loader

विश्व हिंदी सम्मेलनों में झूठा गौरव गान होता है ! 

क्या आपको पता है कि 15 फरवरी से फिजी में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है? इस बात की तरफ ध्यान तब गया जब एक सांसद मित्र ने बताया कि उन्हें उस कार्यक्रम में जाना है। एक समय था जब विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन चर्चा में रहते थे। हालांकि वह भी कोई रचनात्मक चर्चा नहीं होती थी। चूंकि ऐसे सम्मेलन विदेशों में आयोजित होने लगे थे इसलिए बहुत सारे लेखकों और तथाकथित हिंदी सेवियों को इनमें अपने लिए सरकारी ख़र्च पर मुफ्त विदेश यात्रा का एक अवसर दिखने लगता था। इसलिए बहुत दिन तक साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में यह चर्चा चलती रहती थी कि इस बार सम्मेलन में किन-किन लोगों को ले जाया जा रहा है। अक्सर ऐसी चर्चाएं इस मायूसी के साथ खत्म होती थीं कि इनमें बस सरकारी कृपा प्राप्त लेखक या अफसर या नेता या ऐसे ही लोग चले जा रहे हैं। 

अब वह चर्चा भी समाप्त है तो इसलिए कि एक तो लोगों ने ऐसे विश्व हिंदी सम्मेलनों से उम्मीद छोड़ दी है और दूसरे यह कि अब विदेश यात्रा पहले की तरह आकर्षक या अलंघ्य भी नहीं रह गई है। हिंदुस्तान की नई पीढ़ी बड़ी तादाद में विदेशों में बस रही है जिनमें ऐसे लेखकों के बच्चे भी हैं जो अब छह महीने यूरोप, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में गुज़ार लिया करते हैं। हिंदी दरअसल जो नई सार्वभौमिकता हासिल कर रही है, उसके पीछे इस भूमंडलीय होती दुनिया में जगह-जगह पहुंचे भारतीय बच्चे ही हैं जो हिंदी या दूसरी भारतीय भाषाओं को अपनी बोली की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। 
ताजा ख़बरें
इस लिहाज से विश्व हिंदी सम्मेलन जैसे आयोजन लगभग अप्रासंगिक हो चले हैं- वे बहुत सारे सरकारी कर्मकांडों की तरह महज एक कर्मकांड रह गए हैं जो दुर्भाग्य से राष्ट्रवाद और भाषाभक्ति की भावुक और छिछली घोषणाओं के विस्तार के सिवा कुछ नहीं करते। इसीलिए मेरी तरह के हिंदी लेखक को, जिसके लिए उसकी भाषा रोटी और रोज़गार का ज़रिया भी है और खुद को अभिव्यक्त करने का प्रथम माध्यम भी, ऐसे आयोजन कोफ्त से भरते हैं- कुछ इस तरह जिस तरह हिंदी दिवस के नाम पर मनाए जाने वाले थोथे कार्यक्रम भरते हैं। 

इन आयोजनों में हिंदी के प्रति जो प्रेम दिखाया जाता है, हिंदी का जो गौरव गान किया जाता है, वह एक भाषा के रूप में हिंदी के साथ होते हुए बर्ताव को देखते हुए लगभग अश्लील मालूम होता है।


हिंदी बहुत सारी जगहों पर दिखाई पड़ती है लेकिन लगभग तमाम जगहों पर ग़लत दिखाई पड़ती है। दिल्ली की सड़कों पर लिखे नामपट्ट हों, अस्पतालों की निर्देशिकाएं हों, ‌‌फिल्मों के सबटाइटिल हों, यहां तक की टीवी और अखबारों की खबरें हों‌ और अब तो खूब बिकने वाले हिंदी लेखकों की किताबें हों- इनमें साफ़-सुथरी हिंदी की अपेक्षा तो बहुत दूर की बात है, लगभग अशुद्धियों से भरी, नासमझ अनुवादों की मारी और स्मृतिवंचित ऐसी भाषा मिलती है जो बिल्कुल कामचलाऊ मालूम होती है- जैसे हिंदीभाषियों की अनपढ़ता पर बहुत गहरे यकीन के साथ यह भाषा लिखी जा रही हो। 

दिल्ली के अपने दफ्तर के बाहर तिराहे पर जो नामपट्ट लगा है उसे लगभग रोज़ देखता हूं और उसमें सड़क और कॉलोनी का अशुद्ध नाम देखकर झुंझलाहट से भर जाता हूं। बल्कि यह डर लगने लगा है कि रोज़ ‘मूलचंद’ को ‘मुलचंद’ पढ़ते हुए मैं इसी का आदी न हो जाऊं। पिछले दिनों एम्स के ओपीडी भवन में मैंने एम्स के रिसेप्शन पर 'अपॉइंटमेंट' का हिंदी अनुवाद 'नियुक्ति' देखा। यह बिल्कुल सही लेकिन संदर्भ से कटे और इस वजह से लगभग हास्यास्पद हो उठने वाले अनुवाद का अप्रतिम उदाहरण है। हिंदी के लेखकों को उनकी किताबों की अशुद्धियों की ओर ध्यान दिलाएं तो वे प्रकाशकों के सिर ठीकरा फोड़ देते हैं। प्रकाशकों से पूछने का मतलब नहीं रह गया है क्योंकि न उनके पास ढंग के संपादक दिखते हैं और न प्रूफ़रीडर। 

हिंदी सम्मेलनों के कर्मकांड लगभग इसी अनपढ़ता का मायूस करने वाला विस्तार जान पड़ते हैं। वहां लिए जाने वाले संकल्प और निर्णय या तो भावुकता से भरे होते हैं या फिर पाखंड के मारे।


मुझे नहीं मालूम कि किन दूसरी भाषाओं को अपने लिए ऐसे भाषा दिवस या विश्व सम्मेलन आयोजित करने पड़ते हैं। कम से कम अंग्रेजी में तो ऐसे किसी दिवस या आयोजन की जानकारी मुझे नहीं है जो इन दिनों हमारी वास्तविक भाषा बनी हुई है। जाहिर है किसी समर्थ और सशक्त भाषा को ऐसे आयोजनों की बैसाखी की ज़रूरत नहीं पड़ती। हिंदी को इसलिए पड़ रही है कि हिंदी बोलने वाले बस हिंदी बोलते हैं- एक बोली की तरह- वे उसमें काम नहीं करते। वे हिंदी का अवसरानुकूल इस्तेमाल भर करते हैं। उसमें वे सिनेमा बनाते हैं, उसमें वे पत्रकारिता करते हैं, उसमें वे सम्मेलन करते हैं, उसमें वे राजनीति करते हैं, लेकिन अंतत: हिंदी के इस विराट दिखते हाथी का अंकुश अंग्रेज़ी नाम के महावत के हाथ में होता है। सारे के सारे बौद्धिक निर्देश वहीं से आते हैं, सारी की सारी दृष्टियां वहीं से मिलती हैं। 

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें
इसके समानांतर हिंदी की जो मौलिक दृष्टि प्रस्तावित की जाती है, वह दुर्भाग्य से एक झूठे गर्व से भरी होती है और इसलिए उसमें प्राचीनता का अनावश्यक महिमामंडन, राष्ट्र का झूठा गौरव-गान और हिंदी को ज़्यादा से ज़्यादा ‘शुद्ध हिंदी’ की तरह बरतने का एक आग्रह अपने-आप चला आता है। फिर पता चलता है कि इस हिंदी से छांट-छांट कर प्रचलित शब्द निकाले जा रहे हैं क्योंकि वे उर्दू के माने जाते हैं- धीरे-धीरे हिंदी-प्रेम एक सांप्रदायिक दृष्टि का विस्तार करने वाले भाषा-प्रेम में बदल जाता है।

अफ़सोस की बात यह है कि यह प्रक्रिया बरसों से चली आ रही है। यह टिप्पणी लिखते हुए एहसास हो रहा है कि यह सारी बातें हम पहले भी करते और लिखते रहे हैं। लेकिन इन्हें बार-बार लिखते रहने के अलावा कोई उपाय नहीं है। आख़िर हमारे नाख़ून बढ़ते हैं तो हम उन्हें बार-बार काटते ही हैं। फिजी में हो रहे विश्व हिंदी सम्मेलन की आलोचना इस टिप्पणी का मक़सद नहीं है, बस यह याद दिलाना है कि ऐसे सम्मेलन तब सार्थक होंगे जब हिंदी के वास्तविक संकटों और सवालों की पहचान हो और उनसे मुठभेड़ का कोई नियमित आंदोलन चले। 

भाषाएं सम्मेलनों से नहीं, अधिकतम इस्तेमाल से बनती और बचती हैं, वे अपनी अभिव्यक्ति की संवेदनशीलता, बौद्धिकता और वैज्ञानिक दृष्टि की सतत खोज से बचती हैं। हिंदी में यह सब नहीं हो रहा है, बस सम्मेलन हो रहा है और हिंदी को बढ़ावा देने के बेमानी संकल्प लिए जा रहे हैं। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रियदर्शन
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विविध से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें