राहुल गाँधी की इसलिए तो प्रशंसा की ही जानी चाहिए कि उन्होंने बिना हिचकिचाहट के निर्द्वंद्व होकर सैम पित्रोदा के 1984 की सिख विरोधी हिंसा पर दिए गए बयान की सख़्त आलोचना की। उसे बकवास, (नॉन सेंस), अस्वीकार्य बताया और सैम से तुरंत अपने बयान के लिए माफ़ी माँगने को कहा। उन्होंने कहा कि उनकी माँ और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1984 के लिए देश से माफ़ी माँगी है। वह मानते हैं कि उस हिंसा में शामिल और उसके लिए ज़िम्मेवार हर व्यक्ति को सज़ा होनी चाहिए। तुलनात्मकता के इस युग में कांग्रेस के प्रधान की इस प्रतिक्रिया और उसकी मुख्य विरोधी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं की ऐसे प्रसंगों में राय या प्रतिक्रिया की तुलना की ही जानी चाहिए। राहुल कम से कम मानवीय दीखते हैं और इसके लिए प्रयास भी करते हैं। भारतीय जनता पार्टी का हर बड़ा नेता घृणा और अमानवीयता की दौड़ में एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहता है। भारतीयों का इन दोनों में से एक का चुनाव ख़ुद मानवीयता की आवश्यकता में उनके यक़ीन का सबूत होगा।
ज़बान संभालना काफ़ी नहीं, हिंसा के प्रति नज़रिया बदले कांग्रेस
- वक़्त-बेवक़्त
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- 13 May, 2019

राहुल गाँधी ने बिना हिचकिचाहट के निर्द्वंद्व होकर सैम पित्रोदा के 1984 की सिख विरोधी हिंसा पर दिए गए बयान की सख़्त आलोचना की। राहुल का यह बयान अपने दल के एक सदस्य की असंवेदनशील लापरवाही की ज़िम्मेदारी लेने के लिहाज़ से आज के माहौल और दूसरे राजनीतिक दल के रवैए के संदर्भ में साहसिक कहा जा रहा है। इससे हमारे वक़्त की मानवीयता की दयनीय अवस्था का ही पता चलता है।