उत्तराखंड के होटल और गेस्टहाउस मालिकों के बीच एक नया डर उभर रहा है, जिसके चलते वे इंटरफेथ जोड़ों को अपने परिसर में ठहरने से मना कर रहे हैं। इसका कारण है 'लव जिहाद' सतर्कता समूहों या हिन्दू संगठनों के छापे और उत्पीड़न का डर। यह हरकत खासकर देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे पर्यटन स्थलों पर देखी जा रही है, जहां होटल मालिक जोड़ों की धार्मिक पहचान की जांच कर रहे हैं और कई बार उन्हें कमरे देने से इनकार कर रहे हैं।
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक कई होटल मालिकों ने बताया कि स्थानीय हिन्दू समूह और कुछ दक्षिणपंथी संगठन नियमित रूप से उनके परिसरों पर नजर रखते हैं। ये समूह इंटरफेथ जोड़ों, विशेष रूप से हिंदू-मुस्लिम जोड़ों, को निशाना बनाते हैं और 'लव जिहाद' के आरोप लगाकर होटल मालिकों को धमकाते हैं। इस डर से कई होटल मालिक अब जोड़ों से पहचान पत्र मांग रहे हैं और उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि की जांच कर रहे हैं। कुछ मामलों में, जोड़ों को यह साबित करने के लिए कहा जा रहा है कि वे विवाहित हैं या एक ही धर्म से ताल्लुक रखते हैं।
होटल मालिकों ने अपनी लाचारी बताते हुए कहा कि वे इस तरह की कार्रवाइयों से बचने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि सतर्कता समूहों के छापे और पुलिस की पूछताछ से उनका कारोबार प्रभावित हो सकता है। एक होटल मालिक ने बताया, "हम मेहमानों को मना नहीं करना चाहते, लेकिन अगर हम इंटरफेथ जोड़ों को ठहराते हैं, तो हमें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।"
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हालांकि, यह स्थिति केवल होटल मालिकों तक सीमित नहीं है। कई इंटरफेथ जोड़े इस तरह के भेदभाव की शिकायत कर रहे हैं। कुछ जोड़ों ने बताया कि उन्हें होटल में प्रवेश से मना कर दिया गया, भले ही उनके पास वैध पहचान पत्र और बुकिंग थी। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सवाल उठाती है, बल्कि उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग पर भी असर डाल सकती है, जो पहले से ही कोविड-19 महामारी के बाद उबरने की कोशिश कर रहा है।
स्थानीय प्रशासन ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह प्रवृत्ति न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचा रही है। दूसरी ओर, सतर्कता समूहों का दावा है कि वे 'लव जिहाद' के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं, जो उनके अनुसार एक सामाजिक खतरा है।

उत्तराखंड में मुस्लिमों पर हमले, बहिष्कार अब सामान्य घटनाएं 

2024 और 2025 में उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा और बहिष्कार की कई घटनाएं सामने आई हैं, जो मुख्य रूप से हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा की गईं। फरवरी 2024 में हलद्वानी के बनभूलपुरा इलाके में एक मदरसा और मस्जिद के विध्वंस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में छह मुसलमान मारे गए, जिसमें पांच मौतें मौके पर और एक बाद में हुई। इसी साल जुलाई में धारचूला में 91 दुकानों के लाइसेंस रद्द किए गए, जिनमें से 85 मुस्लिम व्यापारियों की थीं। स्थानीय व्यापारी संघ ने इन्हें 'बाहरी' लोग बताते हुए टारगेट किया था। सितंबर 2024 में चमोली जिले के नंदानगर में एक मुस्लिम नाई पर नाबालिग से छेड़छाड़ का आरोप लगने के बाद सात मुस्लिम दुकानों पर हमला हुआ, जहां लूटपाट और तोड़फोड़ की गई।

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म (CSSS) की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में उत्तराखंड सहित उत्तरी भारत में 13 सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। जिनमें 10 मुसलमानों की मौतें हुईं।

मुस्लिम व्यापारियों को दुकानें खाली करने के लिए मजबूर करने की प्रवृत्ति राज्य में तेजी से फैल रही है, जो आर्थिक बहिष्कार का रूप ले चुकी है। अगस्त 2024 में टिहरी जिले के चौरास क्षेत्र में सात मुस्लिम दुकानदारों को 'लव जिहाद' के आरोपों के तहत दुकानें बंद करने और घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया; उन्होंने पुलिस स्टेशन में स्वेच्छा से वहां से इलाका छोड़कर निकलने का बयान देने को कहा गया। दिसंबर 2024 में चमोली के खनसर में एक व्यापारी संघ ने 15 मुस्लिम परिवारों को 31 दिसंबर तक शहर छोड़ने का अल्टीमेटम दिया।
मार्च 2025 में देहरादून में भैरव सेना के अध्यक्ष संदीप खत्री ने एक मुस्लिम युवक पर हमला कर उसे आधे घंटे में दुकान खाली करने को कहा। दिसंबर 2024 में पौड़ी गढ़वाल में एक मुस्लिम दुकानदार, जो 16-17 वर्षों से कारोबार चला रहा था, को हिंदुत्ववादी नेत्री द्वारा धमकी दी गई कि यदि प्रशासन कार्रवाई न करे तो वह जबरन दुकान खाली करवाएगी।
ये घटनाएं सामाजिक सौहार्द को खतरे में डाल रही हैं और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं। अक्टूबर 2024 में उत्तरकाशी में एक मस्जिद के खिलाफ हिंसक रैली में मुसलमान घायल हुए।  अगस्त 2025 में पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में एक बुजुर्ग मुसलमान को 'जय श्री राम' नारा न लगाने पर पीटा गया और दाढ़ी काटने की धमकी दी गई। हालांकि तीनों आरोपी गिरफ्तार हुए। अप्रैल 2025 में रुद्रपुर में एक दरगाह को राजमार्ग विस्तार के नाम पर ध्वस्त किया गया।  


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साउथ एशिया जस्टिस कैंपेन के अनुसार, 2024 में BJP शासित राज्यों में 21 मुसलमानों की हत्याएं हुईं, जबकि 2025 की शुरुआत में भी 'स्पिट जिहाद' जैसी साजिश सिद्धांतों पर नीतियां बनीं। उत्तराखंड में स्थानीय प्रशासन ने कुछ मामलों में गिरफ्तारियां कीं, लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे अपर्याप्त मानते हैं, क्योंकि ये घटनाएं राज्य स्तर पर धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही हैं। यह स्थिति उत्तराखंड में एक जटिल सामाजिक और कानूनी बहस को जन्म दे रही है, जहां निजता, धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक दबावों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण हो रहा है।