जी20 देशों के सामने भारत की कैसी तस्वीर गई? क्या मोदी सरकार ने जिस तरह की पेश करने की कोशिश की उस तरह की या फिर हक़ीकत वाली?
भारत को G20 की अध्यक्षता मिलने के बाद पीएम मोदी ने एक ब्लॉग लिखा जिसमें उन्होंने लिखा कि "आइए हम भारत की G20 की अध्यक्षता को संरक्षण ,सद्भाव और उम्मीद की अध्यक्षता बनाने के लिए मिलकर काम करें"। साथ ही “वसुधैव कुटुंबकम” और अंग्रेजी में “वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर” को अपना लक्ष्य घोषित किया, लेकिन जहां दुनिया को दिखाने और बताने के लिए उनके पास ‘वैश्विक’ लक्ष्य हैं वहीं अपने देश में उनकी सोच विस्तार की जगह ‘संकुचन’ और रूढ़ियों को अपना आदर्श मानती हुई प्रतीत होती है। तमिलनाडु के एक मंत्री उदयनिधि स्टालिन के द्वारा सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणी के बाद पीएम मोदी ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा ‘सनातन धर्म को धमकी देने वाला बयान स्वीकार्य नहीं है’, उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा कि ‘सनातन पर बयान का सख्ती से विरोध करें’। स्टालिन के बयान के बाद कुछ ही समय पर पीएम मोदी की प्रतिक्रिया आ गई, उनके मंत्री और प्रवक्ता भी बोल उठे, एक पार्टी के तौर पर यह सब अच्छा लग सकता है लेकिन मेरा प्रश्न यह है कि जिस सनातन धर्म के बारे में स्टालिन ने विवादित टिप्पणी की थी उसमें महिलायें शामिल हैं या नहीं? जब महिलाओं का सड़कों पर अपमान होता है, सरकार में बैठे लोग बलात्कारियों और शोषणकर्ताओं को बचाते हैं तब सनातन धर्म को नुकसान होता है या नहीं? महिला पहलवानों के यौन शोषण पर पीएम मोदी खामोश रहे, सनातन धर्म भी खामोश रहा और सनातन धर्म के पहरेदार भी, ऐसा क्यों? मणिपुर में, सीएम बिरेन सिंह के अनुसार, सैकड़ों शर्मनाक घटनाएं महिलाओं के साथ हुईं, पीएम मोदी बोले क्या?
सनातन धर्म पर स्टालिन की टिप्पणी के बाद जिस तरह पीएम मोदी हरकत में आए उससे लगता है कि चोट सनातन धर्म और पीएम मोदी दोनों को लगी है! अगर ऐसा है तो पूछा जाना चाहिए कि स्वयं को सनातनी कहने वाला नरसिंहानन्द जब महिलाओं पर शर्मनाक टिप्पणी करता है तब दोनों को चोट लगती है या नहीं? जब महिलाओं को मंदिरों के गर्भगृहों में जाने से रोक दिया जाता है, दलितों को मंदिरों में प्रवेश पर अब भी रोक लगाई जाती है तब दोनों को तकलीफ होती है या नहीं? जब शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई जाती है तब भी सनातन धर्म और पीएम मोदी कुछ बोलते हैं क्या? ...शायद नहीं! कभी नहीं! इसीलिए आधुनिक भारत की नींव रखने वाले आंबेडकर और नेहरू जैसे नेताओं और सम्पूर्ण संविधान सभा ने सर्वसम्मति से यह फ़ैसला किया कि वर्तमान भारत की नींव सनातन या किसी अन्य धर्म पर आधारित नहीं होगी, यदि कहीं इसका आधार निर्मित किया जाएगा तो वह है भारत का संविधान, और कहीं नहीं! पीएम मोदी को यह समझ जाना चाहिए था कि वह संविधान की शपथ लेकर, संविधान के आधार पर प्रधानमंत्री बने हैं न कि सनातन धर्म की शपथ लेकर। जब तक वह प्रधानमंत्री पद पर हैं उन्हें शक्ति संविधान ही देगा और संविधान ही उनपर तब रोक लगाएगा जब वो अपनी शक्तियों का प्रयोग संविधान के अनुसार नहीं करेंगे। इसलिए पीएम मोदी को ग़ुस्सा, तकलीफ और क्षोभ तब होना चाहिए जब कोई उनके शक्ति स्रोत और राष्ट्र के आधार संविधान को नुक़सान पहुंचाने के बारे में सोचता है।
धर्म प्रधानमंत्री का विषय नहीं है, न ही राष्ट्र का विषय है। राष्ट्र का एक ही धर्म है संविधान और प्रधानमंत्री जी को अपने ‘राजधर्म’ का पालन करना चाहिए।
पीएम मोदी ने यह भी कहा कि आज भारत वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए भी देखा जाता है। उन्होंने कहा कि “लंबे समय तक, भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के देश के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब, भारत को एक अरब से अधिक महत्वाकांक्षी मस्तिष्क, दो अरब से अधिक कुशल हाथों और करोड़ों युवाओं के देश के रूप में देखा जा रहा है।” मुझे नहीं पता कि पीएम मोदी ऐसे समय में ये सब क्यों बोल रहे हैं जब पूरा विश्व G20 को लेकर भारत पर नजर रखे हुए है? क्या वो सच में नहीं जानते कि भारत ने उनके सत्ता संभालने से बहुत पहले यह सब हासिल कर लिया था? क्या उन्हें ‘गुट निरपेक्ष आंदोलन’(NAM) के बारे में नहीं पता? क्या वो नहीं जानते कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के विश्व के लिए यह एक अभिनव प्रयोग था जिसकी पृष्ठभूमि 1955 के बांडुंग सम्मेलन में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व अन्य के नेतृत्व में रची गई थी? क्या उन्हें नहीं मालूम कि 120 देशों की सदस्यता वाला NAM संयुक्त राष्ट्र के बाद सबसे बड़ा अंतरसरकारी संगठन है? क्या पीएम मोदी को नहीं पता कि ब्रेटनवुड्स के बाद की व्यवस्था में स्थापित विश्व बैंक और आईएमएफ़ के निर्माण में भारत शुरुआत से ही शामिल था? क्या उन्हें यह भी नहीं पता कि पहले GATT (आजादी के दो महीने बाद) और बाद में 1995 में बने WTO में भारत शुरुआत से नेतृत्वकर्ताओं में शामिल था? विश्व शांति के लिए किए गए प्रयासों- जैव हथियार अभिसमय, रासायनिक हथियार अभिसमय आदि महत्वपूर्ण मंचों पर भारत मुखरता से विश्व शांति की संरचना तैयार करने में मदद करता रहा है। पीएम मोदी को और सोचना चाहिए जब उन्हें यह कहना था कि एक समय भारत को भूखे नंगों का देश कहा जाता था। कहने को तो कोई भी कुछ भी कह सकता है, लेकिन क्या यह सब भारत के प्रधानमंत्री को अपने मुँह से कहना चाहिए था?
अनाज की किल्लत झेल रहे भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जब USA मदद के लिए गईं (1966) तो अलबामा के एक अखबार ने उन्हें संबोधित करते हुए ‘भिखारी’ तक कह डाला था। उन्होंने इसे कैसे लिया इसका साक्षी आज पूरा विश्व है जहां भारत का अनाज अनगिनत देशों में निर्यात होता है। उन्होंने सिर्फ भारत के लिए ‘गरीबी हटाओ’ जैसा नारा नहीं दिया बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जाकर गरीबी के खिलाफ आवाज बुलंद की। आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का नारा दे रहे हैं, आज दुनिया के तमाम देशों को जलवायु परिवर्तन एक हकीकत नजर आ रही है, आज दुनिया इस रास्ते पर खड़ी है कि अगर एक्शन नहीं लिया गया तो न आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ बचेगा और न ही आने वाली पीढ़ी कभी अस्तित्व में आ पाएगी। लेकिन भारत ने इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में आज से 50 साल पहले ही जलवायु परिवर्तन को न सिर्फ भांप लिया था बल्कि उसे नेतृत्व भी प्रदान किया। 1972 में जलवायु परिवर्तन के लिए दुनिया के पहले आधिकारिक प्रयास का आयोजन स्टॉकहोम में किया गया। इसे स्टॉकहोम कन्वेन्शन (UNCHE) के नाम से जाना जाता है। इसी कन्वेन्शन से जिसकी थीम ‘एक ही पृथ्वी’ थी, UNEP का निर्माण हुआ जिससे अंततः UNFCCC, CBD जैसे संगठनों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसमें भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने ओजस्वी भाषण दिया था। इसकी याद करते हुए, यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक और स्टॉकहोम+50 के महासचिव इंगर एंडरसन ने 18 मई 2022 को डाउन टू अर्थ पत्रिका में लिखा “उस समय भारत की प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी, उपस्थित 113 देशों में से एकमात्र विदेशी सरकार प्रमुख थीं। सम्मेलन में उनका भाषण इस मायने में अभूतपूर्व था कि इसने पर्यावरण संरक्षण को गरीबी उन्मूलन से जोड़ा - जो सतत विकास लक्ष्यों या एसडीजी के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है”। आज जिस ओर पूरा विश्व भाग रहा है उस समस्या को समझने और उसे गरीबी से जोड़ने का काम इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत ने किया था। क्या पीएम मोदी को यह पता था?
आने वाले 1000 सालों का सपना दिखाने वाले नेतृत्व से सवाल किए जाने चाहिए कि जब संसाधनहीन भारत ने आज़ादी के बाद से इतनी योग्यता हासिल कर ली तब आज जबकि भारत में संसाधनों की कमी नहीं है तब भी वह वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) में 107वें स्थान पर क्यों है, यद्यपि भारत ने इसे नकार दिया है लेकिन नकारने का कोई ठोस कारण नहीं दे सका है।
माना जाता है कि GHI में भारत की इस बुरी स्थिति के पीछे अल्पपोषण और बच्चों में कुपोषण का बढ़ा हुआ स्तर है। मोदी सरकार के अंतर्गत ही किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के नतीजों के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के भारत एक तिहाई बच्चे ठिंगनेपन और कम वजन के शिकार हैं। भारत में अल्पपोषण की जो अवस्था 2009 में थी लगभग वही स्थिति 2020 में भी थी। द हिन्दू की एक रिपोर्ट बता रही है कि उत्तर भारत के मैदान प्रदूषण की दृष्टि से सबसे बुरी स्थिति में हैं, गंगा ग्लैशियर पिघल रहा है, हिमालय के दरकने की खबर भी हर रोज सुनाई पड़ रही है और यह भी कि प्रधानमंत्री का स्वप्न ‘चारधामों के लिए हर मौसम में सड़क’ अब हिमालय और उसके इकोसिस्टम को महंगा पड़ रहा है।