किसी के दबाव में बोलना और किसी के दबाव पर चुप हो जाने की आदत छोड़े हुए पूरे भारत को 75 साल बीत चुके हैं। 75 साल पहले जब संविधान लागू किया गया तो ग़ुलामी के हर हालात को एक झटके में त्याग दिया गया था। 1950 में संवैधानिक लोकतंत्र को स्वीकार किया गया और नयी शासन प्रणाली की शुरुआत जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में हुई, जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के उत्पीड़न को सहा था और अपने जीवन का लगभग दस साल जेलों और यातनाओं को बर्दाश्त कर बिताया था। वर्तमान सत्ताधारियों को भले ही इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि भारत तमाम लोकतांत्रिक सूचकांकों और रिपोर्ट्स में कहाँ स्थित है, पर इससे फ़र्क़ पड़ना चाहिए कि भारत के नागरिकों की लोकतान्त्रिक चेतना का स्तर क्या है और उसका मूल स्वभाव क्या है? भारत और इसके नागरिकों ने 75 सालों में कभी भी अपनी लोकतांत्रिक चेतना को इतने निचले स्तर पर नहीं पहुंचाया जहाँ से देश का उठ खड़ा होना असंभव हो जाता। तमाम वैश्विक संविधानविदों के भय और आशंकाओं को झुठलाते हुए भारत आज भी लोकतंत्र बना हुआ है, और यहाँ का संविधान आज भी भारत के लोगों के लिए तैनात है।
वांगचुक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा कैसे, लोगों से गूंगा बनने की उम्मीद कर रही मोदी सरकार?
- विमर्श
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- 28 Sep, 2025

पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के खिलाफ मोदी सरकार की कार्रवाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह असहमति और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है?
भारत के लोगों के लचीलेपन, उनकी धार्मिक आस्था और रोजमर्रा की जिंदगी में लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर उनमें आग्रह की कमी को उनकी कमजोरी नहीं समझना चाहिए। तमाम परेशानियों के बावजूद औपनिवेशिक ग़ुलामी से उबरने के बाद से लगातार भारतीयों ने भारत/राज्यों की सरकारों को लेकर सम्मान और भरोसा जताया है, उनमें हर रोज़ न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री आदि पर सवाल उठाने की आदत नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें सवाल उठाना नहीं आता और समय रहते अपनी लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारियाँ निभाना नहीं आता।