1945 में बने संयुक्त राष्ट्र चार्टर में यह घोषणा की गई कि "सभी के लिए, बिना किसी भेदभाव के—चाहे वह नस्ल, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर हो—मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के प्रति सार्वभौमिक सम्मान और इसका अनुपालन" सुनिश्चित किया जाएगा। इसी चार्टर के तीसरे अध्याय के अनुच्छेद-8 में अलग से लैंगिक समानता पर बात की गई। इसमें लिखा गया कि “संयुक्त राष्ट्र अपने मुख्य और सहायक अंगों में पुरुषों और महिलाओं को किसी भी भूमिका में और समान परिस्थितियों में भाग लेने की पात्रता पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाएगा।”
लैंगिक समानता पर वादे बड़े-बड़े, पर हकीकत क्यों अब भी डरावनी है?
- विमर्श
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- 6 Jul, 2025

सरकारों और संस्थाओं द्वारा लैंगिक समानता के बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन महिलाओं की स्थिति आज भी चिंताजनक है। आखिर क्यों वादे और हकीकत के बीच इतनी खाई है?
वैश्विक स्तर पर इस घोषणा के बहुत मायने थे क्योंकि अब भारत और दुनिया के तमाम देशों ने यह बात स्वीकार कर ली थी कि आने वाले समय में महिला और पुरुषों के बीच किए जाने वाले भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं होगी। लेकिन यह घोषणा सालों तक कोई संस्थागत रूप नही ले सकी। न जाने कितने महिला आंदोलन चलाए गए, तीस वर्षों तक लगातार कोशिशें की गईं उसके बाद 1975 में वह दिन आया जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1975 को ना सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया बल्कि 1976 से 1985 के दशक को महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया गया। 8 मार्च 1975 के दिन ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की भी घोषणा कर दी गई। 1976 में महिला विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र का फण्ड (UNIFEM) भी बनाया गया जो आगे चलकर 2010 में एक नया रूप लेने वाला था। 1975 में ही मेक्सिको सिटी में पहली महिला विश्व कांफ्रेंस का आयोजन भी किया गया।