पीएम मोदी स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले पर
15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस के दिन, लाल क़िले से भारत के प्रधानमंत्री का भाषण, और कुछ नहीं बल्कि भारत के वर्तमान नेतृत्व के हालातों के बारे में संकेत देता है। किसी भी देश के प्रधानमंत्री के जैसे तेवर होंगे, जिन पहलुओं पर वो चर्चा करेगा और जिन पहलुओं पर वो चुप रहेगा, इन सबको मिलाकर ही उसकी योग्यता और नेतृत्त्व का आंकलन किया जायेगा, इसी तरह भारत के भी नेतृत्व की स्थिति का आंकलन किया जा सकता है। भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर पीएम नरेंद्र मोदी के 12वें भाषण से न चाहकर भी तमाम आंकलन बाहर आ गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हताशा और थकान उनके पूरे भाषण में झलकती रही। वे सबसे ज्यादा हताश अपनी आर्थिक नीतियों और बेरोजगारी नीतियों को लेकर दिखे। पीएम के भाषण में हताशा का चरमबिंदु तब आया जब ‘प्रधानमंत्री विकसित भारत योजना’ का ज़िक्र आया, एक खास किस्म के थके हुए उल्लास के साथ पीएम मोदी इस योजना के बारे में बताते हुए कहते हैं कि “इस योजना के तहत निजी क्षेत्र में पहले नौकरी पाने वाले नौजवान को, बेटे बेटी को 15000 रुपया सरकार की तरफ से दिए जाएंगे”। मुझे यह सुनकर अच्छा नहीं लगा।
140 करोड़ की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत के प्रधानमंत्री अपने 11 साल के कार्यकाल की नाकामी की घोषणा इस तरह करेंगे मैंने सोचा नहीं था। एक वक्त था जब नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे और उन्होंने यह घोषणा की थी कि हर साल दो करोड़ नौकरियों को सृजित किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने स्किल इंडिया मिशन, मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं लागू भी कीं। लेकिन इनसे क्या परिणाम निकला यह 79वें स्वतंत्रता दिवस पर पता चल गया।
पीएम मोदी की नाकाम नीतियों की वजह से देश का युवा वर्ग असाधारण बेरोजगारी से जूझ रहा है। निजी कंपनियां नए रोजगार नहीं पैदा कर रही हैं क्योंकि देश में ‘बचत’ की कमी और बढ़ती महंगाई की वजह से माँग ही कम हो गयी है, लोगों की जेबों में पैसे नहीं है और इस वजह से कंपनियों के पास नए रोजगार देने का कोई कारण नहीं है। पीएम मोदी की हताशा का आलम देखिए कि जो नौकरियाँ सरकारी नीतियों की वजह से, ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस की वजह से, स्वतः पैदा होनी चाहिए थी उसके लिए पीएम मोदी को निजी कंपनियों को इंसेंटिव देना पड़ रहा है।
पीएम को लगता है कि निजी कंपनियों को ‘इंसेंटिव’ का लालच देकर उनके यहाँ रोजगार पैदा किए जा सकते हैं। यदि यही पीएम की ‘नई सोच’ है तो अब उन्हें अपना आर्थिक सलाहकार बदल देना चाहिए। दूसरी बड़ी बात यह है कि जिस युवा की नौकरी ख़ुद ही लग गई है उसे अब 15 हज़ार देने का क्या औचित्य है? नौकरी लगने के बाद तो वह ख़ुद ही हर माह वेतन पाएगा अब इसमें सरकार को बीच में आने की क्या जरूरत है? यह क्या ड्रामा है? क्या वे यह दिखाना चाहते हैं कि देखो देखो रोजगार मिल रहा है?
या तो पीएम मोदी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं या फिर हर योजना की तरह इस बार भी सिर्फ़ लोगों का ध्यान भटकाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। वो ऐसे दौर में कंपनियों को इंसेंटिव बाँटकर रोजगार पैदा करवाना चाह रहे हैं जब देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी, जिसका मुनाफा दुनिया की शीर्ष कंपनियों की श्रेणी में आता है, उसने सरकार की नाक के नीचे से हाल ही में 12 हज़ार से अधिक लोगों को नौकरी से निकाल बाहर कर दिया है। हजारों की संख्या में निकाले गए ये लोग कोई नौसिखिया नहीं थे ये लोग कंपनी के अनुभवी और सीनियर कर्मचारी थे।
आरएसएस, सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी का गुणगान गाकर काम चलाने के बारे में सोच रहे पीएम मोदी देश को यह कब बताने वाले हैं कि उनके नेतृत्व में अमेरिका के साथ व्यापार संबंध बिगड़ जाने के कारण लाखों भारतीयों का रोजगार छिन चुका है। गुजरात डायमंड वर्कर्स यूनियन के अनुसार, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में डायमंड कटिंग से जुड़े लगभग एक लाख लोगों की नौकरी चली गई है। मतलब लाखों की संख्या में सौराष्ट्रवासी अब रोजमर्रा की समस्या से जूझेंगे।
आईटी उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि आने वाले 2-3 सालों में 4-5 लाख लोगों की नौकरी जा सकती है। इनमें से 70% वो लोगों होंगे जिनको 4-12 सालों का अनुभव है और यह भयावह है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए काफ़ी हद तक जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(AI) और मशीन लर्निंग(ML) का उभार है। सवाल यह है कि भारत इसके लिए तैयार क्यों नहीं है? यहाँ-वहाँ की बातें करके पीएम मोदी भारत की जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
सवाल यह है कि स्किल इंडिया, जिसे बड़े गाजे-बाजे के साथ शुरू किया गया था उसमें कितने लोगों को AI और ML की ट्रेनिंग दी गयी थी? भारत का पड़ोसी देश चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में ग्लोबल लीडर बनकर उभर रहा है और भारत इसके आसपास भी नहीं है, क्यों? आज की तारीख़ में AI सिर्फ़ एक तकनीक नहीं बल्कि एक रणनीतिक औजार भी है। भविष्य के युद्ध इसी पर आधारित होंगे। क्या पीएम मोदी बतायेंगे कि भारत की इस संबंध में क्या तैयारी है?
चीन ने आधिकारिक तौर पर 2017 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर राष्ट्रीय योजना- 2017 AI डेवलपमेंट प्लान- शुरू किया। इसके एक साल बाद ही भारत में नीति आयोग द्वारा भी- AI फॉर ऑल- शुरू किया गया। लेकिन चीन में नेतृत्व जानता था कि AI की महत्ता क्या है इसलिए चीन में लक्ष्य स्पष्ट कर दिया गया- 2030 तक AI में वैश्विक लीडर बनना। इसके लिए 2020, 2025 और 2030 के अलग-अलग टारगेट बनाये गए।
कई बिलियन डॉलर खर्च करके आज चीन AI और ML के क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त यूएसए को चुनौती दे रहा है। दुनियाभर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर मिलने वाले पेटेंट और रिसर्च पेपर सबसे ज़्यादा चीन में छपते हैं(पूरे विश्व का 20%)। चीन के सिंघुआ विश्वविद्यालय को AI की जन्मस्थली माना जाता है। दुनिया भर की बड़ी टेक कंपनियों में काम करने वाले चीफ टेक्निकल ऑफिसर इसी विश्वविद्यालय से निकल रहे हैं।
लेकिन 2018 में AI फॉर ऑल शुरू करने के बावजूद भारत इस दिशा में कोई प्रगति नहीं कर पाया। पेटेंट और रिसर्च पेपर के मामले में भारत बहुत ही नीचे है। कोई भी ऐसा प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय नहीं है जो सिंघुआ विश्वविद्यालय की बराबरी कर सके। यहाँ पर चीन की तरह कभी भी कोई स्पष्ट लक्ष्य तय नहीं किया गया। आज हालात यह है कि भारत AI के मामले में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कमजोर अवस्था में है। भारत ने सही समय पर आर्थिक सुधार किए(1991), सही समय पर आईटी क्रांति में शामिल हुआ लेकिन जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में आगे बढ़ने का समय आया तो पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत बहुत ज़्यादा पिछड़ता गया।
जब दुनिया Deepseek, ChatGPT, Gemini और Grok बना रही थी तब भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के टेक महारथी बिल गेट्स के सामने बैठकर AI की तुलना भारत कि ‘आई’ से करके देश और यहाँ की वैज्ञानिक विरासत को शर्मसार करने में लगे थे। इसी अवैज्ञानिक दृष्टिकोण और बडबोलेपन की वजह से देश में लाखों नौकरियाँ जा चुकी हैं और आने वाले समय में लाखों नौकरियां और भी जायेंगी। इसे लेकर कोई नरेंद्र मोदी को दोष ना दे इसलिए मोदी जी देश के युवाओं को नौकरी लगने पर 15 हज़ार देकर पल्ला झाड़ना चाहते हैं।
11 सालों से देश प्रधानमंत्री रहने के बावजूद पीएम मोदी यह समझ नहीं पाये कि रुपया बाँटने से आर्थिक विकास नहीं होता।
सही क्षेत्रों में, सही समय पर उचित मात्रा में निवेश करके देश के विकास को गति प्रदान की जाती है। भारत AI में इसलिए नहीं पिछड़ा कि यहाँ टेलेंट की कमी है, भारत इसलिए पिछड़ा क्योंकि मोदी सरकार की प्राथमिकता में देश का विकास नहीं बल्कि देश की सत्ता है। जब चीन AI के विकास में सीढ़ियाँ चढ़ रहा था तब मोदी सरकार चाहती थी कि देश भर के लोग राम मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ें, मंदिरों के कॉरिडोर बनने पर गर्व का अनुभव करें और हर दूसरी मस्जिद को मंदिर कहने का दावा अदालत में ठोंके। जब पूरे देश को मिलकर एकता के साथ आगे बढ़ने के बारे में सोचना था तब चुन चुनकर एक खास धर्म के लोगों को बांग्लादेशी कहकर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है।
भारत में विकसित राष्ट्र बनने से पहले हिंदू राष्ट्र बनने की योजना पर काम हो रहा है।
लेकिन धर्म पेट नहीं भर सकता, रोटियाँ नहीं तैयार कर सकता, इलाज नहीं कर सकता। 11 साल बीत गए, अपने ही देश के लोगों को तरह तरह के वादों और भाषणों में उलझाने के बाद आज जब कुछ बचा नहीं तो नौकरी के बदले पैसे देने का काम कर रहे हैं? इतना हताश और निराश प्रधानमंत्री आज तक भारत में नहीं देखा गया। पीएम मोदी को अच्छे से मालूम है कि वो असफल हो चुके हैं, इतिहास उन्हें बख़्शेगा नहीं क्योंकि वर्तमान ने ही उनको आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है।
इससे अधिक दुर्भाग्य किसी प्रधानमंत्री का नहीं हो सकता जब उसके पास लाल क़िले से अपने कार्यकाल का कुछ भी बताने-बोलने के लिए ना हो। पीएम मोदी तो यह भी कहते पाये गए कि मछली उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर आ गया है। जबकि सच यह है कि 70 के दशक में ही नीली क्रांति के शुरू होने के बाद भारत 90 के दशक के मध्य में ही दुनिया में दूसरे स्थान पर आ गया था। ऐसे ही जानवरों में होने वाली फुट एंड माउथ डिज़ीज(FMD) के बारे में वो ये कहते पाये गए कि इसके लिए 125 करोड़ डोज़ वैक्सीन लगाई गई। अब पीएम मोदी को यह कैसे बताया जाय कि FMD का वैक्सीन प्रोग्राम भी 70 के दशक में ही शुरू हुआ था। इसके बाद 1995 में नेशनल एफएमडी कंट्रोल प्रोग्राम बनाया गया। 2010 तक FMD पूरे देश में लागू किया जा चुका था।
मोदी जी की सबसे बड़ी समस्या है कि अब देशवासियों को बताने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। लोगों ने उनपर भरोसा किया, प्रधानमंत्री बनाया और बने रहने दिया गया। लेकिन उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में अब तक जितने वादे किए उनमें से एक भी पूरा नहीं किया। न ही सबके पास नल से जल पहुँचा, ना ही सबको आवास मिला, ना ही हर साल दो करोड़ नौकरियाँ, न ही डिमॉनेटाइजेशन के बाद आतंकवाद ख़त्म हुआ, न ही चीन को लाल आँखें दिखाई गईं, न व्यापार बढ़ा, न ही समृद्धि आई और न असमानता कम हुई। गरीब बढ़ते गए, पीडीएस पर आश्रित लोगों की संख्या बढ़ती गई और जो सबसे ज़्यादा बढ़ा है वो है उनके साथी 2-4 उद्योगपतियों का धन।
अब जब आम भारतीय पीएम से सवाल पूछता है कि उसे रोजगार कब मिलेगा तो उसे मिलती है अंतहीन खामोशी।
उनकी अंतहीन खामोशी टूटे भी कैसे?
जब भारत की औसत बेरोज़गारी दर लगभग 7–8% पर है (CMIE, 2025); 15–29 वर्ष आयु वर्ग में बेरोज़गारी 17–18% पहुँच चुकी है; देश के करीब 20% ग्रेजुएट्स बेरोज़गार हैं। IT, स्टार्टअप, एडटेक और ई-कॉमर्स में बड़े पैमाने पर छंटनियाँ चल रही हैं, एक आंकड़े के मुताबिक सिर्फ 2025 में ही लगभग 25,000 नौकरियां जा चुकी हैं; लगभग 80–85% मज़दूर असंगठित नौकरियों में हैं, जहाँ कोई सुरक्षा नहीं है और केवल 5% भारतीय मज़दूरों को ही औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण मिला है।
देश के हालात बहुत ख़राब हैं और पीएम मोदी निरुत्तर! पैसे बाँटकर नौकरियाँ बनाने/बचाने का सिलसिला कब तक चलता है देखना होगा। साथ ही देश के लोगों को अब नए और दूरदर्शी नेता के बारे में भी सोचना होगा जिसके ज़हन में देश हो, देश का विकास हो, देश के लोग हों, संविधान और कानून से चलने वाला समाज और संस्थाएं हों और जिसका धर्म उसके घर के बाहर कदम न रखता हो।