loader

ख़ुद कॉंग्रेस कर रही थी भाजपा के लिए हिंदुत्व का प्रचार!

कॉंग्रेस की विचारधारात्मक अस्पष्टता से उसके मतदाताओं में भी भ्रम बढ़ता है। भले ही राहुल गाँधी कहते रहें कि कॉंग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से विचारधारात्मक संघर्ष कर रही है, ज़मीन पर उनकी पार्टी का व्यवहार इस बात में विश्वास नहीं पैदा करता। 
अपूर्वानंद

चार राज्यों के चुनाव नतीजों से एक बार यह बात फिर साफ़ हो गई है कि हिंदी भाषी इलाक़ों में हिंदुत्व का आधार न सिर्फ़ बना हुआ है, बल्कि पहले से अधिक मज़बूत हुआ है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की निर्णायक जीत को हिंदुत्व की राजनीति की जीत कहना ग़लत न होगा। इन राज्यों में भाजपा ने न सिर्फ़ नरेंद्र मोदी को सामने रखकर चुनाव लड़ा बल्कि अपने कट्टर हिंदुत्ववाद के लिए जनमत माँगा। मोदी से लेकर मुख्य भाजपा नेताओं के भाषणों को सरसरी तौर पर देखने से ही ज़ाहिर हो जाता है कि वे मात्र ‘जनकल्याणकारी’ योजनाओं के सहारे नहीं, मुसलमान विरोधी राजनीति के लिए वोट माँग रहे थे। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भाजपा के मुख्य प्रचारक के तौर पर खुलेआम मुसलमानों के प्रति घृणा फैलानेवाले भाषण दिए और यही बाक़ी नेताओं ने भी किया। ख़ुद नरेंद्र मोदी ने ख़ुद को सनातन धर्म का रक्षक घोषित करते हुए मतदाताओं से ‘सनातन धर्म की विरोधी’ कॉंग्रेस पार्टी को सबक़ सिखलाने का आह्वान किया। और इसमें मोदी को सफलता मिली। नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में खुला सांप्रदायिक प्रचार किया। इसपर मीडिया ने पर्दा डाला लेकिन इसका असर तो हुआ। कन्हैयालाल की हत्या का इस्तेमाल नरेंद्र मोदी ने यह साबित करने में किया कि कॉंग्रेस मुसलमान परस्त पार्टी है। यह घृणित प्रचार था लेकिन मोदी को दुष्प्रचार करने की पूरी छूट मीडिया ने दे रखी है।  

ताज़ा ख़बरें

इसे भी नोट करना ग़लत न होगा कि भाजपा का प्रचार मीडिया भी कर रहा था। मीडिया का कॉंग्रेस विरोध मुखर था और इसका लाभ भाजपा को मिलना ही था। 

ऐसा नहीं है कि यह घृणा चुनाव प्रचार के दौरान ही फैलाई गई। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा के द्वारा चुनाव के पहले ही एक लंबे अभियान के ज़रिए हिंदुत्व का प्रचार किया जाता रहा है। इसे नोट किया गया था कि पिछले 4-5 वर्षों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी उदार छवि को त्याग कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से प्रतियोगिता शुरू कर दी थी। राजस्थान में सांप्रदायिक प्रचार कभी मद्धिम नहीं पड़ा और राज्य सरकार को हमेशा इस दुविधा का सामना करना पड़ा कि वह हिंदुओं को संतुष्ट करे या क़ानून की रक्षा करे। 2 साल पहले रामनवमी पर आयोजित हिंसा के बाद इस लेखक से बातचीत में राजस्थान के एक बड़े पुलिस अधिकारी ने स्वीकार किया कि पुलिस बल में संप्रदायवादी विचार गहरा हुआ है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाक़ों में ईसाइयों पर होनेवाले हमलों के साथ दूसरे क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा और प्रचार जारी रहा।

बड़ी संख्या में ‘साधुओं’ और ‘संतों’ ने भाजपा के लिए प्रचार का काम किया। यह चुनाव प्रचार शुरू होने के काफ़ी पहले से किया जा रहा था। इसका असर मात्र तथाकथित उच्च जातियों पर ही पड़ा होगा, यह कोई भोला ही सोच सकता है। 
ख़ुद कॉंग्रेस पार्टी के नेता इस हिंदुत्ववादी विचारधारा की जड़ में खाद-पानी डाल रहे थे। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री आदिवासी बहुल राज्य में राम वन गमन पथ, कौशल्या माता मंदिर बनवाने के साथ ज़िले, शहर, गाँव में रामायण पाठ के आयोजन कर रहे थे।

मध्य प्रदेश के नेता अयोध्या के राम मंदिर का श्रेय लेने की होड़ में थे और टुच्चे बाबाओं के चरणों में बैठे फोटो खिंचवा रहे थे। इस भ्रम से कॉंग्रेसी नेता जाने कब मुक्त होंगे कि वे हिंदुत्व की प्रतियोगिता में भाजपा को पछाड़ सकते हैं। वे इस होड़ में हमेशा दूसरे नंबर पर रहेंगे। लेकिन उनके इस बर्ताव से हिंदुत्व की साख ज़रूर बढ़ेगी जिसका फ़ायदा भाजपा को ही मिलेगा। भाजपा के लिए हिंदुत्व का प्रचार ख़ुद कॉंग्रेस पार्टी कर रही थी।

कॉंग्रेस की इस विचारधारात्मक अस्पष्टता से उसके मतदाताओं में भी भ्रम बढ़ता है। भले ही राहुल गाँधी कहते रहें कि कॉंग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से विचारधारात्मक संघर्ष कर रही है, ज़मीन पर उनकी पार्टी का व्यवहार इस बात में विश्वास नहीं पैदा करता। 

वक़्त-बेवक़्त से ख़ास

चुनाव प्रचार के ठीक पहले बिहार में जातिगत जनगणना की घोषणा के बाद कहा जाने लगा था कि अब हिंदुत्व की काट मिल गई है। जातियों का, ख़ासकर अन्य पिछड़ी जातियों और दलितों को हिंदुत्व के ख़िलाफ़ मण्डल राजनीति के दूसरे चरण में गोलबंद किया जा सकता है। लेकिन यह सामाजिक मनोविज्ञान की सतही समझ ही है। यह देखना कठिन नहीं है कि इन सारे समुदायों में हिंदुत्व का आकर्षण पहले से बढ़ा है और वे अब हिंदुत्व की अलंबरदार बनना चाहती हैं। उन्हें विश्वास दिलाया गया है कि हिंदुत्व मात्र ब्राह्मणीय जातियों का नहीं है। भाजपा के नेताओं की जातीय पृष्ठभूमि से यह बात स्पष्ट हो जाती है। जातिगत जनगणना को लेकर सारी ‘धर्मनिरपेक्ष’ पार्टियों का उत्साह वैसा ही है जैसे परीक्षा पास करने के लिए परीक्षार्थी को कोई सरल कुंजी मिल गई हो। इन जातियों के लोगों की आत्मछवि बदली है और भावनात्मक महत्त्वाकांक्षा का रूप भी बदला है। उन्हें हिंदुत्व में इत्मीनान का अनुभव होता है और एक नई ताक़त का अहसास भी। यह सारे ‘धार्मिक’ आयोजनों में उनकी उत्साहपूर्ण भागीदारी से ज़ाहिर है जिनका रूप आर एस एस ने पूरी तरह बदल दिया है।

जबतक कॉंग्रेस और दूसरी पार्टियों के नेता यह नहीं समझेंगे कि जनता विचार भी चाहती है और उसमें वह दुविधा या उलझन नहीं स्वीकार करती और विचार ही राजनीति का आधार हो सकता है, भाजपा से संघर्ष में वे पीछे ही रहेंगे। वक़्ती जोड़तोड़ और ‘लोककल्याणकारी’ योजनाओं की पतवार से राजनीति की इस नाव को नहीं खेया जा सकता। जनता को मात्र लाभार्थी में बदल देना एक तरह से उसका अपमान है। जो यह वकालत करते रहे हैं कि कॉंग्रेस को सिर्फ़ आर्थिक प्रश्नों पर ज़ोर देना चाहिए और भावनात्मक मुद्दों को नहीं छूना चाहिए वे जनता को मात्र आर्थिक इकाई मानते हैं। यह पुरानी फूहड़ मार्क्सवादी समझ है जिसके शिकार मार्क्सवाद के आलोचक हैं।

congress hindutva plank against bjp in assembly polls - Satya Hindi

हम उन स्थानीय कारणों की बात नहीं कर रहे जिनकी भूमिका कॉंग्रेस की पराजय में रही है। वे कम महत्त्वपूर्ण नहीं लेकिन वे ही एकमात्र कारण नहीं हैं। नतीजों के बाद राहुल गाँधी ने यह ज़रूर कहा है कि विचारधारात्मक संघर्ष जारी रहेगा लेकिन क्या कॉंग्रेस पार्टी इसका पूरा मतलब समझती है और उसमें यक़ीन करती है?

अगर कॉंग्रेस और बाक़ी पार्टियाँ इस विचार की ज़रूरत की गंभीरता को समझें तो जो 40 से 50% जनाधार भाजपा के ख़िलाफ़ है उसे वे और विस्तृत कर सकती हैं। संघर्ष अभी भी किया जा सकता है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अपूर्वानंद
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें