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क्या महिला सिर्फ देह है...बढ़ते यौन आक्रमण पर सरकार और समाज को धिक्कार

कोई व्यक्ति जब आईआईटी जैसी बड़ी परीक्षा पास करके संस्थान में दाखिला लेता है तो उसे आत्म-गौरव की अनुभूति होती है और जब यह उपलब्धि महिलायें हासिल करती हैं तब उनके भीतर के आत्मविश्वास को तौलना बहुत मुश्किल हो सकता है। घुटन भरे भारतीय समाज के दो-मुँही ढांचे में महिलाओं को परिवारों से मिलने वाला समर्थन अक्सर अपर्याप्त होता है इसके बावजूद IIT-JEE पास करना और बाहर निकलकर उच्च शिक्षा ग्रहण करना बेहद शानदार अनुभव होता है। लेकिन देश और दुनिया के सर्वोच्च संस्थानों में पहुँचने के बाद भी महिला की ‘देह’ उसका पीछा नहीं छोड़ती। एक छात्र के रूप में उसकी ‘मकैनिक्स’ कितनी अच्छी थी, उसे ‘फ़ंक्शन’ में कितनी महारत हासिल थी या वो रोटैशनल डाइनैमिक्स, फ्रिक्शन व पुली के सवाल कितने आसानी से कर लेती थी किसी को संभवतया इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। किसी को यह जानने में दिलचस्पी नहीं है कि उसकी ऑर्गैनिक केमिस्ट्री ज्यादा अच्छी थी या इनॉर्गैनिक! इतना सबकुछ पढ़के,अंत में पुरुष के लिए वो सिर्फ देह रह जाती है। एक महिला जिसमें असीमित संभवनाएं उमड़ती रहती हैं पर वो सिर्फ एक देह है, इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता, कुछ भी नहीं!

जब बुधवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी में स्थित IIT-BHU कैंपस में रात को IIT की ही एक छात्रा के साथ 3 गुंडों/बदमाशों द्वारा ‘यौन आक्रमण’ किया गया तब उसे सिर्फ यही लगा होगा कि सबकुछ पढ़ने और देश की कठिनतम परीक्षा में से एक को पास करने के बाद भी वो कुछ लड़कों के लिए सिर्फ देह है। कानून के हाथ लंबे हैं या छोटे या फिर मोटे तगड़े इससे सच में कोई फ़र्क नहीं पड़ता,जबतक कानून महिलाओं को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने की स्थिति में नहीं है। इस बात का कोई अर्थ नहीं कि किस अपराधी का एनकाउंटर किया गया या किसका घर बुलडोजर से गिराया गया। सरेआम एक कॉलेज कैंपस में गन पॉइंट पर छात्रा के कपड़े उतरवाए गए, उसका वीडियो बनाया गया और उसे जान से मारने की धमकी दी गई लेकिन संस्थान का एक भी सुरक्षाकर्मी वहाँ दिखाई नहीं दिया, कैसे?
आज पूरी धरती को सैटेलाइट से आच्छादित कर दिया गया है लेकिन इतनी बेबसी कि एक पूरा कैंपस भी CCTV से आच्छादित नहीं किया जा सका है। यही कारण है कि आज घटना के 4 दिन बाद भी अपराधियों की पहचान नहीं की जा सकी। किसी को नहीं पता कि वो 3 अपराधी कौन थे और कैंपस में कैसे दाखिल हो गए। 200 से अधिक गार्ड्स की संख्या वाला IIT-BHU प्रशासन सिर्फ तब जागा जब शिकायत पहुंची और छात्रों ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। अपने कैंपस की, अपनी छात्राओं की सुरक्षा में असफल प्रशासन का निकम्मापन तो तब और ज्यादा रोशनी में आ गया जब विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए प्रशासन ने इंटरनेट सुविधाओं को ही बाधित करवा दिया। यह आज के भारत का क्लासिक मॉडल है, जहां भी अक्षमता को छिपाना हो लॉ-एण्ड-ऑर्डर के नाम पर इंटरनेट बंद करवा दिया जाए। 
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IITs भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा के आधारभूत स्तम्भ हैं। यहाँ होने वाली घटना किसी शहर तक सीमित नहीं रहती पूरे विश्वमें जाती है। लेकिन इसके बावजूद ताज्जुब नहीं होना चाहिए जब पीएम मोदी अपनी ही संसदीय सीट पर घटी इस शर्मनाक घटना पर ‘चुप्पी’ साध गए हों। किसी को लग सकता है कि क्या पीएम हर घटना पर बोलेंगे? मेरा जवाब है हाँ! क्यों नहीं बोलेंगे पीएम? वो भारत के प्रधानमंत्री हैं उन्हे यह ध्यान रखना होगा कि भारत के ऐसे समूह जो ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से भेदनीय हैं उनके खिलाफ हर छोटी से छोटी घटना पर भी उन्हे बोलना ही चाहिए, यह तो फिर भी 50 प्रतिशत आबादी की असुरक्षा का मामला है।जब आप अपने राजनैतिक प्रतियोगियों के खिलाफ हर एक बिन्दु को याद रख सकते हैं, उन्हे जड़ से समाप्त करने की शपथ ले सकते हैं तो महिला अपराधों को समाप्त करने की शपथ क्यों नहीं ले लेते? साथ ही यह उनके अपने संसदीय क्षेत्र की घटना है उस पर तो उन्हे बोलना ही चाहिए था। पर उन्होंने महिला पहलवानों के मुद्दे की तरह, एक बार फिर से महिलाओं के शोषण के मुद्दे पर अपनी चुप्पी को जारी रखा। 
लेकिन यह भारत है यहाँ हर कोई सुविधा से चुप्पी नहीं साधता। प्रियंका गाँधी ने IIT-BHU के छात्रों के समर्थन में अपना पक्ष साफ तौर पर रखा। घटना के तुरंत बाद उन्होंने ‘एक्स’(ट्विटर)पर लिखा- बनारस में IIT-BHU की एक छात्रा पर यौन आक्रमण हुआ है।…विश्वविद्यालय-परिसर में, उस छात्रा के साथ ज़ोर-ज़बर्दस्ती और दिल दहला देने वाली हिंसा की गयी है। निर्लज्ज हमलावरों ने घटना का वीडियो भी बना लिया है..”। जब ऐसी घटनाएं घटती हैं तब लोगों को अपने नेताओं का समर्थन चाहिए होता है। वही नेता जिन्हे भारत के लोकतंत्र की बागडोर भारत की जनता ने स्वयं दी है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि सत्ता के केंद्र में बैठते ही नेता, आँखों से कमजोर और कानों से बहरेपन का शिकार हो जाते हैं। उनमें जो एक अंग बेपनाह वृद्धि करता है वो है उनका मुँह। वो बस बोलते हैं और ढेर सारा बोलते हैं लेकिन सुनने और देखने की क्षमताओं को नष्ट करते चले जाते हैं। वही आज भी हो रहा है। प्रशासन और पुलिस अपना काम करेगी लेकिन नेता क्या करने वाले हैं? 
लेकिन प्रियंका गाँधी ने जरा भी संकोच नहीं किया उन्होंने खुलकर लिखा- “क्या अब BHU परिसर और IIT जैसे शीर्ष संस्थान भी सुरक्षित नहीं हैं? प्रधानमंत्री जी के निर्वाचन-क्षेत्र में एक छात्रा का अपने ही शिक्षण-संस्थान के भीतर निर्भय होकर पैदल चलना क्या अब संभव नहीं रहा? धिक्कार है”। प्रियंका गाँधी ने बिल्कुल सही कहा धिक्कार ही है! क्योंकि ऐसा नहीं है कि बुधवार की यह घटना एकमात्र घटना है इसके अलावा पूरे देश में ऐसी घटनाएं घट रही हैं और मजाल है कभी देश का शीर्ष नेता उस पर अपनी बात रख दे? शायद आजकल के ‘शीर्ष’ संदेश सिर्फ ED और CBI द्वारा ही भेजे जाते हैं। बुधवार की घटना के दो दिन पहले भी इसी IIT-BHU कैंपस में ही ऐसी ही एक घटना और घट चुकी है। इंडियन एक्सप्रेस के संववाददाता असद रहमान की रिपोर्ट के अनुसार, IIT-BHU में छात्रा के साथ बदसलूकी के दो दिन पहले कैम्पस में ऐसी ही एक और घटना घटी थी, प्रॉक्टर कार्यालय को इसके बारे में सूचित किया गया था पर उन लोगों ने कोई प्रशासनिक कदम नही उठाया। 
छात्र संसद की एक महिला सदस्य ने कहा कि दो दिन पहले जिस छात्रा के साथ बदसलूकी हुई थी उसमें 4 लोग शामिल थे, बिल्कुल इसी तरह की घटना थी पर छात्रा ने अपने घर वालों के डर से यह बात आगे नहीं बढ़ायी। छात्र संसद की इस महिला सदस्य ने आगे बताया कि यहां कैम्पस में एक सुनसान जगह पर पिकनिक स्थल बन गया है जहां बाहरी लोग आते हैं, उनकी गाड़ियों के शीशे काले होते हैं, वे यहां आकर दुर्व्यवहार करते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन कुछ नहीं करता।इस छात्रा का वक्तव्य यह साबित करता है कि संस्थान के सुरक्षाकर्मी, डायरेक्टर, डीन और प्रॉक्टर समेत सम्पूर्ण प्रशासन सालों से नींद में सोये हुए हैं और जब आज घटना घट गई तब ‘कार्यवाही’ और ‘आश्वासन’ का खेल शुरू कर दिया गया है। जरा सोचिए कि संस्थान के डीन ने स्वीकार किया है कि पिछली घटना के संबंध में एक शिकायत प्राप्त हुई थी, इसके बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई! क्यों?
आईआईटी बीएचयू के छात्रों में रोष है, धरना भले बन्द हो गया हो पर यौन आक्रमण की शिकार छात्रा को न्याय दिलाने के लिए कैम्पस में लड़कियां लगातार प्रदर्शन कर रही हैं। वे बैनर और पोस्टर लेकर इस बात की मांग कर रही हैं कि न्याय मिले। छात्र विश्वविद्यालय प्रशासन के ढीले ढाले रवैये से बहुत गुस्से में हैं। उन्हें डायरेक्टर के व्यवहार से भी समस्याएं हैं। वे इस बात के ख़िलाफ़ हैं कि कैम्पस को छावनी में बदला जाए। छात्रों ने कहा कि यदि प्रियंका गांधी ने मामले को उठाया न होता तो बात यहीं पर रह जाती। प्रशासन को मालूम था फिर भी उन्होंने ढुलमुल रवैया अपनाया।IIT-BHU में घटित घटना महिला-अपराधों को लेकर सरकार और प्रशासन के उस रवैये का परिणाम है जिसके सभी आदी हो चुके हैं। जिन लोगों की समझ  धार्मिक राजनीति ने छीन ली है उन्हे मैं यह लिखकर बताना चाहती हूँ कि 50% आबादी और उसके सपनों को किसी मंदिर-मस्जिद की राजनीति के बीच दबाने की कोशिश में भारत वर्षों नहीं दशकों पीछे सिमट जाएगा।

‘विश्व-गुरु’ का सपना देखने का नशा पाल चुके लोगों को नींबू की कुछ बूंदें अपनी आँखों पर टपका लेनी चाहिए ताकि महिलाओं के खिलाफ हर दिन बढ़ता अपराध का आंकड़ा उन्हे कम से कम महसूस तो हो। पिछले एक सप्ताह की घटनाएं ही झकझोर देंगी एक महीने का अपराध तो पढ़ा भी नही जा सकेगा किसी से।


नोएडा, उत्तर प्रदेश में एक सोसाइटी में एक एलएलबी की छात्रा के साथ उसके फ्लैट में घुसकर मारपीट और छेड़छाड़ करने का मामला सामने आया है। पीड़िता ने पुलिस को बताया कि शाम करीब साढ़े आठ बजे साथ में पढ़ने वाला एक छात्र उसके फ्लैट पर आया और जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा। अगली घटना बरेली, उत्तर प्रदेश की है। यहाँ के सीबीगंज में किराए पर रह रहे गोंडा के एक मजदूर ने नाबालिग छात्रा के साथ छेड़छाड़ की। विरोध पर उसने छात्रा के अश्लील फोटो एडिट करके इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दिए। चंडीगढ़ का मामला बेहद चौंकाने वाला है। यहाँ एक निजी स्कूल की छात्राओं की तस्वीरें स्कूल की आधिकारिक वेबसाइट से डाउनलोड की गईं। आरोप है कि उन तस्वीरों को कथित तौर पर 'अश्लील' और 'आपत्तिजनक' बनाकर इंटरनेट पर इस्तेमाल किया गया। 
जींद, हरियाणा में सरकारी स्कूल की 60 स्कूली छात्राओं को प्रिंसिपल द्वारा प्रताड़ित किए जाने का मामला आया। महिला आयोग को बताया गया कि प्रिंसिपल के पास 5 मोबाइल फोन थे, जिसमें से 2 फोन का इस्तेमाल प्रिंसिपल आधिकारिक तौर पर करता था जबकि बाकी 3 मोबाइल फोन से वह लड़कियों को अश्लील मैसेज भेजता था और उन्हें ब्लैकमेल करता था।हिसार, हरियाणा में एक निजी स्कूल के डीन ने बच्चों को एक टूर के दौरान नशीली दवाई खिलाई। जब वे बेसुध हुए तो उनके साथ अश्लील हरकत की।गोरखपुर, यूपी में एक महिला के घर जाकर कुछ लोगों ने छेड़छाड़ की और जब बीच में भतीजी ने रोकने की कोशिश की तो अपराधियों ने उसे भी नहीं छोड़ा। गाज़ियाबाद, यूपी में माता का जागरण देखने आई दो बहनों के साथ गुंडों/अपराधियों ने छेड़छाड़ की और विरोध करने पर उनके भाई को भी पीटा। बरेली, यूपी की घटना दिल दहलाने वाली है यहाँ जब एक कक्षा 10 की छात्रा ने छेड़छाड़ का विरोध किया तो उसे ट्रेन के आगे फेंक दिया। बच्ची का एक हाथ-दोनों पैर कट गए। इस मामले में सीएम योगी ने संज्ञान अवश्य लिया लेकिन बच्ची का जीवन बर्बाद हो चुका था।
इन पिछले कुछ दिनों की घटनाओं में ही यह तथ्य उभर कर सामने आ रहे हैं कि पुरुष छेड़छाड़ को अपना अधिकार मान बैठा है और सरकार व प्रशासन के लचर और लेट-लतीफी के रवैये से जहां महिलायें शिकायत के प्रति हतोत्साहित होती हैं वहीं अपराधी लगातार उत्साहित हो रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, जहां 2011 में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की संख्या 228,650 थी वो 2021 में 87% की बढ़ोत्तरी के साथ 428,278 जा पहुंची है। महिलाओं के खिलाफ अपराध में 87% की वृद्धि के बाद भी क्या पीएम मोदी को इस पर कुछ नहीं कहना/करना चाहिए? खासकर तब जबकि उनसे इस संबंध में कुछ कहने/करने का आग्रह किया जा रहा है। लेकिन शायद इस मुद्दे पर बोलना उन्हे ‘सूट’ न करता हो! लेकिन क्यों?

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लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2023 में भारत की स्थिति 146 देशों के मुकाबले 127वीं है। क्या इस पर भी पीएम को कुछ नहीं कहना चाहिए? या उन्हे यह बता दिया गया है कि भुखमरी सूचकांक की तरह लैंगिक अंतराल रिपोर्ट में भी गलत आँकड़े रखे गए हैं या यह सब भारत के खिलाफ एक ‘साजिश’ है? अगर यह सब मात्र एक साजिश है तो क्या कोई बता सकता है कि बृजभूषण शरण सिंह का मामला क्या है? महिला पहलवानों का धरना-प्रदर्शन और दुख क्या है? IIT-BHU में जो हुआ वह क्या है? जिस कक्षा 10 की छात्रा को ट्रेन के सामने फेंक दिया गया वह क्या था? आखिर कौन जवाब देगा इन प्रश्नों का? ये सब तथ्य हैं कोई साजिश नहीं है, अगर देश और सभी प्रदेशों के शीर्ष नेतृत्व से एक सुर में आवाजें निकलतीं जिनमें कोई ‘किन्तु’, ‘परंतु’ न होता तो अच्छा होता लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा और महिलायें तमाम योग्यता के बावजूद पुरुषों के लिए सिर्फ एक देह के रूप में सिमट जाने को बाध्य हैं, ये शर्मनाक है!
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वंदिता मिश्रा
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