भारतीय जनता पार्टी की केरल इकाई के अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने सिस्टर प्रीति मेरी और वंदना फ़्रांसिस को एन आई ए की अदालत से जमानत मिलने के बाद जमानत के लिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और राज्य इकाई के अध्यक्ष का शुक्रिया अदा किया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी धर्म, जाति, विश्वास से परे प्रत्येक मलयाली के अधिकार की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
उन्होंने पूरी दुनिया को सूचित किया और ऐसा करने के लिए सबूत के तौर पर अपना वीडियो  जारी किया  जिसमें वे दुर्ग जेल के बाहर सिस्टर प्रीति और सिस्टर वंदना का स्वागत कर रहे हैं। लेकिन इन दो ननों के साथ एक तीसरा आदमी भी जेल से रिहा हुआ है। वह हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी सुकमन मंडावी। भाजपा नेता ने अपने बयान में उनकी रिहाई का कोई ज़िक्र नहीं किया। वे उसी मामले में केरल की इन दो नन बहनों के साथ गिरफ़्तार किए गए थे।
इन तीनों पर आदिवासी औरतों की अवैध मानव तस्करी और धर्मांतरण के अपराध के लिए मुक़दमा दर्ज किया गया था।इन तीनों को 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन से गिरफ़्तार कर जेल में डाल  दिया गया था। दो -दो अदालतों ने इनकी जमानत की अर्ज़ी ख़ारिज की। उसके बाद एन आई ए की अदालत ने इन तीनों को जमानत पर रिहा किया। केरल भाजपा प्रमुख सिर्फ़ दो ननों की ही बात क्यों कर रहे हैं?
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अदालत के फ़ैसले के लिए चंद्रशेखर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्यमंत्री,आदि का शुक्रिया क्यों अदा कर रहे हैं? क्या इस फ़ैसले में उनकी कोई भूमिका हो सकती है? बाबरी मस्जिद की ज़मीन राम मंदिर के लिए सुपुर्द करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के लिए जिस तरह प्रधानमंत्री और भाजपा ने श्रेय लिया था, क्या उसी तरह इस जमानत के लिए भाजपा श्रेय लेना चाहती है? क्या न्यायालय अब भाजपा की मर्ज़ी से चल रहे हैं? चंद्रशेखर के बयान से तो यही जान पड़ता है।
एक सवाल और है। राहत तो तीन को मिली है। तीनों ईसाई हैं। केरल भाजपा सिर्फ़ दो की रिहाई से क्यों प्रसन्न है और तीसरे का ज़िक्र क्यों नहीं कर रही? क्यों अभी वह सिर्फ़ मलयाली लोगों के अधिकार के लिए प्रतिबद्ध है और छत्तीसगढ़ के एक पुरुष ईसाई आदिवासी के लिए नहीं? इस सवाल का जवाब खोजने के पहले हम जान लें कि ये तीनों जेल में थे क्यों।
25 जुलाई को सुकमन मंडावी के साथ तीन आदिवासी औरतें दुर्ग रेलवे स्टेशन पहुँचीं। उन्हें मालूम हुआ था कि आगरा में एक मिशनरी हस्पताल  में रसोई का काम करने के लिए लोगों की ज़रूरत है।सिस्टर प्रीति और वंदना आगरा में ईसाई संस्थाओं  से संबद्ध हैं। ये तीनों आदिवासी औरतें ओरछा के नारायणपुर से आई थीं। वे तीनों अपने इलाक़े से पहली बार बाहर जा रही थीं। इन दोनों को इस काम के बारे में सुकमन की बहन से मालूम हुआ था। वे  बरसों तक वहाँ काम कर चुकी हैं।इन दोनों को सिस्टर प्रीति और वंदना के साथ आगरा जाना था। 
वृंदा करात ने लिखा है कि प्लेटफार्म पर इनसे प्लेटफार्म टिकट को लेकर पूछताछ के दौरान भीड़ इकट्ठा हो गई। फिर बजरंग दल के लोग पहुँचे और इन्हें प्लेटफार्म पर थाने में ले जाया गया। वहाँ पुलिस की मौजूदगी में बजरंग दल के गुंडों ने इनके साथ मार पीट की। एक औरत इन गुंडों का नेतृत्व कर रही थी। ये सुखमन को धमका रहे थे कि  वह यह क़बूल करे कि वह सिस्टर प्रीति और वंदना द्वारा चलाए जा रहे धर्मांतरण और मानव तस्करी में शामिल था। 
वे आदिवासी औरतें कहती रह गईं कि वे अपनी मर्ज़ी से आई थीं। उनके परिवारवालों ने पुलिस को फ़ोन पार कहा कि वे हलफ़नामा देने को तैयार हैं कि वे पहले से ईसाई हैं और उन्हें कोई प्रलोभन देकर धर्मांतरण का सवाल ही नहीं है। लेकिन जैसे पुलिस ने बजरंग दल के गुंडों को थाने के भीतर इन ईसाइयों को डराने, धमकाने और उनपर हमला करने की इजाज़त दी थी, वैसे ही उनके कहने पर उसने सिस्टर प्रीति, वंदना और सुखमन पर जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी का मुक़दमा दर्ज करके जेल में डाल दिया।
इतना ही नहीं यह मामला एन आई ए को दे दिया गया तो आतंकवादी अपराधों की जाँच करने का काम करती है। क्या ये तीनों इतना ख़तरनाक अपराध कर रहे थे?
छत्तीसगढ़ भाजपा की सरकार बजरंग दल के  गुंडों के साथ थी। मुख्यमंत्री ने इनकी गिरफ़्तारी को जायज़ ठहराया। उन्होंने बयान जारी करके कहा कि नारायणपुर की तीन बेटियों को नर्सिंग की ट्रेनिंग और फिर नौकरी का झांसा दिया गया था। उनके मुताबिक़ नारायणपुर के एक व्यक्ति ने उन्हें दुर्ग स्टेशन पर दो ननों को सौंप दिया, जो इन बेटियों को आगरा ले जा रही थीं। उन्हें बहला-फुसलाकर मानव तस्करी के जरिए धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश की जा रही थी।
मुख्यमंत्री ने किसी जाँच का इंतज़ार नहीं किया। उन्होंने वही दुहराया जो दुर्ग स्टेशन पर बजरंग दल के गुंडे कह रहे थे। उनके मुताबिक़ वे आदिवासी बेटियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी सुरक्षा के लिए ही इन ननों और सुखमन की गिरफ़्तारी की गई।
जो बात छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को याद नहीं रही, वह यह कि केरल में चुनाव होनेवाले हैं।वे भूल गए कि  उनकी पार्टी वहाँ ईसाइयों को अपनी तरफ़ लाने के लिए उनपर डोरे डाल रही है। ईसाई समुदाय के भीतर व्याप्त मुसलमान विरोधी द्वेष को उकसा कर उनकी हितैषी दीखने की कोशिश भाजपा पिछले कई वर्षों से कर रही है। इसमें कुछ ईसाई संगठन उसके साथ हैं। यह ताज्जुब की बात नहीं कि केरल में भाजपा, बजरंग दल या आर एस एस के दूसरे संगठन धर्मांतरण का सवाल नहीं उठाते, गिरिजाघरों पर हमले नहीं करते, ननों या पादरियों पर हिंसा नहीं करते जैसे वे दूसरे सारे राज्यों में करते हैं, मिज़ोरम जैसे राज्यों को छोड़कर। वहाँ भी उन्हें ईसाई वोटों की ज़रूरत है। 
जैसे  भाजपा मिज़ोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश या गोवा जैसे राज्यों में गोमांस खानेवालों पर  हमला नहीं करती। वहाँ गो तस्करी को कोई समस्या नहीं। वहाँ गाय के संरक्षण के लिए भाजपा कोई अभियान नहीं चलाती। वैसे ही उसे केरल में ईसाइयों द्वारा धर्मांतरण की कोई घटना नहीं मिलती। हाँ! वहाँ भाजपा की इकाई मुसलमान विरोधी अभियान उत्साह से चलाती है।
हाँ! भाजपा उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में हिंदुओं के बीच केरल की ईसाई आबादी के ख़िलाफ़ ज़रूर घृणा प्रचार करती है।केरल में ईसाइयों की प्रभावशाली आबादी को दिखलाकर ‘हिंदी’ प्रदेशों के हिंदुओं में भय पैदा किया जाता है कि उनके  राज्यों में भी उनकी आबादी इतनी ही हो सकती है।
एक दूसरी दिक़्क़त यह है कि ज़्यादातर  केरल समेत दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों से ही नन और पादरी ही पूरे भारत में जाते हैं और शिक्षा संस्थाओं, हस्पतालों और दूसरे सामाजिक कार्यों से जुड़ी संस्थाओं में काम करते हैं। फादर स्टान स्वामी तमिल नाडु से झारखंड गए थे और आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करते हुए वहीं के हो गए। उसकी क़ीमत उन्हें  गिरफ़्तारी और जान देकर चुकानी पड़ी।
तो केरल के बाहर भाजपा या आर एस एस के ईसाई विरोधी हिंसक अभियान का शिकार मलयाली होते रहे हैं और होंगे। 2025 में ही राजस्थान, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिल नाडु और छत्तीसगढ़ में ही पादरियों और उनके संस्थाओं पर कई हमले किए गए हैं। वे भी मलयाली थे। लेकिन उस समय केरल भाजपा को मलयालियों के अधिकारों की सुध नहीं आई।अभी उसे मजबूरन सक्रिय होना पड़ा क्योंकि उसके पहले कॉंग्रेस पार्टी और सी पी एम ने ननों की गिरफ़्तारी पर अपना विरोध जतलाना शुरू कर दिया था। इसलिए मलयाली अधिकारों के प्रति भाजपा की चिंता भी धोखा ही है। 
भाजपा तो अपने चरित्र के मुताबिक़ ही काम करती रही हैं। लेकिन हमें यह भी कहना पड़ेगा कि दुर्ग में ननों की गिरफ़्तारी के बाद विपक्षी दलों ने जितने जोर से अपना विरोध जतलाया, वह इसके पहले ईसाइयों पर हुए हमलों के बाद कहीं देखने में नहीं आया। अगर वे पहले के हमलों का विरोध करते होते और वहाँ भी उनके नेता जाकर ईसाइयों के साथ एकजुटता दिखलाते जैसे वे दुर्ग पहुँचे तो आज का उनका विरोध अधिक ईमानदार होता।
इस बात से इतर हमें इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि इस मामले में कई अधिकारों का हनन हुआ है।आदिवासी सुखमन मंडावी की प्रताड़ना केरल की ननों से कम कैसे है? नारायणपुर से आई तीन आदिवासी औरतों के अपनी मर्ज़ी से कहीं जाने आने और अपनी आजीविका कमाने के अधिकार पर हमले की कोई बात नहीं कर रहा। सिस्टर प्रीति और वंदना का क्या अपराध था? वे सिर्फ़ पहली बार सफ़र करनेवाली इन तीन आदिवासी औरतों के साथ आगरा जा रही थीं। वहाँ इन्हें वे उनकी काम की जगह तक पहुँचानेवाली थीं।वृंदा करात में ठीक ही पूछा है कि क्या अब भारत में कहीं सफ़र के लिए पहले आर एस एस के गुंडों से इजाज़त लेनी होगी? कहाँ नौकरी करें और किस क़िस्म की, क्या यह अब आर एस एस और उसके संगठन तय करेंगे?
इतने सारे संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए किस पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए? पुलिस पर मुक़दमा कौन करेगा जिसकी निगरानी में बजरंग दल के गुंडे प्रीति, वंदना और सुखमन पर हमला कर रहे थे?
हम वापस केरल भाजपा के बयान पर आएँ। भाजपा के नेता छत्तीसगढ़ की भाजपा इकाई द्वारा इन मलयाली ननों पर लगाए गए आरोपों के बारे में चालाक खामोशी धरे हुए हैं। छत्तीसगढ़ की भाजपा ने इस हिंसा और गिरफ़्तारी के बाद कॉंग्रेस और वाम दलों के विरोध के बाद एक बेहूदा पोस्टर जारी किया।उसमें ये दोनों मलयाली नन भयानक शक्ल में हँसते हुए दिखलाई पड़ रही हैं और राहुल गाँधी आदि को उन्होंने ज़ंजीर में बाँध रखा है।वे इन ननों के चरणों में पड़े हुए हैं।
केरल भाजपा के लोग मलयाली ईसाई औरतों के लिए इस अपमानजनक पोस्टर के बारे में कुछ नहीं कह रहे। लेकिन उसके साथ खड़े होनेवाले विपक्षी दलों पर आरोप लगा रहे हैं कि बाक़ी राजनीतिक दल इस मसले पर बात  करके इसका राजनीतिकरण कर रहे हैं। वे यह नहीं बता रहे कि धर्मांतरण और मानव तस्करी का आरोप सही है या फर्जी? अगर आरोप सही हैं तो ये अपराध करनेवालों को क्या सिर्फ़ इसलिए बचा रहे हैं कि वे मलयाली हैं? अगर वे तमिल होतीं या झारखंडी तो फिर केरल की भाजपा क्या करती? और अगर केरल में ईसाई मतदाताओं की संख्या निर्णायक न होती तब केरल की भाजपा क्या करती?
केरल में भाजपा नेताओं ने कैथोलिक धर्मगुरुओं से मुलाक़ात करके बतलाया कि वे ननों के साथ हैं। इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या उनके माध्यम से केरल के ईसाइयों को बतलाया जा रहा था कि बाक़ी राज्यों के ईसाइयों का जो हो, भाजपा केरल के ईसाइयों के साथ है?
दुर्ग के रेलवे स्टेशन पर मलयाली ईसाई औरतों के साथ जो जुल्म हुआ वह तक़रीबन रोज़ाना भारत के अलग-अलग हिस्सों में, ख़ासकर ‘हिंदीभाषी’ इलाक़ों में होता रहता है।पादरियों और ननों के साथ हिंसा, गिरिजाघरों पर हमले, ईसाइयों की प्रार्थना पर हमला तो आम बात है।यहाँ तक कि अनेक घरों में जन्मदिन की पार्टियों पर या आम जमावड़े पर भी हमला किया जाता है।इनमें बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी और आर एस एस से जुड़े दूसरे संगठन शामिल होते हैं।लेकिन इनकी नोटिस कोई नहीं लेता। क्या इसलिए कि मीडिया हो या हम जैसे लोग, सब मानते हैं कि ईसाई धर्मांतरण का अपराध तो करते ही हैं इसलिए उनपर चिरंतन संदेह की गुंजाइश है? और उस ‘संदेह’ के आधार पर उनके ख़िलाफ़ ‘जनता’ की हिंसा की इजाज़त भी है?
दुर्ग में ननों की गिरफ़्तारी राष्ट्रीय मुद्दा बन गई क्योंकि केरल में चुनाव हैं और वहाँ कोई राजनीतिक दल ईसाइयों की नाराज़गी मोल लेने का ख़तरा नहीं उठा सकता। इसके बाद रायपुर के समाचार चैनल ‘लेंस.इन’ ने छत्तीसगढ़ में ही 100 साल पुराने धमतरी के क्रिश्चियन हॉस्पिटल के ख़िलाफ़ हिंदुत्ववादी हिंसक अभियान पर रिपोर्ट की। रिपोर्ट कहती है, “प्रदर्शन के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने चैनल गेट के सामने बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ किया, अस्पताल के गेट पर लिखा “क्रिश्चियन” शब्द मिटा दिया, छत पर चढ़कर संगठन के झंडे बांधे और स्ट्रेचर, व्हीलचेयर व सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए। अस्पताल परिसर को गोबर से लिपा गया और एम्बुलेंस सूचना बोर्ड को उखाड़ फेंका गया। इस हंगामे में कुछ महिला पुलिसकर्मी दब गईं और कई लोग घायल हुए।”
ननों और सुकमन मंडावी पर हिंसा और मुक़दमे के पहले इस पुराने हस्पताल पर हमला क्यों  राष्ट्रीय चिंता का विषय नहीं बना? 'लेंस' के लिए रिपोर्ट करते हुए पूनम ऋतु सेन पूछती हैं:  “मेरे मन में बार-बार यही सवाल उठता है आखिर इतने बेहतरीन अस्पताल का विरोध क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि इसके नाम में “क्रिश्चियन” शब्द जुड़ा है? …उस दिन विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के साइनबोर्ड से “क्रिश्चियन” शब्द को पत्थर से घिस कर मिटाने की कोशिश की। यह दाग आज भी अस्पताल के नाम पर नज़र आता है, जिसे एक महीने बाद भी ठीक नहीं किया गया।”
पूनम के सवाल और उनकी चिंता को ध्यान से सुनिए।असल इरादा भारत पर ईसाई छाप को मिटा देने का है। जब तक हम इस पर खुलकर बात नहीं करते, मलयाली ननों के साथ एकजुटता का कोई ख़ास अर्थ नहीं है।