री का पद संभाला। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और 2021 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया। 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में एसबीएसपी ने छह सीटें जीतीं। 2024 में फिर से एनडीए में लौटकर वे योगी 2.0 सरकार में मंत्री बने।
यह नया विंग एसबीएसपी को ग्रामीण युवाओं के बीच मजबूत आधार बनाने में मदद कर सकता है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का भाजपा-आरएसएस के साथ संबंधों पर असर पड़ सकता है। आने वाले दिनों में पूर्वांचल की राजनीति पर नजरें टिकी रहेंगी।
राजा सुहेलदेव की विरासत क्या है
राजा सुहेलदेव 11वीं शताब्दी के श्रावस्ती (वर्तमान बहराइच) के वीर योद्धा थे। लोककथाओं और पूर्वांचल की गाथाओं में उन्हें वो महान राजा माना जाता है, जिसने 1034 ईस्वी में बहराइच की लड़ाई में महमूद गजनवी के भांजे गाजी सैयद सालार मसूद को हराकर मार गिराया था। कहानियों के अनुसार, सुहेलदेव (जिन्हें पासी-राजभर वंश का राजा कहा जाता है) ने क्षेत्र के 17 से 21 छोटे-बड़े राजाओं को एकजुट किया और चित्तौड़ा झील के पास विदेशी आक्रांता को करारी शिकस्त दी। भले ही इतिहासकार इस लड़ाई को अर्ध-काल्पनिक मानते हों, लेकिन हजार साल से अल्हा-ऊदल की गाथाओं, लोकगीतों और मंदिर परंपराओं के जरिए यह कथा जीवित है।
आजादी के बाद लंबे समय तक भुला दिया गया यह नाम पिछले दस साल में उत्तर प्रदेश की राजनीति का सबसे ताकतवर ब्रांड बन गया है। खासकर राजभर, पासी और अन्य अति पिछड़े वर्गों के लिए सुहेलदेव अब स्वदेशी हिंदू योद्धा और विदेशी आक्रांता के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक हैं। ओम प्रकाश राजभर ने 2002 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) बनाई, लेकिन 2016-17 से सुहेलदेव को केंद्र में रखकर उन्होंने पूरे पूर्वांचल में नया जातीय गौरव जगाया। पार्टी का झंडा और चुनाव चिह्न - तलवार लिए घुड़सवार - सीधे सुहेलदेव की मूर्तियों से प्रेरित है।
2019 में नरेंद्र मोदी ने बहराइच में भव्य सुहेलदेव स्मारक का उद्घाटन किया, ट्रेन का नाम महाराजा सुहेलदेव एक्सप्रेस रखा गया। योगी सरकार ने 56 फीट ऊँची प्रतिमा लगाई, तो ओम प्रकाश राजभर ने गाजीपुर, बलिया, मऊ और आजमगढ़ में अपनी और भी बड़ी प्रतिमाएं खड़ी कर दीं। लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी को मिली हार के बाद राजभर ने अपनी अलग “राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना” (आरएसएस) लॉन्च की है ताकि सुहेलदेव की विरासत पर सिर्फ SBSP का ही एकाधिकार रहे। अब 2027 के विधानसभा चुनाव में सुहेलदेव पूर्वांचल के 6-8 प्रतिशत राजभर मतदाताओं और गैर-यादव OBCs को एकजुट करने का सबसे बड़ा हथियार बन चुके हैं। एक मध्यकालीन लोक नायक आज उत्तर प्रदेश की सबसे गर्म राजनीतिक संपत्ति बन गया है।