फिर दुहराव। फिर वही एक बात। फिर से मुसलमान। लेकिन शुरू करने से पहले ही सावधान करना ज़रूरी है कि वजह मुसलमान नहीं, हिंदुओं के भीतर पैठ कर गई और गहरी हो रही व्याधि है। विषय इसीलिए मुसलमान नहीं, हिंदुओं के भीतर की मुसलमान ग्रंथि है। जो हिंदी भूल गए हैं, वे ग्रंथि को कॉम्प्लेक्स पढ़ लें, जैसे आजकल किताब को हिंदी वाले बुक कहने लगे हैं और लेकिन को बट। टोकने पर बुरा मानकर पुस्तक और किंतु का उच्चारण करते हैं। वह शायद इसलिए कि किताब और लेकिन में भी छूत है।
हिंदुओं के बीच गढ़े जा रहे मुसलमान विरोधी कॉम्प्लेक्स का इलाज ज़रूरी
- वक़्त-बेवक़्त
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- 6 Apr, 2020

तब्लीग़ी जमात के प्रकरण के बाद अख़बार और सोशल मीडिया मुसलमान विरोधी प्रचार से भरे हुए हैं। इसके पीछे मुसलमानों को ग़ैर-जिम्मेदार दिखलाना ही एकमात्र मक़सद है। इसी तरह इंटरनेट पर सैकड़ों वीडियो, चुटकुले आदि मुसलमानों पर बने हुए हैं। यह एक तरह की सामाजिक पोर्नोग्राफ़ी है। इसका मज़ा लेने वाले बीमार हैं, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन यह बीमारी जब सामाजिक व्याधि में बदल जाए तो इसका उपाय करना पड़ता है।