इजराइल अपने मकसद को लेकर इस हद तक अड़ा हुआ है कि वो बदहवासी में अपने ही बंधकों की हत्या कर रहा है। इससे पता चलता है कि इजराइल फौज को सामने आए हर शख्स को मार देने की ट्रेनिंग मिली हुई है। लेकिन यह खतरनाक शुरुआत है। इसीलिए इजराइल के लोग सड़कों पर आकर प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन तमाम देश इजराइल की बदमाशी पर खामोश हैं। पढ़िए जाने-माने चिंतक और स्तंभकार अपूर्वानंद के ताजा अल्फाज़ः
इज़राइल में इस वक्त हज़ारों लोग फिर से सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। ये प्रदर्शन हो रहे है क्योंकि ग़ज़ा में इज़राइली फ़ौज ने दो रोज़ पहले 3 इज़राइली लोगों को ही मार डाला है। ये वे लोग थे जिन्हें 7 अक्टूबर को हमास बंधक बनाकर ग़ज़ा ले गया था। हमास ने इज़राइल के इन लोगों को बंधक इसलिए बनाया था कि इनकी वापसी के बदले वह इज़राइल की जेलों में बरसों से बंद फ़िलस्तीनियों को आज़ाद करवा सके। लेकिन अपने लोगों को वापस लेने के लिए ‘हमास’ से बातचीत शुरू करने की जगह इज़राइल ने कहा कि वह ‘हमास’ से उसकी इस हिमाक़त का बदला लेगा। उसने 8 अक्टूबर से ग़ज़ा पर बमबारीऔर ज़मीनी हमला शुरू कर दिया।
यह कोई युद्ध नहीं था हालाँकि इज़राइल का कहना है कि वह ‘हमास’ को समूल नष्ट करने के लिए यह हमला कर रहा है। लेकिन वह ‘हमास’ को नहीं ग़ज़ा के लोगों को, बच्चों, मरीज़ों, बूढ़ों को क़त्ल कर रहा था। जब लोगों ने कहा कि ग़ज़ा में इज़राइल जनसंहार कर रहा है, अमेरिका और इंग्लैंड की सरकारों ने कहा कि बेचारा इज़राइल क्या कर सकता है, वह कैसे ख़ुद को फ़िलिस्तीनियों की हत्या करने से बचा सकता है जब ‘हमास’ और साधारण फ़िलिस्तीनियों में अंतर करना असंभव है।
ख़ुद इज़राइल ने कहा कि वह पूरे गजा को तबाह करेगा क्योंकि वहाँ कोई भी निर्दोष नहीं है। इज़राइल के प्रधानमंत्री और बाक़ी मंत्रियों ने साफ़ अल्फ़ाज़ में इरादा ज़ाहिर किया कि वे ग़ज़ा को नेस्तनाबूद करना चाहते हैं और उसे इंसानों के रहने लायक़ नहीं रहने देना चाहते।उन्होंने कहा कि सारे फ़िलिस्तीनी इंसानी शक्ल में जानवर हैं। वे अंधेरे की संतान हैं, बर्बर हैं इसलिए उनका ख़ात्मा किया ही जाना चाहिए। यह साफ़ तौर पर फ़िलिस्तीनियों की नस्लकुशी का ऐलान है।
ग़ज़ा में इज़राइल द्वारा किए जा रहे जनसंहार में इज़राइल के वे लोग जो ग़ज़ा में बंधक थे, इज़राइल के हमले के शिकार हो सकते थे। इसलिए उनके परिवार वालों और परिजनों ने इजराइली हमले पर आशंका ज़ाहिर की कि उनके लोग ‘हमास’ के द्वारा नहीं बल्कि इन हमलों में ही मारे जा सकते हैं। लेकिन बदले की भावना अधिक प्रबल थी और इज़राइल ने इसे इस मौक़े के तौर भी इस्तेमाल करना चाहा कि वह ग़ज़ा को फ़िलिस्तीनियों से ख़ाली करके उस पर अपना क़ब्ज़ा और मज़बूत कर ले ।
बीच में 6 रोज़ के लिए इज़राइल को हिंसा रोकने के लिए तैयार किया जा सका। उन 6 दिनों में ‘हमास’ ने इज़राइली बंधकों को छोड़ा और उनके बदले इज़राइल को फिलिस्तीनियों को अपनी जेलों से छोड़ना पड़ा। उसी बीच उसने तक़रीबन 150 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों को नए सिरे से गिरफ़्तार कर लिया।और फिर उसने बमबारी और खूँरेज़ी शुरूकर दी।
बाक़ी बंधकों का क्या होगा? इस चिंता से इज़राइल की सरकार का कोई लेना देना हो, इसका सबूत नहीं। उसके साथ इज़राइल की बड़ी आबादी भी है जो फ़िलिस्तीनियों का सफ़ाया करना चाहती है और इसे एक अच्छा मौक़ा मानती है कि यह जनसंहार आख़िरी वक्त तक चलाया जाए जब तक सारे फ़िलिस्तीनीज़न बचाने को ग़ज़ा छोड़ न दे।
इज़राइल की सरकार का दावा है कि बंधकों की रिहाई के लिए खूँरेजी ज़रूरी है क्योंकि उसी से हमास पर दबाव पड़ता है। लेकिन यह ग़लत साबित हुआ है। इज़राइल अब तक 20000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों का क़त्ल कर चुका है। उसने ग़ज़ा को तक़रीबन मलबे में तब्दील कर दिया है। पश्चिमी तट पर भी उसकी हिंसा बढ़ती जा रही है। फिर भी ‘हमास’ इतना कमजोर नहीं हुआ है कि वह मैदान छोड़ दे। बंधक उसी के पास हैं।
अपनी हिंसा के ज़रिए इज़राइल एक भी बंधक छुड़ा नहीं सका है। अभी कुछ दिन पहले उसके सैनिकों ने एक एंबुलेंस में छिपकर एक बंधक को छुड़ाने की कोशिश की औरअसफल रहा। वह बंधक मारा गया।
और इस बार उसने ख़ुद 3 ऐसे बंधकों को मार डाला। वे किसी तरह भाग निकले थे औरसफ़ेद कपड़ा लहराते हुए अपनी हिफ़ाज़त के लिए गुहार लगा रहे थे। लेकिन इज़राइली सैनिकों ने अंधाधुंध गोलीबारी करके उन्हें मार डाला। उनमें से एक बच गया था। उसे पीछा करके क़त्ल कर दिया गया।
फ़ौज का कहना है कि सैनिकों को लगा कि यह ‘हमास’ का कोई फंदा है और वे घबरा गए। उन्हें ग़लतफ़हमी हो गई कि ये फ़िलिस्तीनी हैं।और इसी भ्रम में उन्होंने अपने लोगों को मार डाला।
तो क्या हर फ़िलिस्तीनी को मार डालना चाहिए? क्या वह फ़िलिस्तीनी भी जो शरण माँग रहा है, मार डाले जाने लायक़ ही है? इससे क्या इज़राइल और उसके हिमायती अमेरिका का यह तर्क ग़लत साबित नहीं हो जाता कि इज़राइल सामान्य लोगों की जान की हिफ़ाज़त करने का आख़िरी दम तक प्रयास करता है? बल्कि जो बात साबित होती है, वह यह कि इज़राइल के सैनिकों की ट्रेनिंग बिना सोचे समझे सिर्फ़ गोली चलाने की है और लोगों का क़त्ल करने की है।
अब बाक़ी बचे बंधकों के परिजनों में घबराहट फैल गई है कि इज़राइली गोली का अगला निशाना कहीं उन्हीं के लोग न बन जाएँ। इस वजह से वे सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि वह फिर से ‘हमास’ से बंधकों की अदला-बदली के लिए बातचीत शुरू करे। इसका असर हुआ है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू को मजबूर होकर वार्ता के लिए पहल लेनी पड़ी है।
अपने ही लोगों का क़त्ल करने की खबर के साथ हमने यह भी पढ़ा कि इज़राइल की फ़ौज ने तंबुओं में पनाह लिए बीमार और घायल फ़िलिस्तीनियों पर बुलडोज़र चलाकर उन्हें मार डाला है। उसके पहले एक स्कूल ने शरण लिए हुए बच्चों और ज़ख़्मियों पर निशाना साधकर उनका क़त्ल कर देने की खबर आ चुकी है।
इसके बाद यही कहा जा सकता है कि हिंसा के नशे में चूर इज़राइल फ़िलिस्तीनियों के लिए तो ख़तरा है ही, वह ख़ुद इज़राइली लोगों के लिए भी ख़तरा है।