उत्तर प्रदेश की सियासत में नयी हलचल है। राज्य सरकार ने जातिगत आधार पर होने वाली राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक स्थानों पर जाति-सूचक चिह्नों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद सरकार द्वारा लिया गया यह क़दम राजनीतिक दलों की रणनीतियों को झकझोर देगा। इसका उद्देश्य समाज में जातिगत भेदभाव को ख़त्म करना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना बताया गया है। लेकिन पीडीए यानी पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक जैसे मुद्दों की राजनीति करने वाले सपा जैसे दलों के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। सपा हाल में अपने जातीय समीकरण को मज़बूत कर रही है और पश्चिमी यूपी में गुर्जर सम्मेलन कर रही है। तो क्या इसका नतीज़ा राजनीतिक उथल-पुथल के रूप में सामने आएगा?
यूपी: जाति आधारित राजनीतिक रैलियों पर रोक; सपा का पीडीए अभियान निशाने पर?
- उत्तर प्रदेश
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- 22 Sep, 2025
यूपी में जाति आधारित राजनीतिक रैलियों पर लगी रोक से सपा के PDA अभियान को झटका लग सकता है। इस फैसले का चुनावी रणनीति और विपक्ष की राजनीति पर असर क्या होगा?

यूपी में इस सियासत को समझने से पहले इस आदेश को जान लें। उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार द्वारा रविवार देर रात जारी किए गए आदेश में सभी जिला मजिस्ट्रेटों, सिविल सेवकों और पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिया गया है कि वे जातिगत आधार पर होने वाली रैलियों को तत्काल प्रभाव से रोकें। इसके साथ ही, पुलिस रिकॉर्डों में जाति का उल्लेख और सार्वजनिक स्थानों पर जाति-आधारित चिह्नों, वाहनों पर जाति-सूचक स्टिकर या स्लोगन को हटाने का भी आदेश दिया गया है। यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस निर्देश का हिस्सा है, जिसमें कहा गया था कि जाति का सार्वजनिक प्रदर्शन समानता और बंधुत्व जैसे संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करता है।