उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र में हुए हालिया उपचुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे थे, जो अब चुनाव आयोग के डेटा से साबित होते नजर आ रहे हैं। स्क्रॉल की एक जांच रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम बहुल इस सीट पर भाजपा की अभूतपूर्व जीत के पीछे वोटरों को डराने-धमकाने के अलावा मतदाता सूची में हेराफेरी के संकेत मिले हैं। यह रिपोर्ट वोटरों के उन आरोपों की पुष्टि कर रही है, जिनमें पुलिस की भूमिका और संदिग्ध वोटर स्लिप्स का जिक्र था। 
कुंदरकी, जो पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) का गढ़ रहा है, में 2024 के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार रामवीर सिंह ने सपा के मोहम्मद रिजवान पर 1.4 लाख वोटों की भारी बढ़त हासिल की। यह जीत चौंकाने वाली थी, क्योंकि 2012, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा के रिजवान ने क्रमशः 17,000, 10,000 और 43,162 वोटों से जीत दर्ज की थी। भाजपा कभी इस मुस्लिम बहुल सीट पर नहीं जीती थी। उपचुनाव पूर्व विधायक जिया उर रहमान बर्क के लोकसभा चुनाव जीतने के कारण हुआ था। 

वोटरों के गंभीर आरोप

मुस्लिम वोटरों ने उपचुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर दमन का आरोप लगाया था। हमीरपुर गांव के निवासियों ने बताया कि पुलिस ने उन्हें मतदान केंद्रों पर रोका गया, जबकि केवल हिंदू वोटरों को ही अंदर जाने दिया गया। कई वोटरों का दावा है कि उनके आधार कार्ड चुनाव से पहले ही छीन लिए गए थे, जिससे पहचान सत्यापन मुश्किल हो गया। वोटर स्लिप्स नहीं मिलीं, और जो मिलीं, उन पर पुलिस ने सवाल उठाकर वोट डालने से रोका। भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा वितरित विशेष वोटर स्लिप्स वाले वोटरों को ही अनुमति मिली, जो संभवतः भाजपा समर्थक थे।
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चुनाव आयोग द्वारा जारी कुंदरकी के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध बूथ-स्तरीय आँकड़े बताते हैं कि उन बूथों पर जहां मुसलमान मतदाता भारी तादाद में हैं, वहां भी भाजपा का वोट प्रतिशत ज़्यादा है। यह एक विसंगति है, क्योंकि अन्य सभी आँकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में हिंदुत्ववादी पार्टी को बहुत मामूली मुस्लिम वोट मिलते हैं। इसकी पुष्टि मतदाताओं ने भी की। मतदान के दिन मुसलमानों को बूथों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, जैसा कि समुदाय के सदस्यों ने स्क्रॉल को बताया। इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि स्क्रॉल के विश्लेषण में पाया गया कि मतदाता सूची में गैर-मुस्लिम मतदाताओं के जुड़ने और मुसलमानों के नाम हटाए जाने की दर ज़्यादा थी।

डेटा विश्लेषण से भी पुष्टि

कुंदरकी के वोटर पुलिस की धमकी और संदिग्ध वोटर स्लिप्स का जिक्र बार-बार कर रहे हैं। एक वोटर ने कहा, "हमें वोट डालने नहीं दिया गया, केवल हिंदू भाइयों को ही अंदर जाने दिया।" लेकिन ये आरोप अब डेटा से भी पुष्ट हो रहे हैं। स्क्रॉल ने कुंदरकी के 436 मतदान केंद्रों के बूथ-स्तरीय आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें 2024 के लोकसभा चुनाव (जहां डराने-धमकाने की कम शिकायतें थीं) से तुलना की गई। "इट्स ऑल इन द नेम" टूल से वोटरों के नामों के आधार पर धर्म का अनुमान लगाया गया। प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

  • लोकसभा चुनाव में: मुस्लिम वोटरों की संख्या बढ़ने पर भाजपा का वोट शेयर घटता गया, जो सामान्य था (सीएसडीएस के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 2% मुस्लिमों ने ही भाजपा को वोट दिया था)।
  • उपचुनाव में: भाजपा का वोट शेयर 70% के आसपास स्थिर रहा, भले ही मुस्लिम वोटर 85% से अधिक थे। मुस्लिम बहुल बूथों में भाजपा वोटों में तेज उछाल आया, जो असामान्य है।
  • मतदान प्रतिशत: लोकसभा में 67.6% था, जो सभी बूथों पर स्थिर था। उपचुनाव में यह गिरकर 57.7% रह गया। मुस्लिम बहुल बूथों में गिरावट ज्यादा तेज थी। भाजपा के मजबूत बूथों पर मतदान 80% तक पहुंचा, जबकि कमजोर बूथों पर यह कम रहा।

कुंदरकी की मतदाता सूची में बदलाव

अक्टूबर 2023 से अक्टूबर 2024 तक का आंकड़ा देखिए।
  • लोकसभा से पहले (अक्टूबर 2023-अप्रैल 2024) में मतदाता संख्या 4.19% बढ़ी (3.76 लाख से 3.92 लाख), लेकिन मुस्लिम बूथों में कम बढ़ोतरी हुई।
  • लोकसभा के बाद (जून-अक्टूबर 2024) में 1.9% की कमी आई। मुस्लिम बहुल बूथों (70-90% मुस्लिम) में 5% से अधिक नाम काटे गए (गैर-मुस्लिम बूथों में 3-4%), जबकि नए नाम कम जोड़े गए (मुस्लिम बूथों में 1% बनाम हिंदू बूथों में 4%)।
  • सरदार नगर गांव (73% मुस्लिम आबादी) में 86% कटौती मुस्लिमों वोटरों की गई, नए वोटरों में केवल 61% मुस्लिम थे।
ये आंकड़े वोटरों को डराने-धमकाने की ओर इशारा करते हैं, जहां मुस्लिम मतदाताओं को वोट डालने से रोका गया और मतदाता सूची में हेराफेरी की गई।

कुंदरकी के महत्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े

कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र (मुरादाबाद जिला, उत्तर प्रदेश) में समाजवादी पार्टी के मोहम्मद रिजवान और भाजपा के रामवीर सिंह के बीच चुनाव लड़ा गया।
  • ऐतिहासिक परिणाम: 2012 में रिजवान ने 17,000 वोटों से जीत हासिल की, 2017 में 10,000 वोटों से, और 2022 में 43,162 वोटों से।
  • 2024 के उपचुनाव (नवंबर) में सिंह ने 1.4 लाख वोटों से जीत हासिल की, भाजपा को 77% वोट मिले (2022 के 30.4% से बढ़कर), जबकि समाजवादी पार्टी को 11.5% (2022 के 46.3% से गिरकर)। 
  • लोकसभा चुनाव (मई 2024) में मतदान प्रतिशत 67.6% था, जो उपचुनाव में घटकर 57.7% हो गया।
  • भाजपा का वोट शेयर लोकसभा चुनाव के 32.5% से बढ़कर उपचुनाव में 76.7% हो गया।


डेटा विश्लेषण से साक्ष्य:
  • बूथ-स्तरीय आंकड़ों से पता चलता है कि मुस्लिम बहुल बूथों में भी भाजपा को लगभग 70% वोट मिले, जो असामान्य है क्योंकि लोकसभा चुनाव में केवल 2% मुस्लिमों ने भाजपा को वोट दिया था।
  • मुस्लिम मतदाता अनुपात बढ़ने पर उपचुनाव में मतदान प्रतिशत तेजी से गिरा, जबकि लोकसभा चुनाव में यह स्थिर (65%-75%) रहा।
  • हमीरपुर गांव में मतदान प्रतिशत लोकसभा के 70% से गिरकर उपचुनाव में 18.5% हो गया, और भाजपा का वोट शेयर 17.6% से बढ़कर 84.1% हो गया।
विश्लेषण “It's all in the name” टूल का उपयोग करके नामों के आधार पर मतदाता के धर्म का अनुमान लगाया गया।


मतदान और वोटों में विसंगतियां:
  • उपचुनाव में उन बूथों में मतदान अधिक रहा जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया (80% से अधिक), लेकिन जहां भाजपा का प्रदर्शन कमजोर था, वहां मतदान नाटकीय रूप से गिरा।
  • लोकसभा चुनाव से पहले (अक्टूबर 2023-अप्रैल 2024): मतदाता संख्या 4.19% बढ़ी (3.76 लाख से 3.92 लाख), मुस्लिम बहुल बूथों में थोड़ी वृद्धि।
  • लोकसभा चुनाव के बाद (जून-अक्टूबर 2024): मतदाता संख्या 1.9% घटी, मुस्लिम बहुल बूथों में अधिक कटौती (70%-90% मुस्लिम बूथों में 5%+ बनाम गैर-मुस्लिम में 3%-4%)।
  • मुस्लिम आबादी बढ़ने पर मतदाता घटे (90% हिंदू बूथ: 4% मतदाता बढ़े; 90% मुस्लिम बूथ: 1% मतदाता ही बढ़े)।
रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटा वोटरों के आरोपों को बताता है, जो लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। चुनाव आयोग या अधिकारियों की ओर से इन आरोपों पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। सपा ने इसे धांधली का प्रमाण बताते हुए फिर से चुनाव की मांग की है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी अनियमितताएं न केवल कुंदरकी, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के चुनावी परिदृश्य पर सवाल उठा रही हैं।

वाराणसीः फर्जी मतदान का आरोप और तथ्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर फर्जी वोटरों की घुसपैठ का आरोप लगाया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने दावा किया कि भाजपा ने डुप्लिकेट नामों और फर्जी एंट्रीज के जरिए चुनाव को प्रभावित किया। राहुल गांधी ने भी पूरे देश में 'वोट चोरी' का आरोप लगाते हुए कहा कि कर्नाटक के एक बूथ से लेकर उत्तर प्रदेश तक एक ही व्यक्ति के नाम पर चार राज्यों में वोट डाले गए। ईसीआई ने इन आरोपों का खंडन किया, लेकिन सीएसडीएस सर्वे के अनुसार, यूपी में ईसी पर अविश्वास 11% से बढ़कर 31% हो गया।

मीरापुर उपचुनाव में धांधली

मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान एक पुलिस अधिकारी का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह महिलाओं को वोट न डालने की धमकी देते नजर आया: "गोली मार दूंगा!" सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे 'वोटर दमन' करार दिया था और ईसीआई से शिकायत की। ईसीआई ने कार्रवाई करते हुए दो पुलिस सब इंस्पेक्टरों को निलंबित किया। मीरापुर में मतदान प्रतिशत 57% रहा, लेकिन विपक्ष ने दावा किया कि मुस्लिम वोटरों को रोका गया। भाजपा ने इसे विपक्ष का 'नकारात्मक प्रचार' बताया।

सीसामऊ (कानपुर)  वायरल वीडियो पर पुलिस निलंबन

कानपुर की सीसामऊ सीट पर वोटर आईडी चेक करने वाले पुलिसकर्मियों का वीडियो वायरल होने के बाद ईसीआई ने दो सब इंस्पेक्टरों को सस्पेंड किया था। सपा ने आरोप लगाया कि भाजपा समर्थक वोटरों को फायदा पहुंचाने के लिए अल्पसंख्यक मतदाताओं को रोका जा रहा था। सीट पर अपराधी मामले वाले उम्मीदवारों की संख्या भी चर्चा में रही, जहां 30% से अधिक उम्मीदवारों पर आपराधिक चार्ज थे।

करहल, फूलपुर और मझवां: अनियमितताओं की शिकायतें

मैनपुरी की करहल, प्रयागराज की फूलपुर और मिर्जापुर की मझवां सीटों पर सपा ने पुलिस द्वारा मतदाताओं को डराने-धमकाने और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। अखिलेश यादव ने कहा कि इन सीटों पर 'व्यवस्थित धांधली' हुई, जिससे भाजपा को फायदा पहुंचा। ईसीआई ने कुछ बूथों पर फिर से मतदान की मांग को खारिज कर दिया, लेकिन विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट जाने की चेतावनी दी थी।

1.25 करोड़ फर्जी वोटरों का खुलासा

उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग के एआई सर्वे में सवा करोड़ फर्जी वोटरों का पता चला, जो ग्राम पंचायतों के अलावा नगरीय निकायों में भी दर्ज थे। पंचायती राज मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने इसे 'बड़ा घोटाला' बताया था। विपक्ष ने इसे भाजपा सरकार की नाकामी करार दिया, जबकि सत्ताधारी दल ने कहा कि यह पुरानी लिस्ट की सफाई है। यह मामला 2026 के पंचायत चुनावों को प्रभावित कर सकता है।
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वोट चोरी के मामले यूपी के चुनावी तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं। सपा और कांग्रेस ने संयुक्त रूप से ईसीआई से स्वतंत्र जांच की मांग की है, जबकि भाजपा इन्हें 'विपक्ष की हार का रोना' बता रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2027 विधानसभा चुनाव से पहले इन आरोपों का समाधान जरूरी है, वरना मतदाता विश्वास कमजोर पड़ सकता है। ईसीआई ने कहा है कि सभी शिकायतों पर कार्रवाई की जा रही है, लेकिन पारदर्शिता की मांग तेज हो रही है।