सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ, सलाहकारी अधिकारिता के तहत सुनवाई कर रही है (अनुच्छेद -143)। इस अनुच्छेद के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह महसूस होता है कि विधि के किसी महत्वपूर्ण प्रश्न पर, जिसका सार्वजनिक महत्व बहुत अधिक है और सुप्रीम कोर्ट की राय जानना जरूरी है तो वो इस अनुच्छेद का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट से राय माँग सकते हैं। संविधान बनने के बाद यह 16वाँ मौक़ा है जब राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद-143 के तहत कोई सलाह माँगी गई है।
प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस: सुप्रीम कोर्ट संविधान के शब्दों को बचाएगा या उसकी आत्मा को?
- विमर्श
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- 24 Aug, 2025

प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस पर बहस तेज़ है। क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान की सिर्फ़ भाषा को सुरक्षित रखेगा या उसकी आत्मा और मूल भावना को भी? पढ़िए, वंदिता मिश्रा के साप्ताहिक कॉलम विमर्श में।
राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से विधि के 14 सवालों पर उसकी राय माँगी गई है। यह सलाह क्यों माँगी गई है इसके पीछे तमाम विधायी और कार्यपालिका संबंधी घटनाएँ हैं जिन्हें समझना बहुत ज़रूरी है। तमिलनाडु विधानसभा ने 13 जनवरी 2020 से 28 अप्रैल 2023 के बीच 12 ऐसे विधेयकों को पारित किया जिनका उद्देश्य राज्य विश्वविद्यालयों में संस्थागत और नियुक्ति संबंधी सुधार करना था। लेकिन तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने बीते तीन सालों के समय में इन विधेयकों पर न ही अपनी सहमति दी और न ही इन्हें राज्य विधानसभा को वापस लौटाया। राज्यपाल के रवैये से परेशान होकर तमिलनाडु सरकार ने 18 नवम्बर 2023 को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इनमें से 10 विधेयकों को पारित कर दिया और इसी दिन इन सभी विधेयकों को पुनः राज्यपाल रवि के पास पहुँचा दिया। इसके बाद भी राज्यपाल द्वारा इन विधेयकों को उनकी सहमति प्रदान नहीं की गई। तमिलनाडु सरकार ने मजबूर होकर सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में एक याचिका दायर कर दी। इस याचिका का उद्देश्य राज्यपाल को अनुच्छेद-200 के तहत मिली शक्तियों के दुरुपयोग को चुनौती देना था। राज्य का कहना था कि राज्यपाल अनंत काल तक विधेयकों पर अपनी सहमति को रोककर नहीं रख सकते।