कभी कभी कुछ रचनाएँ भी अजीब तरह की यात्राएँ करती हैं। मिसाल के लिए चर्चित नाटककार अशोक लाल के एक नाटक को लीजिए। उन्होंने लगभग चालीस साल पहले एक नाटक लिखा `ह्वाट इज इन ए सरनेम’ और तब के अपने फिल्मकार मित्र रमेश तलवार को पढ़ने के लिए दिया। रमेश तलवार को ये रचना इतनी अच्छी लगी कि कहा कि मैं तो इसके ऊपर फिल्म बनाऊंगा, नाटक बाद में कर लेना। `तेरा नाम मेरा नाम’ नाम से फिल्म बन भी गई जो सराही भी गई और दूरदर्शन पर भी दिखाई गई। इस तरह एक लिखित नाटक मंचित होने के पहले ही फिल्मी रंग में ढल गया।
‘ह्वाट् इज इन ए सरनेम’: जातिप्रथा और जातिगत आरक्षण
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- 29 Mar, 2025

युवा निर्देशक फहद खान के निर्देशन में `ह्वाट इज इन ए सरनेम’ का मंचन किया गया। पढ़िए, इस नाटक के मंचन की समीक्षा।
बहरहाल, आगे चल कर ये नाटक मंचित भी हुआ और होता रहा। कई निर्देशकों ने इसे किया। पिछले सप्ताहांत `अंतराल थिएटर ग्रूप’ ने युवा निर्देशक फहद खान के निर्देशन में इसे खेला। स्थान था दिल्ली के हौज खास के इलाके में ‘एनएनबी इंडिया सेंटर फॉर ब्लाइंड वीमेन’ का सभागार। एक छोटा स्थल लेकिन आत्मीय माहौल वाला।