उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 में हैं। लेकिन यूपी पुलिस ने घर-घर जाकर बांग्लादेशियों और रोहिंग्या नागरिकों का तलाशी अभियान शुरू किया है। डिटेंशन सेंटर बनाने का आदेश सरकार 22 नवंबर को दे चुकी है। आई लव मुहम्मद प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार युवक अभी भी जेलों में हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों की पहचान के लिए पूरे राज्य में “घर-घर सर्वे” शुरू कर दिया है। इन लोगों को चिह्नित कर डिटेंशन सेंटर में रखने की तैयारी की जा रही है। इसकी पुष्टि झांसी रेंज के आईजी आकाश कुलहरी, आगरा के डीसीपी सैयद अली अब्बास और लखनऊ की महापौर सुषमा खरकवाल समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों ने की है।
22 नवंबर को जारी सरकारी आदेश के तहत यह अभियान चलाया जा रहा है। झांसी रेंज आईजी आकाश कुलहरी ने कहा, “आदेश के मुताबिक झांसी में भी डिटेंशन सेंटर बनाया जाएगा। ललितपुर, झांसी और जालौन (बुंदेलखंड क्षेत्र) में रह रहे अवैध प्रवासी यहां रखे जाएंगे, जब तक उन्हें उनके देश वापस नहीं भेज दिया जाता।”
आगरा में डीसीपी सैयद अली अब्बास ने खुलासा किया कि नगर निगम में ही करीब 3,000 अवैध प्रवासी काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “स्थानीय इंटेलिजेंस यूनिट की टीमों के साथ घर-घर जाकर जांच की जा रही है। इनके अपराध रिकॉर्ड भी खंगाले जा रहे हैं। कई प्राइवेट आउटसोर्सिंग कंपनियों में भी ऐसे लोग काम कर रहे हैं।”
लखनऊ की महापौर सुषमा खरकवाल ने दावा किया कि नगर निगम के सफाई कर्मचारियों में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं। उन्होंने कहा, “कुछ हफ्ते पहले ही मैंने सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया था। 50 परिवारों को डिपोर्ट करने की प्रक्रिया शुरू की थी। बाद में जब तलाश तेज हुई तो 160 सफाई कर्मचारी भाग गए। वे पहचान पत्र और दस्तावेज जमा नहीं करना चाहते थे। हमें लगता है कि वे रोहिंग्या थे और जाली दस्तावेजों से आधार कार्ड बनवाए थे।”
महापौर ने कहा, “कुछ लोग खुद को असम का बता रहे हैं। अगर उनके पास असम का पहचान पत्र है तो हम एनआरसी में उनकी डिटेल चेक करेंगे।” उन्होंने भागे हुए कर्मचारियों को अपराधी करार दिया।
गृह विभाग के सूत्रों के मुताबिक दो साल पहले खुफिया आधारित सर्वे में राज्य में करीब 10 लाख अवैध विदेशी पाए गए थे, जिनमें लखनऊ और आगरा में 6,000 थे। उस समय कोई कार्रवाई नहीं हुई थी क्योंकि पहचान में दिक्कत आई थी। अब घर-घर सर्वे से बेहतर नतीजे आने की उम्मीद है।
सूत्रों ने बताया कि खाली पड़े सरकारी भवनों, सामुदायिक केंद्रों और पुलिस स्टेशनों को डिटेंशन सेंटर में बदला जाएगा। चिह्नित लोगों की सूची संबंधित मंडलायुक्तों और आईजी को सौंपी जाएगी। प्रशासन ने मार्च 2026 तक इस अभियान को पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
यूपी का पहला डिटेंशन सेंटर
उत्तर प्रदेश में 2017 में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने उसी समय अवैध बांग्लादेशियों को रखने के लिए डिटेंशन सेंटर बनाने का निर्देश दिया था। सितम्बर 2020 में दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट बताती है कि गाजियाबाद के नंदग्राम में ऐसा पहला डिटेंशन सेंटर तैयार हो चुका था। दैनिक जागरण की उस रिपोर्ट के मुताबिक इस डिटेंशन सेंटर में 100 लोगों के रहने की क्षमता है और इसमें पानी और बिजली के कनेक्शन भी पहले से ही मौजूद हैं। दैनिक जागरण के अनुसार, यह डिटेंशन सेंटर पहले दलित छात्राओं के लिए एक छात्रावास था। हालाँकि जनवरी 2011 में एक पुरुष छात्रावास के साथ इसका उद्घाटन किया गया था, लेकिन कुछ साल पहले यह खाली हो गया था। तभी इसे डिटेंशन कैंप में बदलने का फैसला किया गया। तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी संजय कुमार व्यास ने उस समय दैनिक जागरण को बताया था, "डिटेंशन कैंप बनकर तैयार है। अब पुलिस विभाग इसकी निगरानी करेगा। उत्तर प्रदेश में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों को यहीं रखा जाएगा।" दैनिक जागरण की इस खबर के बाद गाजियाबाद के डिटेंशन सेंटर की और कोई सूचना उपलब्ध नहीं है।
यूपी में आई लव मुहम्मद के तहत काफी गिरफ्तारियां हुई थीं
यूपी में आई लव मुहम्मद के दौरान बड़े पैमाने पर युवकों की गिरफ्तारियां हुई थीं। उस समय भी हिन्दू संगठनों ने इसे अवैध बांग्लादेशियों से जोड़ा था। उत्तर प्रदेश में सितंबर-अक्टूबर 2025 में 'आई लव मुहम्मद' अभियान के दौरान राज्य स्तर पर 16 से अधिक एफआईआर दर्ज की गईं और 1,000 से ज्यादा मुस्लिम युवाओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए। विभिन्न रिपोर्ट्स के अनुसार, पूरे भारत में इस अभियान से जुड़े मामलों में 4,500 से अधिक लोगों पर एफआईआर और गिरफ्तारियां हुईं, जिनमें उत्तर प्रदेश का हिस्सा सबसे बड़ा रहा।
यूपी के कानपुर, बरेली, उन्नाव, मेरठ और शाहजहांपुर जैसे जिलों में विशेष रूप से सैकड़ों युवाओं को हिरासत में लिया गया, जहां पोस्टर लगाने या सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर करने को आधार बनाकर धाराएं 153ए (धर्म के आधार पर शत्रुता फैलाना) और 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) लगाई गईं। दिसंबर 2025 तक भी कई मामलों में बेल न मिलने से युवा जेलों में बंद हैं।
वर्तमान में (6 दिसंबर 2025 तक) कई युवा अभी भी विभिन्न जेलों में सलाखों के पीछे हैं, खासकर बरेली सेंट्रल जेल में मौलाना तौकीर रजा खान समेत दो दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारी बंद हैं, जिनकी गिरफ्तारी सितंबर में हुई थी। उन्नाव जिले में पांच गिरफ्तार युवा अभी भी लखनऊ और कानपुर की जेलों में हैं, जबकि मेरठ के मामले में पांच अन्य मेरठ जेल में बंद बताए जा रहे हैं। कानपुर के रावतपुर क्षेत्र से शुरू हुए विवाद में नदीम अख्तर समेत 18 युवाओं की गिरफ्तारी हुई, जिनमें से कई अभी बेल के इंतजार में हैं। ये युवा मुख्य रूप से सफाई कर्मचारी, छोटे व्यापारी या छात्र हैं, जिन पर 'सांप्रदायिक तनाव फैलाने' का आरोप है, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने इन्हें 'अवैध हिरासत' का शिकार बताया है।
प्रदर्शनों को कुचलने के लिए पुलिस ने उत्तर प्रदेश के कई जिलों में व्यापक कार्रवाई की, जिसमें बरेली में प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज और 24 से अधिक लोगों की हिरासत शामिल है, साथ ही हाल ही में समाजवादी पार्टी नेता सरफराज वाली खान के घर पर बुलडोजर चलाया गया। उन्नाव में आठ मामलों में 85 नामजद के साथ पांच गिरफ्तारियां हुईं, जबकि कानपुर में कथित मास्टरमाइंड सहित 18 को पकड़ा गया। मेरठ में पोस्टर हटाने और अफवाहें रोकने के लिए भारी पुलिस गश्त तैनात की गई, और शाहजहांपुर में सोशल मीडिया पोस्ट पर एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) लगाने की मांग उठी। कुल मिलाकर, यह कार्रवाई न केवल गिरफ्तारियों तक सीमित रही, बल्कि संपत्ति जब्ती और निगरानी जैसे कदमों से मुस्लिम समुदाय में भय का माहौल पैदा करने का आरोप लगा है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अभियान को भाजपा की “एक समुदाय के प्रति नफरत” का प्रतीक बताया। कई आलोचकों का कहना है कि “घर-घर सर्वे” का नाम देकर अल्पसंख्यकों पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। हालांकि पुलिस अधिकारियों ने इसे केवल अवैध प्रवासियों की पहचान तक सीमित बताया है।अभियान को लेकर राज्य भर में चर्चा तेज है और आने वाले दिनों में इसके नतीजे सामने आने शुरू हो जाएंगे।