मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की प्रेस कॉन्फ्रेंस।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के रवैये ने चुनाव आयोग की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या इससे आयोग की विश्वसनीयता बढ़ी या और घटी? पढ़ें अपूर्वानंद का कॉलम।
यह भी कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग के पास अपनी विश्वसनीयता को बहाल करने का एक मौक़ा था जो उसने जान बूझ कर गँवा दिया। क्या उसने यह जनता को आख़िरी तौर पर यह बताने के लिए किया कि वह निष्पक्ष नहीं है और न दीखना चाहता है?
माता, बहन, बेटी के रक्षक के रूप में ख़ुद को पेश करते हुए लोगों ने मोदी, शाह, आदित्यनाथ, हिमंता सरमा को देखा है। अब ज्ञानेश कुमार भी देश की माताओं, बेटियों, बहुओं की लाज के रक्षक बन गए हैं।
योगेंद्र यादव बार-बार पूछ रहे हैं कि आख़िर यह कैसा पुनरीक्षण है कि एक भी नया नाम जुड़ा नहीं, नाम सिर्फ़ काटे जा रहे हैं?