जैसे किसी अंधेरे घर में बहुत पहले गुम हुई कोई छोटी चीज आप ढूंढ रहे हों और अचानक आपका हाथ उससे छू जाए। बीएचयू-आईआईटी के पूर्व छात्र और अभी कैंब्रिज में एक्सोप्लैनेटरी साइंस के प्रोफेसर निक्कू मधुसूदन ने पहले एस्ट्रोफिजिक्स जर्नल लेटर्स में अपना रिसर्च पेपर छपाकर, फिर कैंब्रिज में ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए एक चौंकाने वाली घोषणा की। 

उन्होंने कहा कि जेम्स वेब टेलीस्कोप से उनके हालिया प्रेक्षणों ने धरती से बाहर जीवन की तलाश को लेकर की गई अबतक की सारी कोशिशों में सबसे कारगर नतीजे तक पहुंचा दिया है।इस प्रेक्षण का संबंध धरती से 124 प्रकाशवर्ष दूर स्थित एक लाल तारे के ग्रह ‘के2-18बी’ से संबंधित है। निश्चित रूप से यह ग्रह धरती से बहुत ज्यादा दूर है और इसके बारे में कोई पक्का नतीजा निकालने में अभी बहुत समय लगेगा।

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लेकिन निक्कू मधुसूदन का दावा जैविक उत्पत्ति से जुड़ाव वाली गैसों डाई मिथाइल सल्फाइड (डीएमएस) और डाई मिथाइल डाई सल्फाइड (डीएमडीएस) के चिह्न इस ग्रह के वातावरण में खोज लेने का है। इस प्रेक्षण की पुष्टि आगे कोई और टीम भी कर दे तो ज्ञान का यह क्षेत्र एकदम से हरा हो जाएगा। ध्यान रहे, धरती से इतर जीवन के एक संभावित कैंडिडेट के रूप में इस ग्रह पर थोड़ी बातचीत इसी जगह मार्च के अंत में आए एक लेख में की गई थी। 

इस प्रेक्षण से जुड़ी जटिलताओं पर हम बाद में आएंगे। पहले इस ग्रह और इसके तारे को लेकर थोड़ी चर्चा करते हैं। केपलर टेलीस्कोप द्वारा खोजा गया तारा के2-18 हमारे सूरज की तुलना में छोटा और नया है। इसकी मोटाई सूरज की 45 फीसदी और आयु लगभग पौने तीन अरब साल है। ध्यान रहे, हमारे सूरज की उम्र का हिसाब पांच अरब साल के आसपास लगाया गया है। के2-18 की सतह का तापमान भी सूरज के आधे से थोड़ा ही ज्यादा है।

इस तारे के इर्दगिर्द घूमने वाला भीतर से दूसरा ग्रह के2-18बी पृथ्वी से काफी बड़ा है। इसकी त्रिज्या पृथ्वी की ढाई-तीन गुनी है। इस हिसाब से इसका वजन पृथ्वी का 20-25 गुना होना चाहिए था, बशर्ते इसकी बनावट पृथ्वी जैसी ही होती। लेकिन वजन में यह पृथ्वी का साढ़े आठ से दस गुना ही है। इससे एक बात साफ है कि इसका घनत्व पृथ्वी से काफी कम है। ऐसा वहां लोहा कम होने के चलते भी हो सकता है और ग्रह में द्रव-गैस ज्यादा होने से भी। 

एक अच्छी बात इस ग्रह के साथ यह है कि यह अपने तारे के गोल्डिलॉक जोन में पड़ता है। यानी पानी वहां द्रव अवस्था में मौजूद हो सकता है। ग्रह का औसत तापमान 23 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच होने का अनुमान लगाया गया है। यह खुद में एक आश्चर्यजनक बात ही है क्योंकि अपने तारे के इर्दगिर्द इसकी कक्षा हमारे सौरमंडल में बुध ग्रह की तुलना में आधी से भी छोटी है। यूं समझें कि अगर यह ग्रह अपनी मौजूदा कक्षा में ही सूरज के इर्दगिर्द घूम रहा होता तो इसकी सतह पर लोहे और अन्य धातुओं की नदियां बहतीं और बारिश में भी वहां शायद यही सब बरसता। लेकिन इसका तारा उतना गर्म नहीं है, सो जिंदगी की उम्मीद के लिए यहां बड़ी गनीमत है।

2015 में खोजे गए इस ग्रह के वातावरण को अभी तक जितना भी जाना जा सका है, उसके मुताबिक इसकी हवा में हाइड्रोजन की बहुतायत है। 2023 में लिए गए प्रेक्षण में इसमें पानी की भाप के अलावा कुछ कार्बन डायॉक्साइड और मीथेन भी दर्ज की गई थी, लेकिन हाल के प्रेक्षण में भाप की मात्रा पिछली बार से कम आई है। इसका एक कारण प्रेक्षण का पक्का न होना हो सकता है, दूसरा यह कि किन्हीं विशेष स्थितियों में भाप जमकर सतह पर चली जाती हो, फिर बदली हुई स्थितियों में पर्यावरण में लौट भी आती हो। इस बार यहां डीएमएस और डीएमडीएस का दर्ज किया जाना वाकई चौंकाने वाला है, लेकिन स्पेक्ट्रम में इन गैसों की मौजूदगी बहुत सूक्ष्म भी नहीं कही जाएगी। 

निक्कू मधुसूदन का कहना है कि समुद्र की सबसे आम वनस्पति और समुद्री खाद्य शृंखला की बुनियाद समझे जाने वाले फाइटोप्लैंक्टन द्वारा उत्सर्जित ये गैसें पृथ्वी के वातावरण में जिस अनुपात में पाई जाती है, के2-18बी पर इनकी उपस्थिति उसकी कम से कम हजार गुना प्रेक्षित की गई है। तो क्या एक सुदूर तारे के इर्दगिर्द घूम रही इस दुनिया में समुद्रों की भरमार है, जहां समुद्री जीवन की नींव के रूप में फाइटोप्लैंक्टन की फसलें लहलहा रही हैं?

दरअसल, इस प्रेक्षण की पुष्टि हो जाए तो भी इस नतीजे तक सीधे नहीं पहुंचा जा सकता। दोनों गैसें, डीएमएस और डीएमडीएस अजैविक तरीकों से भी बन सकती हैं। समुद्रों में मिलने वाले गर्म सोतों के इर्दगिर्द भी ये जब-तब निपट अजैविक ढंग से पाई जाती हैं और ऐसी ही कोई कहानी बड़े पैमाने पर के2-18बी पर भी चल रही हो सकती है।

इतनी बातें तो हम धरती पर अपने तजुर्बों से ही कह सकते हैं। लेकिन जिस ग्रह को लेकर हम यहां चर्चा कर रहे हैं, उसका वातावरण हमारी तरह नाइट्रोजन और ऑक्सीजन का नहीं, मुख्यतः हाइड्रोजन का बना है। इस विस्फोटक गैस की बहुत बड़े पैमाने की मौजूदगी कैसी रासायनिक क्रियाओं को जन्म दे सकती है, इस बारे में हम कुछ भी नहीं जानते। कोई अनुमान लगाने से पहले थोड़ी बात हाइड्रोजन के वातावरण वाले इस अजूबे पर भी होनी ही चाहिए।

किसी ग्रह के वातावरण की बनावट में सबसे बड़ी भूमिका उसका वजन निभाता है। पलायन वेग नाम की राशि ग्रह के वजन से ही निकाली जाती है। धरती के मामले में यह 11.2 किलोमीटर प्रति सेकंड है। रॉकेट से लेकर गैस तक कोई भी चीज पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तोड़कर इसकी कक्षा से बाहर निकल सके, इसके लिए उसका वेग इतना या इससे ज्यादा होना चाहिए। हाइड्रोजन जैसी हल्की गैसों के अणुओं की औसत रफ्तार तेज होती है और पृथ्वी के वातावरण में पलायन वेग हासिल करके वे धीरे-धीरे रिस जाते हैं। लेकिन के2-18बी पृथ्वी से काफी भारी ग्रह है। उससे बाहर जाना हाइड्रोजन अणुओं के लिए भी आसान नहीं है, लिहाजा वहां उनकी उपस्थिति बनी रहती है।

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अपने तारे के नजदीक घूमने वाले ऐसे भारी ग्रहों के लिए निक्कू मधुसूदन ने ही ‘हाइशन’ नाम की एक श्रेणी चलन में ला दी है। एक ऐसा शब्द, जो हाइड्रोजन और ओशन को मिलाकर बना है। लाल तारों के करीब घूमने वाले ऐसे ग्रह, जिनके वातावरण में हाइड्रोजन की शिनाख्त की जा सके और जिनकी सतह पर महासागर मौजूद हों। 

अभी पृथ्वी से इतर जीवन की तलाश के लिए वैज्ञानिकों का ध्यान हाइशन खोजने पर ही सबसे ज्यादा है। हमारी आकाशगंगा में कम तापमान वाले लाल तारों का अनुपात अधिक है और उनके करीब घूमने वाले भारी ग्रहों की शिनाख्त आसान है। ऐसे में हाइशन का सैंपल साइज बड़ा हो जाता है। इंसानों जैसे बुद्धिमान प्राणियों की तलाश के लिए ऐसे ग्रह ज्यादा काम के नहीं हैं लेकिन जीवन का कोई न कोई रूप खोज लिए जाने की संभावना वहां ज्यादा है।