उत्तर प्रदेश की सियासत में नयी हलचल है। राज्य सरकार ने जातिगत आधार पर होने वाली राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक स्थानों पर जाति-सूचक चिह्नों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद सरकार द्वारा लिया गया यह क़दम राजनीतिक दलों की रणनीतियों को झकझोर देगा। इसका उद्देश्य समाज में जातिगत भेदभाव को ख़त्म करना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना बताया गया है। लेकिन पीडीए यानी पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक जैसे मुद्दों की राजनीति करने वाले सपा जैसे दलों के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। सपा हाल में अपने जातीय समीकरण को मज़बूत कर रही है और पश्चिमी यूपी में गुर्जर सम्मेलन कर रही है। तो क्या इसका नतीज़ा राजनीतिक उथल-पुथल के रूप में सामने आएगा?